माता वैष्णो देवी जिस पवित्र त्रिकुटा पहाड पर विराजमान हैं उसका निर्माण ५० करोड वर्ष पहले समुद्र के गर्भ में हुआ । बाद में भारतीय प्लेट के यूरेशिया की प्लेट से टकराने के कारण से यह लगभग ५ करोड वर्ष पहले बाहर आया ।
जियोलोजी की भाषा में इस पहाड का नाम सिरबन है । इस पर पाए जानेवाले पत्थरों को डोलोस्टोन (चूना पत्थर) के नाम से जाना जाता है । इसकी विशेषता यह है कि, यह कैल्शियम कार्बोनेट से बना है । इसमें काफी मात्रा में मैगनिशियम कार्बोनेट भी है ।
इस पहाड का अध्ययन करने वाले जम्मू विश्वविद्यालय के जियोलोजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर नवीन हक्कू ने बताया कि, लगभग ५० करोड वर्ष पहले इस पहाड का निर्माण समुद्र के अंदर कई चरणों में हुआ । उस समय इस पूरे इलाके में गहरा समुद्र था ।
करोडों वर्ष तक चलती रही पर्वत बनने की प्रक्रिया
कैल्शियम कार्बोनेट के लगातार एक स्थान पर जमने के कारण इसका निर्माण शुरू हुआ । यह प्रक्रिया लगातार करोडों वर्ष तक चलती रही और इसका निर्माण हुआ । इसकी उम्र का पता लगाने के लिए इस पर पाए गए ब्लू ग्रीन एलगी (शैवालों) के सूक्ष्म जीवाश्मों का अध्ययन किया गया ।
इन शैवालों के सुक्ष्म बीज बाहर निकल आते हैं । इन बीजों के अध्ययन से पहाड की उम्र पता चलती है । इसके अलावा लेड (शीशा), यूरेनियम और रेनियम जैसे तत्वों के अध्ययन से भी इसकी उम्र का पता लगाया गया । इन तत्वों की थोडी मात्रा त्रिकुटा पहाड की चट्टानों में बची हुई है । उन्होंने बताया कि, इन तत्वों की कम मात्रा का इसी से पता चलता है कि, एक करोड कणों में से मात्र एक कण है ।
इन तत्वों का पता लगाने के लिए रेडियोएक्टिविटी का अध्ययन किया जाता है । इसके तहत इन तत्वों के क्षरण से पता लगाया जाता है कि, उसकी उम्र कितनी है । उदाहरण स्वरूप यूरेनियम लंबे समय के बाद शीशा बन जाता है ।
समुद्र के अंदर से बाहर निकला पहाड
उन्होंने बताया कि, भारतीय प्लेट के यूरेशिया की प्लेट से टकराने के कारण समुद्र के अंदर के पहाड बाहर निकल आए । उसी हिसाब से समुद्र भी पीछे हटता गया और पहाडों के साथ थल का हिस्सा भी बाहर आ गया ।
इस लंबी प्रक्रिया की वजह से ही जिस पहाड पर माता वैष्णो देवी विराजमान हैं वह बाहर आया । इतने पुराने पहाड कई अन्य हिस्सों में भी मिलते हैं । मध्यप्रदेश की विंध्य रेंज, हिमाचल और पाकिस्तान के अनोटाबाद और मुजफ्फराबाद में भी मिलते हैं ।
स्त्रोत : जनसत्ता