त्रावनकोर देवासम बोर्ड के अध्यक्ष प्रयार गोपालकृष्णन ने कहा है कि, अगर सुप्रीम कोर्ट महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे भी देता है तो ‘स्वाभिमानी’ और ‘अच्छे परिवारों’ की महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं करेंगी !
सुप्रीम कोर्टद्वारा इस मसले को सुनवाई के लिए संविधान पीठ के पास भेजने के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा कि मासिक धर्म की उम्र से गुजर रहीं महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं देना चाहिए। इस मंदिर का प्रबंधन त्रावनकोर देवासम बोर्ड के पास है। इसने इस मंदिर में १० से ५० साल की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित कर रखा है । (सबरीमाला मंदिर के देवता कार्तिकेय स्वामी / श्री अय्यप्पा स्वयं ब्रह्मचारी है, इसलिए उनकी ब्रह्मचर्य का सम्मान रखने हेतु १० से ५० उम्र की महिलाआें का प्रवेश वर्जित है । इसी के साथ महिलाआें के मासिक धर्म के काल में उनमें ‘रजोगुण’ बढता है, इस कारण वे मंदिर की सात्त्विकता सहन नहीं कर पाएगी । मंदिर में जाना यह हिन्दू धर्म के ‘कर्मकांड’ का एक भाग है, जहां धर्म के सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य है । – संपादक, हिन्दूजागृति)
केरल के देवासम और पर्यटन मंत्री कडाकम्पल्ली सुरेंद्रन ने कहा कि, देवासम बोर्ड के प्रमुख का बयान महिलाओं का अपमान है। इस टिप्पणी के लिए गोपालकृष्णन को माफी मांगनी चाहिए । (धर्मशास्त्र बतानेवाले गोपालकृष्णन जी ने माफी मांगने का प्रश्न ही कहां आता है ? उलटा सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर ‘लव जिहाद’ का अस्तित्व नकारनेवाले केरल सरकार को ही लव जिहाद के पिडीत महिलाआें की माफी मांगनी चाहिए । – संपादक, हिन्दूजागृति)
उन्होंने यह भी कहा कि, माकपा के नेतृत्व की केरल की सरकार लिंग के आधार पर मंदिर में प्रवेश को लेकर भेदभाव के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि इस बारे में कोर्ट का जो भी फैसला होगा सरकार उसका पालन करेगी । (मंदिर के नियम धर्मशास्र के अनुसार बनाए जाते है । धर्म तथा भगवान को ना माननेवाले माकपा को हिन्दूआें के मंदिर के विषय में टिप्पणी करने का कोर्इ अधिकार नहीं है । – संपादक, हिन्दूजागृति)