दैनिक ‘सुनापरान्तका अतिरेकी हिंदुद्वेष !
पणजी (गोवा), १ दिसंबर (वृत्तसंस्था) – यहां आयोजित आंतर्राष्ट्रीय चलचित्र महोत्सवमें हिंदुओंके देवी-देवता एवं भारतमाताके नग्न चित्र बनाकर, उनकी बिक्री करनेवाले हिंदुद्वेषी चित्रकार म.फि. हुसैनको अंतर्राष्ट्रीय चलचित्र महोत्सवमें श्रद्धांजली अर्पित न की जाए, इसलिए हिंदु जनजागृति समिति तथा अन्य राष्ट्रप्रेमी एवं धर्मप्रेमी संगठनोंने वैध मार्गसे अभियान चलाया था । इस अभियानके अंतर्गत आयोजक, राज्य एवं केंद्र स्तरके मंत्री एवं प्रशासकीय अधिकारियोको सम्पर्क कर, निवेदन दिए गए । अतः चित्रकार हुसैनपर आधारित ‘थ्रू द आयज ऑफ पेंटर’ चलचित्र २७ नवंबर को प्रदर्शित न करते हुए, उसका प्रसारण महोत्सवके आयोजकोंने आगे रखा था । इस पाश्र्वभूमिकापर गोवाके कोकणी दैनिक ‘सुनापरान्त’द्वारा अपने २९ नवंबर २०११ के पृष्ठ ४ पर दिए अग्रलेखमें, ‘आंदोलन चलानेवाला हिंदु जनजागृति समिति संगठन आतंकवादी विचारधारावाला संगठन है’, ऐसा आरोप लगाया गया है । (पिछले दो दशकोंसे हिंदुओंके देवी-देवताओंके नग्न एवं अश्लील चित्र बनाकर, उनकी धर्मश्रद्धा पैरोंतले कुचलनेवाले, देवी-देवताओंको भी अश्लील कृत्य करते हुए दर्शानेवाले असीम वासनांध एवं विकृत मनोवृत्तिके हुसैन ‘सुनापरान्त’को आतंकवादी नहीं प्रतीत होते; परंतु उनके विरोधमें बिना कोई हिंसा किए शांतिसे प्रबोधन करनेवाली हिंदु जनजागृति समिति ‘सुनापरान्त’ को आतंकवादी विचारधाराकी प्रतीत होती है, यह ‘सुनापरांत’का आतंकवादी हिंदुद्वेष ही तो है ! – संपादक)
१. धौंस किसे कहते हैं, यह भी न समझनेवाले ‘सुनापरान्त’ के संपादक !
अग्रलेखमें कहा है कि हुसैनको श्रद्धांजली अर्पण करना अतिरेकी विचारोंकी समितिको सहन नहीं हुआ । समितिद्वारा आक्षेप लिए जानेपर आयोजकोंने श्रद्धांजलीका यह कार्यक्रम आगे रखा । किसी संगठनसे मिली धौंसके कारण कार्यक्रमकी दिनांक आगे बढाना अयोग्य है । (हिंदु जनजागृति समितिने अत्यधिक वैध मार्गसे विरोध कर समझदारीसे कार्यक्रम निरस्त करनेमें सफलता प्राप्त की है । इसमें धौंस देनेकी बात कहां है ? ‘समितिद्वारा धौंस दी गई, ऐसा कहनेवाले सुनापेरान्त’ के संपादक या तो वे ‘धौस देना’ इसका अर्थ नहीं जानते अथवा उसे असीम हिंदुद्वेष है ! – संपादक)
२. कहते हैं, हिंदुद्वेषी हुसेनको भारतके प्रति प्रेम था !
चित्रकार हुसेन एक महान एवं आंतर्राष्ट्रीय कीर्तिके कलाकार हैं । हुसेन प्रगतिशील विचारोंके चित्रकार हैं । हुसेनने अपनी कलासे भारतका नाम उज्ज्वल किया । उन्हें भारतका ‘पिकासो’ मानते हैं । (हुसेनकी अनेक कलाकृतियोंसे उनका भारतद्वदेष ही झलकता है । क्या ‘सुनापरान्त’के संपादकने कभी यह चित्र देखे हैं ? कोई सूचित करता है अथवा कोई उनका गुणगान करता है, इसलिए सुनी-सुनाई बातोंपर विश्वास रखकर, हुसेनकी प्रशंसा करना यह दैनिक ‘सुनापरान्त’ की पीतपत्रकारिता है अथवा पत्रकारिताकी अंधश्रद्धा ! इसके कारण पाठकोंका दिशाभ्रम होकर वे पापके भागीदार हो रहे हैं ! – संपादक)
३. कलासमान क्षेत्रमें कलाकारोंके अभिव्यक्ति स्वतंत्रतामें बाधा निर्माण करना एवं किर्सी कलाकारकी कलाके आविष्कारका आस्वाद लेनेके बजाय, वह पसंद न आनेपर उस कलाकारका जीना दूभर कर देना, यह सुसंस्कृत एवं सभ्य समाजमें अन्याय ही है । (कलाकारोंका ही नहीं, अपितु संपादकोंका भी जीना कैसे दूभर किया जाता है, यह मुसलमानोंने मुहम्मद पैगंबरका डेन्मार्कमें चित्र बनानेपर विश्वभर हिंसक प्रदर्शन कर एवं हाल ही में फ्रांसमें समाचारपत्रका कार्यालय जलाकर दिखा दिया है । इसीलिए सुनापरान्तके संपादक उनके विरोधमें बात भी करनेका साहस नहीं दिखाते । ऐसे लोगोंके मुखसे अभिव्यक्ति स्वतंत्रताकी बातें शोभा नहीं देतीं । – संपादक)
… उस समय क्या दैनिक ‘सुनापरान्त’ सो रहा था ? – श्रीमती राजश्री गडेकर, प्रवक्ता, हिंदु जनजागृति समिति, गोवा.
‘सुनापरान्त’ दैनिकने कहा है कि हम अतिरेकी विचारोंके हैं । हम आतंकवादी विचारोंके होते, तो दैनिक सुनापरान्तने इस प्रकार लिखनेका साहस ही नहीं किया होता । हिंदु सहनशीले हैं; इसीलिए भारतमें हुसेनके िवरोधमें केवल पुलिस थानेमें परिवाद एवं न्यायालयमें अभियोग प्रविष्ट किये गए । अभिव्यक्ति स्वतंत्रताकी ढींगे मारनेवालोंको यह बात सामने रखनी चाहिए कि हुसेन कितने भी महान हो गए हों, तब भी हिंदुओंकी देवी-देवताओंके सामने वे बडे नहीं हैं । ‘द दा विन्सी कोड’ चलचित्रके माध्यमसे ईसाई लोगोंकी भावनाएं आहत हुई, तो वे आयनॉक्स चलचित्रगृहके समीप एकत्र हो गए और उन्होंने चलचित्रगृहकी तोड-फोड करनेकी धमकी दी । इसमें विधायक चर्चिल आलेमाव भी थे । इसलिए शासनद्वारा यह चलfिचत्र गोवामें प्रदर्शित नहीं किया गया । उस समय दैfिनक ‘सुनापरान्त’का संपादक मंडल क्या सो रहा था ?
स्रोत : Dainik Sanatan Prabhat