तिवरंतपुरम : आज तक पढार्इ, नौकरी, राजनीति में बसा ‘आरक्षण‘ अब हिन्दुआें के मंदिरों तक पहुंच चुका है । यह भविष्य में हिन्दुआें के प्रत्येक कार्य में अपना पैर फैलाएगा एेसे ध्यान में आता है । केरल में प्रतिदिन हिन्दुआें की हत्या, लव जिहाद, हिन्दुआें का धर्म-परिवर्तन के मामले सामने आ रहे थे । परंतु अब हिन्दुआें के पवित्र मंदिरो में आरक्षण के तहत पुजारीयों की नियुक्ति करना यानी हिन्दू धर्म को पूर्णतः नष्ट करने का बडा षडयंत्र ही लगता है । एबीपी माझा में छपे समाचार के अनुसार, केरल में मंदिरों का रखरखाव और ध्यान रखने वाली संस्था त्रावनकोर देवस्वाम बोर्ड ने मंदिरों के पुजारियों का चयन आरक्षण की प्रक्रिया के तहत किया है । त्रावनकोर देवस्वाम बोर्ड ने कुल ३६ एससी और पिछड़े वर्ग के लोगों की नियुक्ति मंदिर में पूजा करने के लिए की है । गुरूवार को त्रावनकोर बोर्ड ने कुल ६२ लोगों की सूची जारी की है जिनका चयन टेस्ट और इंटरव्यू के आधार पर लिया गया है ।
बोर्ड के अध्यक्ष राजगोपालन नायर ने कहा कि, यह पहला मौका है जब मंदिर में पुजारियों की नियुक्ति के लिए आरक्षण की प्रक्रिया को अपनाया गया है । उन्होंने कहा, “हमने कुछ दिनों पहले पिछड़े वर्ग के कुछ पुजारियों की नियुक्ति की थी जिन्होंने मेरिट के जरिए इस बार चयन प्रक्रिया का निर्धारण किया । त्रावनकोर देवस्वाम बोर्ड की स्थापना १९४९ में हुई थी और पुजारियों के लिए एस सी और ओबीसी के चयन की मांग दशकों से हो रही थी परंतु इसके काफी विरोध के कारण ऐसा करना संभव नहीं हो सका था परंतु आज हम ऐसा संभव कर सके हैं ।
नायर के अनुसार, लोक सेवा आयोग की प्रक्रिया के तहत ही पुजारियों की नियुक्ति की गई है । अभी ये नियुक्ति प्रक्रिया परंतु त्रावनकोर बोर्ड के लिए की गई है परंतु भविष्य में कोचीन और मालाबार बोर्ड के लिए भी पुजारियों की नियुक्ति भी इसी प्रक्रिया के तहत की जाएगी ।
त्रावनकोर बोर्ड के प्रेसिडेंट ने भी निर्णय की सराहना की और कहा कि, पुजारियों के तौर पर दलितों और पिछड़े वर्ग की नियुक्ति बेहद जरूरी थी और नियुक्ति बोर्ड ने जिन लोगों का चयन किया है उन्हीं की नियुक्ति की जाएगी ।
गोपालकृष्णन ने सबरीमाला अयप्पा टेंपल के बारे में भी बात की जिसमें दलित पुजारी की नियुक्ति का मामला हाइकोर्ट में है । गोपालकृष्णन के अनुसार पुराने नियमों के अनुसार वहां परंतु ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति की जा सकती है ऐसे में हाइकोर्ट के निर्णय अनुसार वहां नियुक्ति पर फैसला लिया जाएगा ।
यहां हम ध्यान में ले सकते है कि . . .
१. भगवान कभी किसी को आरक्षण नही देते । भगवान ने जो प्रकृति की रचना की है उस में भी आरक्षण नही है । प्रत्येक व्यक्ति, जीव तथा निर्जिव वस्तू को अपने प्रारब्ध के अनुसार जीवन बिताना पडता है ।
२. कुछ लोगों को लगेगा कि, जो पिछडे जाती के लोग है क्या उन्हे पूजा करने का कोर्इ अधिकार नहीं है क्या ? यहां वे ध्यान में ले कि, धर्मशास्त्र में प्रत्येक कृत्य के पिछे नियम रहते है । वह नियम कोर्इ भी अपने मन से बदल नही सकता ।
३. हमे यह भी ध्यान में लेना चाहिए कि, हिन्दू धर्म में जाती व्यवस्था अस्तित्व में ही नही है । हिन्दू धर्म में वर्णाश्रम व्यवस्था है । वर्ण व्यवस्था के विषय भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट रुप से कहां है कि प्रत्येक व्यक्ति के अपने गुण तथा कर्म के अनुसार उस व्यक्ति का वर्ण निश्चित होता है । एेसा होते हुए भी मंदिरों में आरक्षण पर पुजारीयों की नियुक्ति करनेवाले क्या स्वयं को भगवान से भी श्रेष्ठ समझते है ? यह सब मंदिर सरकारीकरण के दुष्परिणाम है । हिन्दुआें ने संगठित होकर एेसे लोगों का विरोध करना आवश्यक है ।
४. यहां पुजारियों का चयन इंटरव्ह्यु लेकर किया गया । अब प्रश्न यह उठता है कि, इंटरव्ह्यु लिया किसने ? क्या इंटरव्ह्यु लेने के लिए हिन्दू धर्म के संत-महंत को बुलाया गया था ?