कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी, कलियुग वर्ष ५११६
नई दिल्ली – दक्षिण चीन सागर में तेल खोज का करार करने पर चीन की चेतावनी को दरकिनार कर भारत ने वियतनाम के साथ एक कदम और आगे बढ़ाया है।
चीन की आक्रामक नीति को करारा जबाव देते हुए भारत ने वियतनाम की सेनाओं के आधुनिकीकरण में मदद करने का वादा किया है। भारत के इस कदम से चीन खुश नहीं होगा क्योंकि दक्षिण चीन सागर में वियतनाम से उसके विवाद चल रहे हैं।
वियतनाम के पीएम नुएन तांग जुंग से मुलाकात के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि वियतनाम के साथ भारत के रक्षा सहयोग महत्वपूर्ण है। भारत वियतनाम की सेनाओं और सुरक्षाबलों के आधुनिकीकरण के लिए वचनबद्ध है। इसमें प्रशिक्षण कार्यक्रम, संयुक्त सैन्य अभ्यास और रक्षा साजो सामान में सहयोग शामिल होगा।
उन्होंने कहा कि जल्द ही वियतनाम को 100 मिलियन डॉलर का ऋण दिया जाएगा, जिससे वह भारत से अपने लिए नौसेना के लिए पोत खरीद सकेगा।
ब्रह्मोस मिसाइल वियतनाम को बेच सकता है भारत
ऎसा पहली बार है जब भारत ने स्पष्ट तौर पर संकेत दिया है कि वह ब्रह्मोस मिसाइल वियतनाम को बेचने पर विचार कर सकता है। वियतनाम काफी समय से इस मिसाइल की खरीद की मांग कर रहा है।
ब्रह्मोस मिसाइल का निर्माण भारत और रूस ने संयुक्त रूप से किया है। यूपीए सरकार रूस के कारण इस मिसाइल को वियतनाम से बेचने में झिझक रही थी लेकिन अब रूस ने भी इस दिशा में सकारात्मक संकेत दे दिए हैं।
ड्रैगन को जकड़ने की तरकीब!
चीन दक्षिण एशिया में रणनीतिक तौर पर खुद को मजबूत करने के लिए भारत के पड़ोसी देशों से रिश्तों को मजबूत बनाने में लगा है। ऎसे में उसकी इस नीति का जवाब देने के लिए भारत भी वियतनाम और जापान जैसे देशों से अपने संबंध तेजी से मजबूत कर रहा है।
इतना ही नहीं, वियतनाम और भारत जापान के साथ मिलकर रक्षा और आर्थिक मसलों पर त्रिपक्षी सहयोग के लिए सहमत हुए हैं। ऎसा होने से एशिया में शक्ति संतुलन स्थापित होगा और चीन के प्रभुत्व कम किया जा सकेगा।
भारत पहले से ही जापान और अमेरिका के साथ रक्षा और आर्थिक मसलों पर त्रिपक्षीय सहयोग में शामिल है।
दक्षिण चीन सागर में भारत बढ़ाएगा उपस्थिति
भारत और वियतनाम ने शिक्षा, संस्कृति, सूचना और प्रसारण तथा तेल की खोज के क्षेत्रों सहित सात समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अनुसार भारत दक्षिण चीन सागर में अपनी मौजूदगी बढ़ाएगा।
वहां दो से तीन और तेल ब्लॉकों में खोज अभियान चलाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपने वियतनामी समकक्ष नुएन तांग जुंग के साथ वार्ता के बाद इन करारों पर दस्तखत किए गए। एक समझौता नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना और एक अंग्रेजी भाषा केंद्र और सूचना तथा संचार टेक्नोलॉजी का केंद्र खोलने के बारे में है।
प्रसार भारती और वॉयस ऑफ वियतनाम के बीच श्रव्य-दृश्य सहयोग का समझौता भी हुआ। दोनों पक्षों ने धरोहर स्थलों के संरक्षण व बहाली तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के बारे में समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए।
बौखलाया पड़ोसी बोला – न लें पंगा
वियतनाम से दक्षिण चीन सागर में तेल खोज का करार करने पर चीन ने भारत को चेतावनी दी है। चीन ने कहा है कि वियतनाम के कहने से भारत विवादित क्षेत्र में कोई प्रोजेक्ट शुरू करने का प्रयास नहीं करे।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग लेई ने कहा, “दक्षिण चीन सागर को लेकर विवाद सुलझाने के मसले पर वियतनाम के प्रधानमंत्री का भारत से समर्थन मा ंगने के संदर्भ में यह साफ कहना चाहता हूं कि किसी भी समस्या या विवाद को आपसी बातचीत और संवाद से ऎतिहासिक तथ्य और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सुलझाया जाए।” होंग ने कहा, भारत को भी इसमें भूमिका तलाशने के प्रयास की बजाय विवाद को सुलझाने के चीन और वियतनाम के आपसी प्रयासों का सम्मान करना चाहिए।
स्त्रोत : राजस्थान पत्रिका