पुणे – मुहर्रम के अवसर पर निकलनेवाले जुलूस में मुसलमानोंद्वारा ताबूत नचाए जाते है तथा बाद में वह विसर्जित किए जाते है । यहां के संगम पुल के पास नदीपात्र में मुहर्रम होकर १५ दिन बीतने के बाद भी उन ताबूतों के अवशेष पानी में तैर रहे है ।
इस समाचार से यह ध्यान में आता है कि, हिन्दुआें के गणेशमूर्तींयों के विसर्जन पर जलप्रदूषण का कारण देकर नदी में विसर्जन करने से रोकनेवाले तथाकथित बुद्धीवादी एवं पर्यावरणवादी अब मुसलमानों के ताबूतों के विसर्जन पर चूप है । ताबूतों के अवशेष पानी में वैसे ही रह जाने से होनेवाला प्रदूषण अब इन्हें क्यो नहीं दिखता ? क्या प्रदूषण के नियम सिर्फ हिन्दुआें के त्यौहारों के लिए ही है ? इससे पालिका-प्रशासन एवं पर्यावरणवादीयों का दोगलापन सामने आता है ।