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नौ साल से सक्रिय थे बर्दवान विस्फोट मे शामिल बांग्लादेशी चरमपंथी

कार्तिक शुक्ल पक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११६

पश्चिम बंगाल के बर्दवान में हुए विस्फोट के बाद जिस चरमपंथी नेटवर्क का पर्दाफ़ाश हुआ है उसके बारे में सरकार और ख़ुफ़िया एजेंसियों को कम से कम नौ साल पहले ही जानकारी मिल गई थी। विकीलीक्स की वेबसाइट में बीबीसी को ऐसे दो संदेश मिले हैं जिनसे इसकी पुष्टि हो रही है।

अमरीकी अधिकारियों ने जो दो गुप्त संदेश वॉशिंगटन भेजे थे उनमें बताया गया था कि बांग्लादेश के कुछ चरमपंथी और जिहादी गुट पश्चिम बंगाल में घुस आए हैं। ये गुट कुछ मदरसों के ज़रिए हिंसा फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।

अमरीकी अधिकारियों ने २००५ में वॉशिंगटन को जो दो गुप्त संदेश भेजे थे वे पश्चिम बंगाल के गृह सचिव, ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख और जाने-माने मुस्लिम व्यक्तियों की बातचीत पर आधारित हैं।

इनमें लिखा गया था कि जमात-उल-मुजाहिदीन जैसे कई गुट पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई की मदद से पश्चिम बंगाल में घुस गए हैं और यहां अपना नेटवर्क फैला रहे हैं और कुछ मदरसों के ज़रिए काम कर रहे हैं।

चार अगस्त, २००५ को भेजा गया पहला गुप्त संदेश पश्चिम बंगाल के पूर्व गृह सचिव प्रभात रंजन राय से बातचीत पर आधारित हैं।

इसमें कहा गया था कि भारत-बांग्लादेश की सीमा पर बहुत सारे मदरसे बनाए जा रहे हैं जिनकी अनुमति नहीं ली गई है और बांग्लादेश से आए कुछ लोग इन्हीं मदरसों से जिहादी विचारधारा का प्रचार कर रहे हैं।

सरकार

                भारत-बांग्लादेश सीमा, जलांगी बॉर्डर, मुर्शिदाबाद

उस समय पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की सरकार थी। सीपीएम की केंद्रीय समिति के सचिव मोहम्मद सलीम से बीबीसी ने पूछा कि जब इन चरमपंथी समूहों के बारे में पता था तो कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

मोहम्मद सलीम ने कहा, “विकीलीक्स ने यह बात २००५ के केबल के आधार पर यह बात कही हो, लेकिन वाम मोर्चे की सरकार २००१ से ही इसे लेकर चिंतित थी कि सीमा पर कुछ मदरसों से सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश की जा रही थी।”

ख़ास बात यह है कि एक अमरीकी केबल में सीपीएम पर यह आरोप लगाया गया था कि वह अपना वोट बैंक मज़बूत करने के लिए बांग्लादेश से आए लोगों की मदद कर रही थी और उन्हें वोटर कार्ड, राशन कार्ड दिलाती थी।

बर्दवान धमाकों के बाद यह आरोप तृणमूल कांग्रेस पर भी लग रहा है।

‘बड़ी ग़लती’

बर्दवान धमाकों का अभियुक्त हसन मुल्ला

अमरीकी अधिकारियों ने १६ दिसंबर, २००५ को दूसरा केबल भेजा था। यह पश्चिम बंगाल के ख़ुफ़िया विभाग के पूर्व प्रमुख दिलीप मित्रा और रॉ के पूर्व उप निदेशक विभूति भूषण नंदी से बातचीत पर आधारित था। इसमें विस्तार से बताया गया था कि सीमा पर कैसे जिहादी गुट अपने मदरसे चला रहे थे।

पूर्व ख़ुफ़िया अधिकारी गदाधर चटर्जी से हमने पूछा कि नौ साल तक किसी ने इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की ? उन्होंने स्वीकार किया कि इस मामले में चूक हुई है।

ट्रेनिंग

चटर्जी ने कहा, “विदेश से इतने लोग आए, विदेशियों को नियुक्त किया गया। विस्फोटक इकट्ठे किए गए, मदरसों में ट्रेनिंग होती रही और पुलिस या ख़ुफ़िया एजेंसियों को पता भी नहीं चला- यह तो बड़ी ग़लती है।”

बांग्लादेशी जिहादी गुटों के अलावा दोनों केबलों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) पर भी सवाल उठाए गए। इनमें कहा गया कि बीएसएफ़ के कुछ भ्रष्ट कर्मचारी रिश्वत लेकर बांग्लादेश से लोगों को घुसने देते हैं।

बीएसएफ़ के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि अगर यह पता चल जाए कि किस दिन, किस क्षेत्र से बांग्लादेशी भारत में घुसे थे, तो वहां के ज़िम्मेदार अधिकारी को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए।

स्त्रोत : बीबीसी हिंदी

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