संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय के मुश्किलों को कम करने और उनके जीवन स्तर को सुधारने के उद्देश्य से लगभग 45 करोड़ रुपए यानि कि 70 लाख डॉलर की राशि देने की घोषणा की है। यह घोषणा संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सोमवार को रोहिंग्या शरणार्थी संकट पर संकल्प सम्मेलन में की गई।
उन्होंने कहा कि रोहिंग्या के विरुद्ध किया गया अत्याचार सिर्फ शरणार्थी या विस्थापित लोगों के बारे में नहीं है, जिन्होंने सुरक्षा की तलाश में अपना घर छोड़ा बल्कि यह ऐसे अपराध हैं जिसमें हजारों निर्दोष नागरिकों को मारा गया और विस्थापित किया गया। इतना ही नहीं उन्हें उनके ही देश में उनके मूल अधिकारों से वंचित किया गया। इस अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा सहन की गई क्रूरता व परिस्थिति मानवता के विरुद्ध अपराध है। यह मानवता व नैतिक मूल्यों के बुनियादी मानकों, अल्पसंख्यकों के अधिकार व धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता को पूरा नहीं करती है।
इस समाचार से कुछ सूत्र ध्यान में आते है…
१. संयुक्त अरब अमिरात ने लिया हुया यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है । सभी को रोहिंग्याआें का असली रूप क्या है, उसके आतंकीयों से होनेवाले संबंध ज्ञात है । यदि इतनी ही हमदर्दी है तो यूएर्इ स्वयं ही रोहिंग्याआें काे शरण क्यों नहीं देता ?
२. यूएर्इ जो अल्पसंख्यकों की रक्षा करने की तथा उन्हें आर्थिक मदद देने की बात कर रहा है, क्या उसने कभी पाकिस्तान अथवा बांग्लादेश जैसे इस्लामी राष्ट्रो में अल्पसंख्यक हिन्दुआेंपर हो रहे अत्याचारों के विषय में कभी मुंह खोला है ? या उन्हें कभी कोर्इ सहायता करने की बात कही है ?