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२१ सितंबर से शुरू होंगे शारदीय नवरात्र, आइए जानते है नवरात्रि का क्या है महत्व ?

नवरात्रि महिषासुर मर्दिनी मां श्री दुर्गादेवीका त्यौहार है । देवीने महिषासुर नामक असुरके साथ नौ दिन अर्थात प्रतिपदासे नवमीतक युद्ध कर, नवमीकी रात्रि उसका वध किया । उस समयसे देवीको ‘महिषासुरमर्दिनी’ के नामसे जाना जाता है । जगमें जब-जब तामसी, आसुरी एवं क्रूर लोग प्रबल होकर, सात्त्विक, उदारात्मक एवं धर्मनिष्ठ सज्जनोंको छलते हैं, तब देवी धर्मसंस्थापना हेतु पुनः-पुनः अवतार धारण करती हैं । उनके निमित्त से यह नवरात्रि का व्रत है ।

अनेक परिवारों में यह व्रत कुलाचार के स्वरूप में किया जाता है । आश्विन की शुक्ल प्रतिपदा से इस व्रत का प्रारंभ होता है ।

नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना करते हैं । घटस्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत  शक्तितत्त्व का घटमें आवाहन कर उसे कार्यरत करना । कार्यरत शक्तितत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती हैं । कलश में जल, पुष्प, दूर्वा, अक्षत, सुपारी एवं सिक्के डालते हैं ।

घटस्थापना की विधि में देवी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है । घटस्थापना की विधि के साथ कुछ विशेष उपचार भी किए जाते हैं । पूजाविधि के आरंभ में आचमन, प्राणायाम, देशकालकथन करते हैं । तदुपरांत व्रतका संकल्प करते हैं । संकल्प के उपरांत श्री महागणपतिपू्जन करते हैं । इस पूजन में महागणपति के प्रतीकस्वरूप नारियल रखते हैं । व्रतविधान में कोई बाधा न आए एवं  पूजास्थलपर देवीतत्त्व अधिकाधिक मात्रा में आकृष्ट हो सकें इसलिए यह पूजन किया जाता है । श्री महागणपति पूजन के उपरांत आसनशुद्धि करते समय भूमिपर जलसे त्रिकोण बनाते हैं । तदउपरांत उसपर पीढा रखते हैं । आसनशुद्धि के उपरांत शरीरशुद्धि के लिए षडन्यास किया जाता है । तत्पश्चात पूजासामग्री की शुद्धि करते हैं ।

नवरात्रि महोत्सव में कुलाचारानुसार घटस्थापना एवं मालाबंधन करें । खेतकी मिट्टी लाकर दो पोर चौडा चौकोर स्थान बनाकर, उसमें पांच अथवा सात प्रकारके धान बोए जाते हैं । इसमें (पांच अथवा) सप्तधान्य रखें । जौ, गेहूं, तिल, मूंग, चेना, सांवां, चने सप्तधान्य हैं ।

कुछ स्थानोंपर जौ की अपेक्षा अलसी का, चावल की अपेक्षा सांवां का एवं कंगनी की अपेक्षा चने का उपयोग भी करते हैं । मिट्टी पृथ्वीतत्त्व का प्रतीक है । मिट्टी में सप्तधान के रूप में आप एवं तेज का अंश बोया जाता है ।

जल, गंध (चंदन का लेप), पुष्प, दूर्वा, अक्षत, सुपारी, पंचपल्लव, पंचरत्न व स्वर्णमुद्रा अथवा सिक्के आदि वस्तुएं मिट्टी अथवा तांबे के कलश में रखी जाती हैं ।

सप्तधान एवं कलश (वरुण) स्थापना के वैदिक मंत्र यदि न आते हों, तो पुराणोक्त मंत्रका उच्चारण किया जा सकता है । यदि यह भी संभव न हो, तो उन वस्तुओं का नाम लेते हुए ‘समर्पयामि’ बोलते हुए नाममंत्र का विनियोग करें । माला इस प्रकार बांधें कि वह कलश में पहुंच सके ।

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