श्री तुळजाभवानी मंदिर में निहित धर्मशास्त्रीय परंपराआें के किए जा रहे उल्लंघन को रोकने हेतु आंदोलन !
तुळजापुर (महाराष्ट्र) : मंदिर की परंपरा के अनुसार श्रद्धालुआें को सदैव श्रीशहाजीराजे महाद्वार से प्रवेश दिया जाए और शासन की निष्क्रियता के कारण बंद भक्तनिवास तत्काल खोले जाएं, मंदिर समिति में धर्मशास्त्र के अभ्यासक, धार्मिक परंपराआें का जतन करनेवाले, देवीभक्त एवं उपासना करनेवाले सदस्यों की नियुक्ति की जाए, साथ ही शासन हिन्दुआें की परंपराआें में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप न करे । हम छत्रपति शिवाजी महाराज के सैनिक हैं; इसलिए इस प्रकार की मुघलाई को सहन नहीं किया जाएगा । हिन्दू जनजागृति समिति के पश्चिम महाराष्ट्र समन्वयक श्री. मनोज खाडये ने यह चेतावनी दी । श्री तुळजाभवानी मंदिर संरक्षण क्रियान्वयन समिति की ओर से १९ अगस्त को श्री तुळजाभवानी मंदिर के सामने स्थित प्रांगण में सुबह ११ बजे से दोपहर १ बजे की अवधि में धरना आंदोलन चलाया गया । उसमें वे ऐसा बोल रहे थे । इस आंदोलन में विविध संगठन सम्मिलित थे । आंदोलन के समापन के समय तहसीलदार श्री. दिनेश जांपले ने उपस्थित होकर निवेदन का स्वीकार किया । इस निवेदनपर १०० से भी अधिक पुजारी एवं श्रद्धालुआें के हस्ताक्षर थे ।
इस अवसरपर पाळीकर पुजारी संगठन के अध्यक्ष विपिन शिंदे, राष्ट्रवादी कांग्रेस के जनपद महासचिव महेश चोपदार, भाजपा युवा मोर्चा के जनपद उपाध्यक्ष इंद्रजीत साळुंके, राष्ट्रवादी युवक कांग्रेस के शहर अध्यक्ष संदीप गंगणे, युवा सेना के शहराध्यक्ष सागर इंगळे, गोदावरी सामाजिक संस्था के अध्यक्ष मयुर कदम, भाजपा के वरिष्ठ नेता बाळासाहेब शामराज, युवा सेना के तहसील प्रमुख प्रतीक रोचकरी आदि मान्यवरों ने क्रियान्वयन समिति के कार्य का समर्थन करते हुए अपने मनोगत व्यक्त किए ।
१. मेले के समय मुख्य प्रवेशद्वार से अंदर आनेपर पहले कल्लोळ तीर्थ प्राशन करना, उसके पश्चात श्रीगणेशजी के दर्शन करना तथा तत्पश्चात श्री तुळजाभवानी माता का दर्शन करना, ये धर्मशास्त्रीय संकेत हैं । इसके कारण पहले शरीरशुद्धि एवं मन की शुद्धि होती है । उसके पश्चात देवता के दर्शन से श्रद्धालुआें को शक्ति मिलती है; परंतु दर्शन के मार्ग अन्य द्वारों के किए जाने से श्रद्धालु स्वयंभु कल्लोळ तीर्थ तथा श्रीगणेशजी का दर्शन न कर मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं । फलस्वरूप वो इन दोनों लाभों से वंचित रहते हैं । प्रशासन ने श्रद्धालुआें को प्राप्त होनेवाले इस आध्यात्मिक लाभ को छीन लिया है । श्रद्धालुआें को श्री तुळजाभवानी मंदिर की स्थापना से लेकर आजतक इस परंपरा के अनुसार महाद्वार से ही प्रवेश दिया गया है; परंतु अब सुरक्षा का कारण देकर मेले के समय में महाद्वार से प्रवेश बंद किया जा रहा है । नवरात्र के समय महाद्वार से दर्शन मार्ग को बंद कर श्रद्धालुआें की असुविधा की जा रही है और परंपरा को तोडनेवाला मार्ग चुन लिया गया है ।
२. पुलिसकर्मी मंदिर परिसर में बूट पहनकर घूमते हैं । उसके कारण भी मंदिर की पवित्रता नष्ट हो रही है ।
३. यह नोटिस दिया गया है कि श्री तुळजाभवानी मंदिर के जिन पुजारियों की बारी होती है, वो ही केवल देवी के सभी विधि करें । यदि ऐसा हुआ, तो एक ही पुजारी को गर्भगृह में १२ से १५ घंटे और मेले के समय में उसे २४ घंटे गर्भगृह में ही रूकना पडेगा । पुजारियों से संबंधित निर्णय करते समय उनके साथ बातचीत कर विवेक के साथ निर्णय किया जाता अपेक्षित है; परंतु इस प्रकार से निर्णय थोपे जा रहे हैं ।
आंदोलन स्थलपर सामान्य वेशभूषा में निहित एक अधिकारी उपस्थित थे । उन्होंने कार्यकर्ताआें से पूछा कि इसके कारण भविष्य में कोई अप्रिय घटना हुई, तो क्या आप उसके लिए उत्तरदायी हैं ? (यदि श्रद्धालुआें को यह करना हो, तो पुलिसकर्मियों क्या काम करेंगे ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात