बकरीद पर कुर्बान किए गए जानवरों की ‘तेरहवीं’ मनाने के लिए पुलिस ने गौरक्षकों को रोका

महाराष्ट्र पुलिस ने गौरक्षकों को बकरीद पर बलि दिए गए जानवरों की “तेरहवीं” मनाने से रोक दिया। जनसत्ता समाचापत्र में छपे समाचार के अनुसार बजरंग दल के स्थानीय कार्यकर्ता यवतमाल जिले वसंत नगर क्षेत्र में ‘गायों की मौत पर शोक’ जताने के लिए इकट्ठा हुए थे। गौरक्षकों ने पितृपक्ष को देखते हुए हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार मारे गये जानवरों की तेरहवीं करना चाहते थे।

इस कार्यक्रम में समस्त हिंदू आघाडी के मिलिंद एकबोटे मुख्य अतिथि थे। महाराष्ट्र पुलिस को व्हाट्सऐप पर “तेरहवीं” के निमंत्रण बांटे जाने की खबर मिल गर्इ। पुलिस टीम ने आयोजकों से कार्यक्रम रोकने और वहां लगे टेंट वगैरह हटाने के लिए कहा।

बता दें कि, एक सितंबर को मिलिंद एकबोटे ने गायों की तस्करी के बारे में पुलिस को सूचना दी थी किंतु पुलिस ने उस पर कार्रवाई नहीं की।

पुलिस ने व्हाट्सऐप संदेश देखते ही त्वरित कार्रवाई की। पुलिस ने बताया कि, उन्होंने राज्य भर के स्वघोषित गौरक्षकों की सूची तैयार की है और इसे जल्द पूरे सूबे में साझा किया जाएगा। सूची में शामिल कथित गौरक्षकों पर पुलिस नजर रखेगी । पुलिस ने कहा है कि, मुस्लिम कारोबारियो का उत्पीडन रोकने के लिए एक विशेष हेल्पलाइन नंबर भी जारी करने की योजना बना रही है।

यह घटना देखकर मन में कुछ प्रश्न उत्पन्न होते है

१. यहां गोरक्षकों ने केवल गोवंश के मौत पर शोक जताने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें कोर्इ आन्दोलन या हिंसा का रूप नहीं था । फिर भी पुलिस ने इस कार्यक्रम को रोका, इससे पुलिस का हिन्दुद्वेष ही ध्यान में आता है ।

२. पुलिस कहती है की उन्होंने गौरक्षकों की सूची बनार्इ है तथा वे उनपर नजर रखेंगे । राष्ट्र तथा धर्म का कार्य करनेवाले सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिती जैसे हिन्दू संगठनों के कार्यक्रमों पर भी पुलिस ‘नजर’ रखती है । यदि इस प्रकार का ध्यान आतंकी गतिविधीयोंपर पुलिस ने दिया होता, तो देश आज तक आतंकवाद मुक्त हो जाता ।

३. हाल ही में पुसद में पुलिस के सामने ही जिहादी कसार्इयों ने गोरक्षकों पर आक्रमण किया परंतु पुलिसने उलटा हिन्दुआें को ही बन्दी बनाया । इससे यहीं ध्यान में आता है की गोरक्षकों के विरूद्ध तत्परता से कारवार्इ करनेवाली पुलिस गोरक्षकों पर आक्रमण करनेवालों के विरूद्ध कारवार्इ करना तो दूर, उलटा गोरक्षकों पर ही कारवार्इ करती है । यदि एेसी घटनाएं बार-बार होती रही, तो यदि हिन्दूआें की भावनाआें का प्रकोप हुआ तो उसका दायित्व किसपर होगा ?

४. कुछ वर्ष पहले महाराष्ट्र में किसानों के आन्दोलन पर गोलीबारी करनेवाली पुलिस ने २०१२ में आजाद मैदान पर हुए दंगो के समय जिहादीयोंपर कारवार्इ ना करते हुए उलटा उनसे ही मार खार्इ थी । किसानों तथा गोरक्षकों पर अपना पराक्रम दिखानेवाली पुलिस का पराक्रम जिहादी धर्मांध सामने आते ही कहा लुप्त हो जाता है, एैसा प्रश्न किसी के भी मन में आ सकता है ?

५. मुस्लिम कारोबारियों का उत्पीडन रोकने के लिए विशेष हेल्पलाइन नंबर की योजना बनानेवाली पुलिस गोरक्षकों पर हो रहे आक्रमण रोकने के लिए कोर्इ हेल्पलाइन नहीं बनाती, यह पुलिस का दोगलापन नहीं तो क्या है ?

६. महाराष्ट्र में गोहत्या प्रतिबन्ध कानून है, उसका पालन करते हेतु गोरक्षक पुलिस को सहायता करते है । किंतु कानून के रक्षक ही आज कानून के भक्षक बन गोवंश की हत्या करनेवाले कसार्इयों का ही रक्षण कर रहे है, यह इस घटना से प्रतीत होता है ।

लगता है की ‘हम गोमाता का रक्षण नहीं करेंगे आैर न हि किसी को करने देंगे’ एेसी आज के पुलिस की वृत्ती बन गर्इ है ।

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