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मुस्लिम पार्षद की मांग : डीएवी स्कूल में बंद हो मंत्रों का पाठ

गुजरात के अहमदाबाद निवासी एक मुस्लिम नेता ने स्कूलों में बच्चों से जबरदस्ती मंत्रों का पाठ कराने पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए इसे दूसरे धर्म के छात्रोंपर जबरदस्ती थोपने जैसा करार दिया। यहां के मकतमपुरा के पार्षद हाजी असरार बेग मिर्जा ने सीबीएसई को पत्र लिखकर स्कूलों को इस संबंध में निर्देश देने का आग्रह किया है।

सीबीएसई को लिखे पत्र में मुस्लिम नेता ने पूरे देश में फैले डीएवी स्कूलों को यह निर्देश देने का आग्रह किया कि, बच्चों के साथ किसी धर्म विशेष के त्योहार में भाग लेने के लिए जबरदस्ती नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा, ‘स्कूलों को रमजान ईद और ईद-मिलाद त्योहारों को भी मनाना चाहिए। स्कूल सभी बच्चों को वेद, मंत्र या किसी भी धार्मिक त्योहार को मनाने के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकता। मुस्लिम बच्चों को योग करने या फिर लाउडस्पीकर पर गायत्री मंत्र सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।’

यह वार्ता पढकर कुछ सूत्रोंपर विचार करने की आवश्यकता है, जो इस प्रकार है :

१. सबसे पहली बात तो यह है कि, डीएवी का अर्थ है ‘दयादंन अँग्लो-वेदिक’ । इसी से हमें पता चलता है कि, डीएवी स्कूल स्वामी दयानंद सरस्वती जी से प्रेरणा लेकर स्थापित हुए है । आज उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज वैदिक हिन्दू धर्म का कार्य बढाने के निरंतर प्रयास कर रहा है । क्या मुस्लिम नेता को यह बात पता नहीं है ? यदि यह बात उन्हें पता है तो उन्होंने ही मुस्लिमों को कहना चाहिए की वे अपने बच्चों को डीएवी स्कूल में ना भेजे ।

२. कर्इ मुस्लिम स्कूल एैसे है, जहां सरकारी अनुदान लेकर भी इस्लाम के विषय में पढाया जाता है । इन स्कूलों में अन्य धर्मों के बच्चे भी आते है । तो क्या मुस्लिम नेता मुस्लिम स्कूलों में इस्लाम के विषय में ना पढाए एैसी मांग करने का साहस दिखाएंगे ? इतना हीं नही, मस्जिदों के ध्वनिक्षेपकों के माध्यम से दिन में ५ बार हिन्दूआें को भी निष्कारण ही अजान सुननी पडती है । मुस्लिम पार्षद हाजी मिर्जा पहले इसे बंद करवा कर दिखा दे ।

३. भारतीय संविधान के अनुसार सभी को अपने धर्म के अनुसार आचरण करना तथा धर्मप्रसार की अनुमती है । यदि डीएवी स्कूल में गायत्री मंत्र, वेद पढाते है, यज्ञ होते है, तो इसमें गलत क्या है ? मुस्लिम नेता कहते है की डीएवी स्कूल में भी रमजान र्इद मनानी चाहिए, परंतु उन्हें एैसा कहने का कोर्इ अधिकार ही नहीं है । यदि वे ‘सर्वधर्मसमभाव’ चाहते है, तो प्रथम मुस्लिम स्कूल्स तथा मदरसों में श्रीकृष्ण जयंती, नवरात्रि जैसे त्यौहार मनाने के लिए क्यों नहीं कहते ? क्या केवल हिन्दूआें ने ही ‘सर्वधर्मसमभाव’ का ठेका लेकर रखा है क्या ?

४. गौर करने की बात यह भी है कि, आज हिन्दूबहुल भारत में एक मुस्लिम नेता हिन्दू स्कूल में वेदमंत्रों का पठण बंद करने की मांग करता है । परंतु पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे इस्लामी देशों में हिन्दू नेता तो मांग करना दूर, आजादी से ठीक तरह बोल भी नहीं पाते । यह स्थिती हिन्दूआें की ‘अतिसहिष्णुता’ तथा राजनेताआें की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का परिणाम है । यह स्थिती बदलने के लिए हिन्दूआें को जागरूक होकर संगठित होना यही एकमात्र उपाय है ।

५. कर्इ बार यह देखा गया है कि, मुस्लिम राजनेता तथा लोकप्रतिनिधी अपने धर्म के विषय में अत्यंत जागरूक, सतर्क होते है । परंतु लगभग सभी हिन्दू राजनेता इस प्रकार की सतर्कता हिन्दूआें की समस्याआें के कभी नहीं दिखाते । वे केवल तुष्टीकरण के नीति में ही लगे रहते है ।

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