कार्तिक शुक्लपक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११६
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कराची – पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) से अलग हो चुके आतंकवादी संगठन जमात-उल-अहरार ने एक अंग्रेजी मैगजीन शुरू की है। मैगजीन का नाम ‘अहया-ए-खिलाफत’ (खिलाफत का जन्म) है। अबु ओबैदा अल-इस्लामाबादी इस मैगजीन का संपादक है, जो पाकिस्तानी सेना में अधिकारी रह चुका है। उसका असली नाम डॉक्टर तारिक अली है। करीब नौ साल पहले पाकिस्तानी सेना छोड़ने के बाद उसने लंदन में सर्जरी करना सीखा और धर्मगुरू बन गया। वह हाल ही में जमात-उल-अहरार में शामिल हुआ है। पाकिस्तान सेना के पूर्व अधिकारी के आतंकी संगठन में शामिल होने को वहां कई लोग एक खतरनाक ट्रेंड की शुरुआत के तौर पर देख रहे हैं।
माना जा रहा है कि इस्लामिक स्टेट के रास्ते पर चलकर जमात-उल-अहरार पश्चिमी देशों का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहता है। टीटीपी के प्रवक्ता रह चुके जमात-उल-अहरार के प्रमुख ऐशानुल्लाह अहसान ने कहा, ‘इस मैगजीन को लॉन्च करने का मूल कारण पश्चिमी देशों तक अपना संदेश पहुंचाना है।’ अहसान इस्लामिक स्टेट के सरगना अबु बक्र अल बगदादी को खलीफा मान चुका है। अहसान का कहना है कि बगदादी उसे जो हुक्म देगा, वह उसे हर हाल में मानेगा।
ऐशानुल्लाह अहसान ने एक न्यूज एजेंसी को बताया कि कई भाषाओं में ‘अच्छी’ मैगजीन निकालने की प्लानिंग पिछले कई सालों से चल रही थी। उसने बताया, ‘जब हम पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान का हिस्सा थे, तब हम ऐसी मैगजीन निकालना चाहते थे। लेकिन संगठन के अन्य लोगों की वजह से यह मुमकिन नहीं हो पाया। अब हमारा अपना संगठन है और हम अपने फैसले लेने के लिए आजाद हैं।’अहसान को उम्मीद है कि नई मैगजीन पढ़कर अंग्रेजी बोलने वाले लोग भी तालिबान में भर्ती होंगे। पहले अंक में जंग के अनुभवों, कहानियों और निजी विचारों को आमंत्रित किया गया है, जिन्हें मैगजीन में प्रकाशित किया जाएगा। इस अंक में एक ब्रिटिश जिहादी का लेख भी प्रकाशित किया गया, जिसका शीषर्क है, ‘मैंने जिहाद क्यूं चुना।’ ‘खलीफा के राज में रहने के फायदे’ लेख के अलावा सवाल-जवाबों का एक कॉलम भी प्रकाशित है।
स्त्रोत : दैनिक भास्कर