हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘प्रथम पत्रकार-संपादक अधिवेशन’ का प्रारंभ !
अंग्रजोंद्वारा भारतपर थोपा गया लोकतंत्र असफल सिद्ध !
रामनाथी (गोवा) : स्वातंत्र्य के पश्चात ब्रिटीशों ने लोकतंत्र के नामपर जो व्यवस्था थोंपी, वो भारत की परंपरा एवं नागरिकों को विश्वास में न लेते हुए ही थोपी गई ! ऐसा क्यों हुआ ?, इसका अध्ययन बहुत ही अल्प मात्रा में किया जाता है । वर्तमान के लोकतंत्र में ‘भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था सब से अच्छी है’, ऐसा लोगों को लगे; इसके लिए दीर्घकालीन षडयंत्र के माध्यम से प्रचारतंत्र का उपयोग कर नागरिकों के मन पर ऐसा अंकित किया गया । यह व्यवस्था सचमुच ही इतनी अच्छी है, तो सर्वसामान्य लोगों को अभी भी उनके अधिकारों के लिए आंदोलने क्यों चलानी पडती हैं, इसपर विचार होना चाहिए ! बहुसंख्यकों को दूर हटाकर केवल अल्पसंख्यकों का ही विचार करनेवाला नहीं, अपितु समाज का सर्वांगीण विकास करनेवाला छत्रपति शिवाजी महाराज की भांति ‘हिन्दू राष्ट्र’ आवश्यक है ! हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने ऐसा प्रतिपादित किया ।
यहां के रामनाथी के सनातन आश्रम में ७ अक्तूबर को हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘प्रथम पत्रकार-संपादक अधिवेशन’ का प्रारंभ हुआ । इस अधिवेशन के उद्धाटन के समय श्री. शिंदे ऐसा बोल रहे थे । ९ अक्तूबर तक चलनेवाले इस अधिवेशन में विविध समाचारवाहिनि एवं समाचारपत्रों के संपादक एवं पत्रकार सम्मिलित हुए हैं । उद्धाटन के समय नंदुरबार के दैनिक ‘तापीकाठ’ के संपादक श्री. चंद्रशेखर बेहरे, पुणे के मासिक ‘हिन्दुबोध’ के संपादक श्री. विवेक सिन्नरकर, सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस एवं हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्तां श्री. रमेश शिंदे इनके हाथों दीपप्रज्वलन किया गया । सनातन साधक-पुरोहित पाठशाला के पुरोहित श्री. ईशाान जोशीद्वारा किए गए शंखनाद से अधिवेशन का प्रारंभ हुआ ।
श्री. रमेश शिंदे ने आगे कहा कि . . .
१. सांप्रत का लोकतंत्र ‘अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक’ का अयोग्य विचार करने की शिक्षा देता है । उसके कारण किसी व्यक्ति जब समाज को योग्य दिशानिर्देश देने का प्रयास करता है, तब उसके मत का मूल्य केवल एक ही होने से उसका मत योग्य होकर भी उस व्यक्ति को तथा उसके मत को नकारा जाता है, और इसीसे लोकतंत्र की निरर्थकता सिद्ध होती है !
२. आज की व्यवस्था में हर स्तर पर हिन्दू धर्म का विरोध करनेवालों को ही नियुक्त किया गया । उनकेद्वारा हिन्दुओं को अपनी प्राचीन भारतीय कला, विद्या एवं परंपराओं से इतना दूर ले जाया गया कि उससे कुछ हिन्दुओं को अपना हिन्दू होना ही अपराध लगने लगा !
३. दक्षिण भारत की जनता को उत्तर भारतीयों की हिंदी को भाषा के रूप में अच्छी नहीं लगती; परंतु उनको विदेशी होकर भी अंग्रेजी भाषा अपनी लगती है ! इस व्यवस्था के माध्यम से देश को तोडने का षडयंत्र चल रहा है । इन शक्तियों के विरोध में किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जाती, यही लोकतंत्र की सबसे बडी असफलता है !
४. आधुनिक हिन्दूविरोधी प्रचारतंत्रद्वारा नष्ट हो रही हिन्दू संस्कृति को पुनर्जिवित करने हेतु इसी प्रचारतंत्रद्वारा ‘हिन्दू राष्ट्र’ के विचार को प्रवाहित किया जाना आवश्यक है !
हिन्दू राष्ट्र हेतु हिन्दू विचारकों की शृंखला सिद्ध होनी, आवश्यक ! – श्री. चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था
सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने कहा, ‘‘पत्रकार एवं संपादक तो समाज को जागृत करनेवाली विचारशक्ति है ! विचारों की शक्ति किसी भी शस्त्र की अपेक्षा अधिक होती है । लोकमान्य तिलकजी ने अपने नियतकालिकों से वैचारिक क्रांति के विचार रखे; इसीलिए वे असंतोष के जनक बन गए ! आज की स्थिति में आदर्श राष्ट्ररचना का लक्ष्य रखना बडी चुनौती है । ऐसे समय में हिन्दुत्व की विचारधारा ही समाज का योग्य दिशादर्शन करनेवाली एकमात्र प्रबल विचारधारा है । इसी विचारधारा से हिन्दू राष्ट्र हेतु हिन्दू विचारकों की शृंखला सिद्ध होनी आवश्यक है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात