‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ।’ अर्थात अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए यह उपनिषदों की आज्ञा है । अपने घरमें सदैव लक्ष्मी का वास रहे, ज्ञान का प्रकाश रहे, इसलिए हरकोई बडे आनंद से दीपोत्सव मनाता है । अयोध्या के राजा प्रभु श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे थे । अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था । श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए । तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं । इसे उचित पद्धतिसे मनाकर आप सभी का भी आनंद द्विगुणित हो, यह शुभकामना !
१. दीपावली का पूर्वायोजन
दीपावली आनेसे पूर्व ही लोग अपने घर-द्वार की स्वच्छता पर ध्यान देते हैं । घरका कूडा-करकट साफ करते हैं । घर में टूटी-फूटी वस्तुओं को ठीक करवाकर घर की रंगाई करवाते हैं । इससे उस स्थान की न केवल आयु बढती है, अपितु आकर्षण भी बढ जाता है । वर्षाऋतु में फैली अस्वच्छता का भी परिमार्जन हो जाता है ।
२. दीप जलाना
दीपावली में प्रतिदिन सायंकाल में देवता एवं तुलसी के समक्ष, साथ ही द्वार पर एवं आंगन में विविध स्थानों पर तेल के दीप लगाए जाते हैं । यह देवता तथा अतिथियों का स्वागत करने का प्रतीक है । आजकल तेल के दीप के जगह मोम के दीप लगाए जाते हैं अथवा कुछ स्थानों पर बिजली के दीप भी लगाते हैं । परंतु शास्त्र के अनुसार तेल के दीप लगाना ही उचित एवं लाभदायक है । तेल का दीप एक मीटरतक की सात्त्विक तरंगें खींच सकता है । इसके विपरीत मोम का दीप केवल रज-तमकणों का प्रक्षेपण करता है, जबकि बिजली का दीप वृत्ति को बहिर्मुख बनाता है । इसलिए दीपों की संख्या अल्प ही क्यों न हो, तेल के दीप की ही पंक्ति लगाएं ।
दीपावली में दीप खरीदते समय हम एक संकल्प कर सकते कि, इस दीपावली हम चीनी लाइट्स या चीनी दीप नहीं, अपितु भारत में बने मिट्टी के दीप जलाएंगे । इससे देश में मिट्टी के दीप बनानेवालों को प्रेरणा मिलेगी तथा आए दिन डाेकलाम सीमा पर विवाद उत्पन्न कर भारत में लगातार घुसपैठ करनेवाले चीन के उत्पादनों का बहिष्कार करना भी संभव होगा ।
३. आकाशदीप अथवा आकाशकंदील
आकाशदीप की संकल्पना त्रेतायुग में आई । रामराज्याभिषेक के समय श्रीराम के चैतन्य से पुर्नीत वायुमंडल का स्वागत भी प्रत्येक घर में ऐसे ही आकाशदीप टांग कर किया गया ।आकाशदीप की मूल रचना कलश समान होती है । यह मुख्य रूप से चिकनी मिट्टी से बनाया जाता है । इसके मध्यभाग तथा ऊपर के भाग की गोलाकार रेखा में एक-दो इंच पर गोलाकार छेद होते हैं । अंदर घी का दीया रखने हेतु मिट्टी की बैठक होती है ।
वर्तमान में चिकनी मिट्टी से बनाए आकाशदीप नही मिलते इस कारण एेसे आकाशदीप लगाना संभव नही हैं । आज बजार में अनेक प्रकार एवं अनेक आकार के आकाशदीप उपलब्ध हैं । इनमें से सात्त्विक आकाशदीप का चयन हम कर सकते ताकी हमें इसके माध्यम से चैतन्य मिले ।
लंबगोल आकार का कंदील सात्त्विक होता है । इसलिए आकाशदीप खरीदते समय लंबगोल आकार के कंदील का चयन करें । यहां भी हम ध्यान दे सकते है कि, चीनी बनावट के आकाशदीप के बजाए भारत में बने आकाशदीप खरीदें । अधिक पढें
४. दीपावली में कौनसी रंगोलियां बनाएं ?
दीपावली के पूर्वायोजन का ही एक महत्त्वपूर्ण अंग है, रंगोली । दीपावली के शुभ पर्व पर विशेष रूपसे रंगोली बनाने की प्रथा है । रंगोली के दो उद्देश्य हैं – सौंदर्य का साक्षात्कार एवं मंगल की सिद्धि । रंगोली देवताओं के स्वागत का प्रतीक है । रंगोली से सजाए आंगन को देखकर देवता प्रसन्न होते हैं । इसी कारण दिवाली में प्रतिदिन देवताओं के तत्त्व आकर्षित करनेवाली रंगोलियां बनानी चाहिए तथा उस माध्यम से देवतातत्त्व का लाभ प्राप्त करना चाहिए ।
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५. पटाखे
दीपावली पर छोटे-बड़े, हर आयुवर्ग के लोग पटाखे जलाकर आनंद व्यक्त करते हैं; परंतु क्या वास्तव में पटाखों का ऐसा उपयोग उचित है ? पटाखे जलाने का अर्थ है, बारूद के माध्यम से उत्सव की शोभा बढाने का एक प्रयास ! इसकी तुलना में, उससे होनेवाली हानि कहीं अधिक है । पटाखे जलाने से होनेवाले प्रदूषण के कारण आरोग्य की हानि होने के साथ ही आर्थिक हानि भी होती है । आजकल पटाखोंपर देवता, राष्ट्रपुरुषों के चित्र बने होते हैं, उदा. लक्ष्मी छाप बम, कृष्णछाप फुलझडी, नेताजी छाप पटाखा इत्यादि । ऐसे पटाखे जलाकर देवताओं के चित्रों के चिथडे कर, हम अपनी ही आस्था को पैरोंतले रौंदते हैं । इससे हमारी आध्यात्मिक हानि भी होती है । हिंदू जनजागृति समिति, सनातन संस्था जैसे अन्य समविचारी संगठनोंके साथ सन २००० से पटाखोंके कारण होनेवाली हानिको रोकने हेतु जनजागृति अभियान चला रहीं हैं । आप भी इसमें सहभागी हो जाइए । अधिक पढें