• श्रद्धालुओं का धर्मशास्त्र के अनुसार श्री गणेशमूर्तियों का बहते पानी में विसर्जन करने की ओर झुकाव !
• श्रद्धालुओं ने कृत्रिम कुंडों में विसर्जन के अशास्त्रीय उपक्रम को किया अमान्य !
पुणे : प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी ‘आदर्श गणेशोत्सव अभियान’ के अंतर्गत हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता एवं श्रद्धालुओं ने विसर्जन घाटोंपर उद्बोधन अभियान चलाया। हिन्दुओं के त्यौहारों के समय तथाकथित प्रदूषण का दुष्प्रचार कर हिन्दुओं के धर्माचरण की कृतियों पर बंधन डाले जाते हैं ! इस वर्ष भी महापालिका की ओर से विसर्जन हेतु कृत्रिम कुंड और श्री गणेशमूर्ति पिघलाने हेतु सोडियम बायकार्बोनेट जैसी अशास्त्रीय पद्धतियों का समर्थन किया जा रहा है। डेढ दिन के गणेशमूर्तियों के विसर्जन के दिन जिन श्रद्धालुओं को गणेशमूर्तियों का बहते पानी में विसर्जन करना है, उनके लिए कोई सुविधा नहीं; उल्टे समस्याओं की होड ही दिखाई दे रही थी ! ऐसा होते हुए भी अनेके श्रद्धालुओं ने डेढ दिन की गणेशमूर्तियों का विसर्जन बहते पानी में ही करने हेतु प्रधानता दी, ऐसा देखने को मिला !
चिंचवड में भी नदी में पानी होने से लगभग सभी श्रद्धालुओं ने अपनी गणेशमूर्तियों को बहते पानी में ही विसर्जन किया। इस उद्बोधन अभियान के अंतर्गत समिति के कार्यकर्ता एवं गणेशभक्त हाथों में उद्बोधन फलक लेकर खडे थे। यहां के ओंकारेश्वर मंदिर के निकट के वृद्धेश्वर-सिद्धेश्वर घाट, भिडे पुल एवं जोशी पुल पर, तो पिंपरी-चिंचवड परिसर के काकडे पार्क, वाल्हेकरबाडी, थेरगाव एवं मोरया गोसावी घाट पर यह अभियान चलाया गया।
खडखडकवासला बांध से विलंब से पानी छोडा गया ?
श्री गणेश की कृपा से ज्यादा मात्रा में वर्षा होने से तथा उससे खडकवासला बांध पूरा भर जाने से नदी में पानी छोडा जानेवाला था; परंतु सायंकाल ६ बजे तक नदी में पर्याप्त पानी नहीं था। अतः महापालिका ने जानबूझ कर विलंब से पानी छोडा क्या ?, बांध से पानी छोडने का तथा उसके अपेक्षित स्थानोंपर पहुंचने की अवधि पर विचार कर उस प्रकार से नियोजन क्यों नहीं किया गया ?, ऐसे प्रश्न श्रद्धालुओं ने उपस्थित किए !
अभियान को मिला प्रतिसाद !
१. एक श्रद्धालु को थेरगाव के एक घाट पर बहते पानी में विसर्जन का शास्त्र बताए जाने पर उन्होंने अपनी मूर्ति को कृत्रिम कुंड की ओर न ले जाते हुए अपनी गणेशमूर्ति का नदी में विसर्जन किया तथा जाते समय कार्यकर्ताओं को प्रसाद दिया। कार्यकर्ताओं के दोनों हाथों में फलक देखकर वे कहने लगे, ‘‘आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। अब मैं ही आपको प्रसाद खिलाता हूं !’’ और ऐसा कह कर उन्होंने कार्यकर्ताओं को प्रसाद खिलाया।
२. अनेक श्रद्धालु उद्बोधन फलकों को जिज्ञासा के साथ पढ रहे थे।
३. श्री. चौगुले-पाटिल (नाव चलानेवाले) का नाव चलाने का पारंपरिक व्यवसाय है। पहले बहते पानी में ही गणेशमूर्तियों का विसर्जन करने की परंपरा होने से नावों की संख्या बहुत थी; परंतु प्रशासनद्वारा कृत्रिम कुंडों में गणेशमूर्तियों का विसर्जन करने हेतु प्रोत्साहन देना आरंभ किए जाने से उनका व्यवसाय घटा। उनका यह पारंपरिक व्यवसाय होने के कारण वह अब केवल ३ नाव चलाते हैं; किंतु उसमें भी पुलिसकर्मी बाधा उत्पन्न करते हैं। वो श्रद्धालुओं को गणेशमूर्तियों का बहते पानी में विसर्जन नहीं करने देते। उन्होंने कहा कि, अपने पारंपरिक व्यवसाय का जतन करने हेतु अब भी गणेशोत्सव की अवधि में नाव चलाते हैं। पालिका की यह नीति अयोग्य है !
महापालिका की ढीली कार्यपद्धति
- एस.एम. जोशी पुल के निकट के घाट पर गणेशमूर्तियों का नदी में विसर्जन करने हेतु किसी भी प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई थी। अतः श्रद्धालुओं को विसर्जन के पूर्व की जानेवाली श्री गणेश की आरती मूर्ति को भूमि पर रखकर ही करनी पड रही थी। उस स्थान पर किसी भी प्रकार का सुरक्षा घेरा खडा नहीं किया गया था। दीपों का प्रबंध, साथ ही मंडप खडा करने के काम को सायंकाल से ही प्रारंभ किया गया !
- वृद्धेश्वर-सिद्धेश्वर घाट पर इससे विपरीत चित्र देखने मिला। वहां पर बांबू लगा कर परिसर को इतना संकीर्ण कर दिया गया था कि, यदि किसी भाविक को अपनी गणेशमूर्ति का नदी में विसर्जन करना हो, तो उसके लिए उसको कसरत करते ही नदी तक जाना पड रहा था। इसके अतिरिक्त नदी में उतर कर विसर्जन करने हेतु पालिका का कोई कर्मचारी अथवा नाव के प्रबंध को छोड कर अन्य किसी भी प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं की गई थी !
- भिडे पुल के निकट घाट पर नदी की ओर जानेवाले मार्गपर लोहें की चादरें और मंडप बनाने हेतु लाये गए बांस उतारे गए थे, साथ ही नदी की ओर जाने का मार्ग भी खुरदरा ही था !
- यहां के ओंकारेश्वर मंदिर के निकट के वृद्धेश्वर-सिद्धेश्वर घाटों को जोडनेवाले पुल पर ४ बडे पत्थर रखे गए थे !
- भिडे पुल पर कर्मचारी मंडप में बैठे हुए थे; परंतु वो नदी में विसर्जन करनेवाले श्रद्धालुओं की सहायता नहीं कर रहे थे !
श्री गणेशमूर्तियों का नदी में विसर्जन करनेवाले श्रद्धालुओं की प्रतिक्रियाएं
१. हम खडिया मिट्टी से बनी गणेशमूर्ति की स्थापना करते हैं; इसलिए उससे जलप्रदूषण होने का प्रश्न ही नहीं उठता !
२. कृत्रिम कुंडों में विसर्जित किए गए मूर्तियों का क्या होता है ? और उनको किस प्रकार से उठाया जाता है, यह हमें अच्छी तरह से ज्ञात है, अतः हम गणेशमूर्तियों का बहते पानी में ही विसर्जन करते हैं !
३. एस.एम. जोशी पुल पर पेटकर परिवार पारंपरिक वेशभूषा में उपस्थित था। उनके साथ बातचीत करने पर उन्होंने कहा, ‘‘शासन नदी के प्रदूषण को रोकने हेतु कुछ नहीं करता। उन्होंने यदि कुछ नहीं किया, तो हम शास्त्र के अनुसार बहते पानी में ही गणेशमूर्ति का विसर्जन करेंगे। इसके लिए आवश्यकता पडने पर हम दूर भी जाएंगे; परंतु शास्त्र के अनुसार बहते पानी में ही विसर्जन करेंगे। हमारा छोटा लडका गणेशमूर्ति का बाल्टी में विसर्जन करने का आग्रह कर रहा था; किंतु हमने उसको शास्त्र समझाया !’’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात