क्या आपको लगता है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश फिर से एक देश बन सकते हैं ? सन् 1947 से पहले तक ये तीनों देश एक ही मुल्क के अंग थे । आप ऐसा सोचते हों या न सोचते हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय ऐसा जरूर सोचते थे । दीनदयाल उपाध्याय का 25 सितंबर 1916 को यूपी के मथुरा में जन्म हुआ था । 11 फरवरी 1968 को उनका मुगलराय में रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गयी थी । दीनदयाल उपाध्याय ने 24 अगस्त 1953 को पांचजन्य अखबार में “अखंड भारत: ध्येय और साधन” नामक लेख में अपने विचार व्यक्त किए थे । ध्यान रखें कि उपाध्याय ने जब ये लेख लिखा तब बांग्लादेश का गठन नहीं हुआ था । पढे दीनदयाल उपाध्याय के उस लेख के कुछ अंश :
१. अखंड भारत के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा मुस्लिम संप्रदाय की पृथकतावादी एवं अराष्ट्रीय मनोवृत्ति रही है । पाकिस्तान की सृष्टि उस मनोवृत्ति की विजय है । अखंड भारत के संबंध में शंकाशील यह मानकर चलते हैं कि मुसलमान अपनी नीति में परिवर्तन नहीं करेगा । यदि उनकी धारणा सत्य है तो फिर भारत में चार करोड़ मुसलमानों को बनाए रखना राष्ट्रहित के लिए बड़ा संकट होगा ।
२. क्या कोई कांग्रेसी यह कहेगा कि मुसलमानों को भारत से खदेड़ दिया जाए? यदि नहीं तो उन्हें भारतीय जीवन के साथ समरस करना होगा । यदि भौगोलिक दृष्टि से खंडित भारत में यह अनुभूति संभव है तो शेष भू-भाग को मिलते देर नहीं लगेगी । एकता की अनुभूति के अभाव में यदि देश खंडित हुआ है तो उसके भाव से वह अब अखंड होगा । हम उसीके लिए प्रयत्न करें । किंतु मुसलमानों को भारतीय बनाने के अलावा हमें अपनी तीस साल पुरानी नीति बदलनी पड़ेगी ।
३. कांग्रेस ने हिंदू मुस्लिम एक्य के प्रयत्न गलत आधार पर किए । उसने राष्ट्र की और संस्कृति की सही एवं अनादि से चली आनेवाली एकता का साक्षात्कार किया तथा अनेकों को कृत्रिम तथा राजनीतिक सौदेबाजी के आधार पर एक करने का प्रयत्न किया । भाषा, रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि सभी की कृत्रिम ढंग से रचना की । ये यत्न कभी सफल नहीं हो सकते थे । राष्ट्रीयता और अराष्ट्रीयता का समन्वय संभव नहीं ।
४. यदि हम एकता चाहते हैं तो भारतीय राष्ट्रीयता जो हिंदू राष्ट्रीयता है तथा भारतीय संस्कृति जो हिंदू संस्कृति है उसका दर्शन करें । उसे मानदंड बनाकर चलें ।
संदर्भ : जनसत्ता