कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी, कलियुग वर्ष ५११६
नई देहली – यहांपर आयोजित एक समारोहमें ‘सनातन धर्मकी संकल्पना एवं भविष्यमें विश्वगुरुपदपर भारतके विराजमान होनेकी संभावना’ विषयपर बोलते हुए परम् पूजनीय पुरी पीठाधीश्वर अनन्तश्रीविभूषित श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराजने ऐसे क्षात्रतेजयुक्त उद्गार व्यक्त किए यद्यपि सम्पूर्ण प्राणियोंपर दया करना सनातन वैदिक धर्मकी सीख है, परंतु कोई हमारी उदारताको दुर्बलता जानकर हमारे आदर्श एवं अस्तित्वपर आंच लानेका प्रयास न करे ।
श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्यजीकी ओजस्वी वाणीसे निकले विचारधन
बहुसंख्यक होते हुए भी राज्यघटनामें हिन्दुओंका विचार ही नहीं !
पूरे विश्वमें भारत ही ऐसा एकमात्र देश है कि जिसके संविधानमें सनातन वैदिक धर्मका उल्लेख नहीं है । विश्वमें प्रत्येक राष्ट्रकी राज्यघटना उस-उस देशके बहुसंख्यक जनताका हित साधनेकी दृष्टिसे सिद्ध की गई है; परंतु भारतमें हिन्दू बहुसंख्यक होते हुए भी उनके हितका विचार इस राज्यघटनामें नहीं किया गया है ।
हिन्दू बहुसंख्यक भारतमें अल्पसंख्यकोंको अधिक अधिकार !
विभाजनके पश्चात भारतमें अल्पसंख्यकोंको दिए जानेवाले अधिकारोंके जितने भी अधिकार हिन्दुओंको नहीं दिए गए हैं । इसलिए बहुसंख्यक हिन्दू ही आज भारतमें अत्यंत उपेक्षित हैं । जहां गीधोंका ही अस्तित्व संकटमें हो, वहां क्या हंसकी प्रजाति सुरक्षित रहेगी ? ऐसा प्रश्न उत्पन्न हो गया है ।
वर्तमान समयका विकास पर्यावरणके लिए घातक !
आज अन्य राष्ट्रोंके समान भारत भी विकासके पीछे दौड रहा है; परंतु विकासका अर्थ ठीक किसप्रकार किया जाए ? करोडों लोगोंके भाग्यमें दो समय भोजन भी नहीं मिलता । साथ ही कुछ मर्यादित लोग करोडों रुपयोंकी संपत्ति संग्रहित कर बैठे हैं । क्या इसीको हम विकास कहेंगे ? हम जिसे विकास कहते हैं, उस विकाससे भारी मात्रामें पर्यावरणकीहानि हो रही है । आज विश्वके पशु-पक्षी तथा वनस्पतियोंकी अनेक प्रजातियां नष्ट होनेको हैं एवं मनुष्य पर्यावरणके लिए घातक सिद्ध हो रहा है । इतना ही नहीं, अपितु और कुछ वर्षोंमें मनुष्य ही मनुष्यके लिए घातक सिद्ध होगा ।
वर्तमान समयकी शिक्षा पद्धतिसे पाश्चात्त्य संस्कृतिका उदात्तीकरण !
साधकको ‘इस देशमें कोई भी सरकार आई, तो मुझे उससे क्या ?’, ऐसी सोच नहीं रखनी चाहिए; क्योंकि शासन प्रत्येक नागरिकके जीवनको प्रभावित करता है । वर्तमान समयकी शिक्षा एवं जीवन जीनेकीr पद्धतियोंमें नीति एवं अध्यात्मका अभाव है । इसलिए सनातन संस्कृतिकी रक्षा करनेके स्थानपर ये पद्धतियां पश्चिमी सभ्यतावाली संस्कृतिका उदात्तीकरण करनेवाली हो गई हैं ।
मानवजीवनको सार्थक करें !
मृत्युसे पूर्र्व भगवद्स्वरूप आत्मतत्त्वका बोध होनेसे ही जीवन यथार्थ रूपसे सार्थक होता है । प्रत्येक मानवको जीवन सार्थक बनानेका प्रयास करना चाहिए । मानवजीवनका महत्त्व न जाननेके कारण उसे सार्थक बनानेका महत्त्व बहुत न्यून लोगोंको ज्ञात रहता है । सत्संग एवं सााqत्त्वक आहार लेकर सत्त्वगुणी बनें ! हम जो आहार लेते हैं, जैसा आचरण करते हैं, जिस वातावरणमें रहते हैं, इन सभी बातोंका हमारे मनपर परिणाम होता है । इससे हमारे अंदरके सत्त्व, रज एवं तम गुणोंकी वृद्धत एवं अभाव होता है; इसीलिए सात्त्विक आहार एवं सत्संगका महत्त्व है । इससे मनुष्य सत्त्वगुणी बनता है ।
सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराजका सम्मान !
इस अवसरपर सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा समितिके राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजीने श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराजका सम्मान किया । इस अवसरपर सनातन संस्थाके साधक श्री. संजीवकुमार तथा श्रीमती मालाकुमारके साथ देहलीके अन्य साधक उपस्थित थे ।
श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराजका सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समितिके प्रति प्रेम !
इस अवसरपर शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराजके दर्शन हेतु बहुत लोग पंक्तियोंमें खडे थे । सनातनके साधक एवं हिन्दू जनजागृति समितिके कार्यकर्ता भी पंक्तिमें खडे थे । इस अवसरपर शंकराचार्यजीने उनके भक्तोंद्वारा साधक एवं कार्यकर्ताओंको आमंत्रित किया तथा सभीको प्रसाद भी दिया । इसके अतिरिक्त शंकराचार्यजीने पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेको व्यासमंचपर आसीन होनेको कहा, जिससे पू. डॉ. पिंगळे व्यासमंचपर आसीन हुए ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात