हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे की वंदनीय उपस्थिति
कोलकाता : शास्त्र धर्म प्रचार सभा की ओर से यहां के चौरंगी क्षेत्रस्थित आश्रम में श्रीमद् श्रीउपेन्द्रमोहनजी का १४५ वां जन्म महोत्सव संपन्न हुआ । इस के उपलक्ष्य में २४ से ३१ जुलाई की कालावधि में विविध विषयों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था । इन कार्यक्रमों में प्रतिदिन औसत २०० जिज्ञासू उपस्थित थे । २६ जुलाई को संस्कृत एवं संस्कृति विषय पर कार्यक्रम संपन्न हुआ । इस अवसर पर बोलते हुए श्री. जय नारायण सेन ने कहा कि वर्तमान समय में बोली जा रही बंगाली भाषा शुद्ध नहीं रही । इस में संस्कृत का उपयोग नहीं किया जाता । आज संस्कृताय स्वाहा अर्थात संस्कृत के लिए त्याग करने की आवश्यकता है ।
योगी अरिंवद आश्रम के प्रा. तन्मयकुमार भट्टाचार्य ने कहा कि, संस्कृत ही हमारी मूल भाषा है । गर्भस्थ शिशु को भी इसका ज्ञान होता है । हमें महाभारत में इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं । अन्य भाषाएं हमें सिखना पडती हैं । भारत की मूल व्यवस्था संस्कृत पर ही आधारित है । इस अवसर पर शिक्षक श्री. तमोनाश चक्रवर्ति एवं संस्कृततज्ञ श्री. वासुदेव मिश्रा ने भी संस्कृत के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किए ।
क्षणिकाएं :
१. सद्गुुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे की शिक्षा संस्कृत भाषा में नहीं हुई है । तब भी उन्होंने कहा कि, उन्हें इस कार्यक्रम में दो वक्ताओं ने संस्कृत में किया मार्गदर्शन ९० प्रति समझमें आया, जबकि बंगाली भाषा में किया गया ५० प्रतिशत समझ में आया । उन्होंने कहा कि, संभवतः श्रीमद् श्रीउपेन्द्रमोहनजी के चरण के पास बैठने का अवसर मिलने से ऐसा हुआ ।
२. शास्त्र धर्म प्रचार सभा के डॉ. कौशिक चंद्र मल्लिक ने कहा कि, परिस्थिति एवं विषय के अनुसार जो आवश्यक था, वही विषय सद्गुुरु (डॉ.) पिंगळे ने प्रस्तुत किया । उन पर गुरू की कितनी कृपा है, यह ध्यान में आया ।
संस्कृत में बताए अनुसार आचरण करने की आवश्यकता ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक
सद्गुुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे ने कहा कि संस्कृत देवभाषा है । वह मृत भाषा नहीं है । अधर्म के कारण आज अधिकांश समाज मृतप्राय हो गया है । संस्कृत एवं धर्म का ज्ञान देकर समाज को जागृत करना पडेगा । वास्तव में भारत देश तेज, ज्ञान, प्रकाश का प्रतीक है; परंतु वर्तमान स्थिति क्या है ? आज देश को पूर्व समान बनाने के लिए चर्चा नहीं, अपितु कृति की आवश्यकता है । यदि आप बीमार हो, तो आधुनिक वैद्य ही आप की जांच कर प्रिस्क्रीप्शन देता है । उस के अनुसार औषधि का सेवन करने से बीमारी अच्छी होती है; परंतु बीमार व्यक्ति ने औषधि के स्थान पर प्रिस्क्रिप्शन ही निगल लिया, तो बीमारी कैसी अच्छी होगी ? इसलिए संस्कृत में बताए अनुसार आचरण करने की आवश्यकता है । विज्ञान कभी चिरंतन आनंद नहीं दे सकता । इसके लिए धर्मशिक्षा प्राप्त कर उसके अनुसार कृति करना ही उपाय है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात