माघ कृष्ण भानु ७, कालाष्टमी , कलियुग वर्ष ५११४
सांगली – ३१ जनवरीको यहांके संत कोटणीस पथपर प.पू. कोटणीस महाराजकी पुण्यतिथिके अवसरपर आयोजित समारोहमें पुणेके वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. र.ना. शुक्लने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि अष्टसिद्ध थे । उन्हें विशेष ज्ञान अवगत था । यह ज्ञान उन्होंने प्रत्यक्ष अनुभव एवं प्रयोगसे प्राप्त किया था । दुर्भाग्यसे यह ज्ञान जिन ग्रंथोंमें है, उनमेंसे अनेक प्राचीन ग्रंथों एवं पोथियोंका आज बाहरके देशोंमें विक्रय हो रहा है । इन ग्रंथोंकी सहायतासे वे देश अतिप्रगतिशील हो गए । यह अमूल्य ज्ञान भारतमें अधिकाधिक संजोने हेतु सावधानी रखना अनिवार्य है ।
डॉ. र.ना. शुक्लने कहा….
१. विश्वामित्र संहितामें ५१ वें अध्यायमें चंद्रपर कैसे जाएं, वहां १ ग्राम से १ टनतक वजनकी वस्तु ले जानेके लिए कितनी ऊर्जाकी आवश्यकता है तथा वह ऊर्जा कैसे प्राप्त की जा सकती है, इन बातोंका वर्णन है ।
२. प.पू. कोटणीस महाराजके मंदिरमें ३० सहस्र ‘हर्ट्झ’ ऊर्जा है ।
३. प्राचीन समयकी पोथियां सोने एवं चांदीके अक्षरोंमें लिखी गई थीं । इसलिए रात्रिमें भी पढी जा सकती थीं ।
४. ईश्वरने हमें ३ लाख ४२ सहस्र ऊर्जाकेंद्र दिए हैं । इन ऊर्जाकेंद्रोंकी शक्ति अल्प-अधिक होनेसे रोग निर्माण होते हैं । अपने पास प्रत्येक रोगपर मंत्र हैं, जो अपने ऋषिमुनियोंने ढूंढे हैं ।
श्रीकृष्णके बोल आज भी अस्तित्वमें !
डॉ. र.ना. शुक्लने कहा कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती । मैंने वर्ष १९८६ में कुरुक्षेत्रपर विशेष यंत्रकी सहायतासे श्रीकृष्णद्वारा द्वापारयुगमें बताई गई गीताके श्लोकोंका शोध किया, तो मुझे १, ३, ७, १५, १७ अध्यायके ८० प्रतिशत श्रीकृष्णके बोलोंका अस्तित्व दिखाई दिया ।
स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात