मूर्तिविसर्जन के पश्चात कृत्रिम कुंडों में जमा पानी उसी स्थानपर छोडा जाता है ! – प्रशासनद्वारा अचंबित कर देनेवाला स्पष्टीकरण
मूर्तियों के विसर्जन के पश्चात कृत्रिम कुंडों में स्थित पानी को उसी स्थानपर छोडे जाने के कारण वह पानी निकट के जलस्रोत में अथवा गटर में जाकर मिलता है। पालिका प्रशासन ने इस अभियान को चलाकर निश्चित रूप से कौनसा प्रदूषण रोका ? – संपादक, हिन्दुजागृति
मुंबई : ईश्वर एवं धर्म को न माननेवाले पुरोगामियों के जाल में फंसकर मूर्तिविसर्जन के कारण जलप्रदूषण होने का झुठा प्रचार कर पारंपरिक रूप से बहते पानी में किए जानेवाले विसर्जन का विरोध किया जाने लगा और विगत कुछ वर्षों में अनेक नगरों के प्रशासनों ने भी गणेशमूर्तियों का विसर्जन कृत्रिम कुंडों में करने की नई अनिष्ट परंपरा का आरंभ किया !
हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से इसके विरोध में निरंतर उद्बोधन किया गया, प्रशासनों को ज्ञापन भी प्रस्तुत किये गये और आंदोलन भी किए गए; परंतु पालिका प्रशासनों ने अपनी आंखोंपर पट्टी बांध कर समिति की मांगों की उपेक्षा ही की ! इस संदर्भ में हिन्दू जनजागृति समिति ने मुंबई महानगरपालिका प्रशासन को सूचना अधिकार के माध्यम से पूछा कि, ‘गणेशमूर्ति विसर्जन हेतु रखे गए कृत्रिम कुंडों में डाले गए पानी का विसर्जन के पश्चात क्या किया जाता है ?’ तो इसपर पालिका प्रशासन की ओर से ‘इन कुंडों में डाला गया पानी वहीँ छोडा जाता है !’, ऐसा अचंबित करनेवाला उत्तर मिला !
इस पानी को वहीँ छोडे जाने से वह पानी निकट के जलस्रोत में जाकर मिलता है। अतः विसर्जन के कारण जलप्रदूषण न हो; इसके कारण किए जानेवाले पूरे परिश्रम ही व्यर्थ सिद्ध हुए, ऐसा दिखाई देता है ! (केवल हिन्दुओं के त्यौहारों के समय ही पर्यावरणरक्षा हेतु जागृत होनेवाली संघटनों का इसपर क्या कहना है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) अतः अब मुख्यमंत्री एवं पर्यावरणमंत्री पर्यावरण की रक्षा के नाम पर जनता के धन को कृत्रिम कुंडों में डाले गए पानी में बहानेवालों के विरोध में क्या कार्रवाई करेंगे ? हिन्दू जनजागृति समिति के राज्य संघटक श्री. सुनील घनवट ने एक विज्ञप्ति के माध्यम से शासन से यह प्रश्न किया है !
श्री. घनवट ने अपनी इस विज्ञप्ति में उल्लेख किया है कि, मूर्तियों के यातायात हेतु कचरे की गाडियों का उपयोग कर श्री गणेश का घोर अनादर किया जाता है। हिन्दुत्वनिष्ठ शासनको ही यदि हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं काे मूल्य नहीं दिया जाता हो, तो अब हिन्दू किसकी ओर आशा से देखेंगे ? इसी प्रकार के कृत्य राज्य में स्थित सभी पालिका प्रशासनों की ओर से अल्पाधिक मात्रा में किए जाते हैं। कृत्रिम कुंडों में विसर्जित की गई मूर्तियों को समुद्र की खाडी में अथवा पत्थरों की खदानों में फेंक दिया जाता है। मूर्तियों के विसर्जन के पश्चात कृत्रिम कुंडों में स्थित पानी को उसी स्थानपर छोडे जाने के कारण वह पानी निकट के जलस्रोत में अथवा गटर में जाकर मिलता है। पालिका प्रशासन ने इस अभियान को चलाकर निश्चित रूप से कौनसा प्रदूषण रोका ?, यह प्रश्न भी उपस्थित होता है ! इसके विपरीत जनताद्वारा करों के माध्यम से दिए गए करोडों रुपए का धन व्यर्थ ही हो गया, सैकडों प्रशासनिक कर्मचारियों के सहस्रो मनुष्यघंटे व्यर्थ हो गए और हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं भी आहत हुईं !
इतनी अयोग्य एवं अध्ययनहीन संकल्पनाओं को चलानेवालों के विरोध में शासन कोई कार्रवाई करेगा अथवा नहीं ? शासन इसे स्पष्ट करे ! श्री. सुनील घनवट ने यह मांग की है !
महाराष्ट्र प्रदूषण मंडल, इस प्रकार के धर्मविरोधी उपक्रम चलाने की अपेक्षा खडिया मिट्टी से बनाई जानेवाली और नैसर्गिक रंगों से रंगाई जानेवाली मूर्तियां बनाने हेतु मूर्तिकारों का उद्बोधन कर उनको प्रोत्साहित करें और उसके लिए अनुदान दे, साथ ही प्लास्टर ऑफ पॅरिस एवं कागज के लुगदे से बनाई जानेवाली मूर्तियोंपर भी प्रतिबंध लगाए, समिति की ओर से ये भी मांग की गई हैं !
श्री. घनवट ने ऐसा भी कहा है कि, जलप्रदूषण के लिए कारणीभूत मुलभूत घटकोंपर अर्थात राज्य में प्रतिदिन २५७१.७ दशलक्ष लिटर अतिदूषित धोवनजल को बिना किसी प्रक्रिया के यथास्थिति में नदी, नालों एवं जलस्रोतों में छोडा जाता है, इस संदर्भ में शासन क्या उपाययोजना कर रहा है ?, यह भी स्पष्ट करें !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात