माघ कृष्ण १० , कलियुग वर्ष ५११४
कुंभमेलेमें हिंदू धर्मकी जयजयकार !
संत सम्मेलनमें मंचपर उपस्थित संत-महंत, धर्माचार्य एवं महामंडलेश्वर
विशेष प्रतिनिधि
प्रयागराज – कुंभनगरीमें ४ फरवरीको अमरकंटकके कल्याण सेवाश्रममें सर्व संत सम्मेलन संपन्न हुआ । इस सम्मेलनमें ४० से अधिक धर्माचार्य, महामंडलेश्वर, संत-महंत उपस्थित थे । इसमें से अधिकांश संतोंने वर्तमान स्थितिमें हिंदू धर्मपर होनेवाले पश्चिमी संस्कृतिके आक्रमणका तीव्र विरोध कर देवता, देश तथा धर्मका कट्टर समर्थन किया । इस अवसरपर विभिन्न संप्रदायोंके प्रमुख, संत एवं महंत अधिकांश संख्यामें उपस्थित थे ।
वर्ष २०१४ में गाय, गंगा एवं गीताकी रक्षा करनेवाला राजनेता सत्तापर आएगा ! -‘पतंजली’के योगऋषि रामदेवबाबा
इस देशपर सत्ता करनेवाले स्वयं ही संभ्रमित अवस्थामें हैं । उन्होंने ही देशको लूटा है । भारत निर्धन नहीं है; परंतु इन कांग्रेसवालोंने देशकी सारी संपत्ति विदेशमें काले धनके रूपमें संचयित की है । उसे देशमें वापस लाना चाहिए । इटलीमें उपाहारगृह (होटल) चलानेवाली महिला देशपर राज्य कर सकती है, तो क्या भारतीय संस्कृतिके सवा करोड रक्षक देश नहीं चला सकते ? देशकी संस्कृतिकी रक्षा करनी है, तो गाय, गंगा एवं गीताकी रक्षा करनी चाहिए । वर्ष २०१४ में ऐसा ही राजनेता सत्तापर आएगा ।
…तो पूरा हिंदुस्थान कश्मीर बन जाएगा ! – अंतरराष्ट्रीय हिंदू प्रसारक आचार्य गोविंदगिरीजी
वर्तमानमें बाल्यावस्थासे ही संस्कार करनेकी नितांत आवश्यकता है । संस्कारोंसे ही संस्कृतिकी रक्षा हो सकती है । जिस प्रकार संस्कारक्षम आगामी पीढी आवश्यक है, उसी प्रकार हिंदुओंका संख्याबल तथा एकता भी महत्त्वपूर्ण है । अन्यथा आगामी २५ से ३० वर्षोंमें कश्मीरके समान पूरे भारतकी अवस्था होगी । तिब्बत गया, अब अरुणाचल प्रदेश तथा आसाम भी जानेके मार्गपर है । इसलिए हिंदुओंमें निरंतर जागृतिकी आवश्यकता है; अतः साधुसंतोंको अन्य धर्मियोंकी चिंता करनेके स्थानपर प्रथम हिंदुओंके लिए कार्यरत होना चाहिए ।
धर्म एवं संस्कृतिके लिए सर्व संतोंको संगठित होना चाहिए ! – विहिंपके अध्यक्ष अशोक सिंघल
मैं पांच-छः दशकोंसे कुंभमेला देख रहा हूं । प्रत्येक कुंभमेलेमें गोरक्षाके आंदोलनका विषय चलता है । जवाहरलाल नेहरूके विरोधमें इसी विषयपर चुनाव किया गया था । वर्तमानमें भी इसी विषयको प्राथमिकता है । इसका अर्थ हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई; परंतु संस्कृति और धार्मिकताकी पुनर्प्राप्ति नहीं हुई । धर्म एवं संस्कृतिके लिए स्वतंत्रताप्राप्तिसे अधिक संघर्ष करना पडेगा । इसलिए देशके साधुसंतोंकी संगठित शक्ति कार्यरत होना चाहिए !
….अन्यथा हिंदुओंकी सहनशीलताका उद्रेक होगा ! – स्वामी नरेंद्रगिरी महाराज
हिंदू धर्म एवं संतोकी रक्षाका संकल्प बार-बार किया जाता है; परंतु उसके लिए कोई भी कार्यरत नहीं होता । हिंदू संगठनोंको आतंकवादी कहा जाता है, फिर भी हम कुछ नहीं कहते । मौन रहते हैं । हिंदू और कितना सहेंगे ! अंतमें हिंदुओंका उद्रेक होकर ज्वालामुखी ही उत्पन्न होगा !
देवी-देवताओंके अनादरका विरोध करना चाहिए ! – जूना अखाडा महामंडलेश्वर स्वामी डॉ. उमाकांतानंद सरस्वती महाराज
‘पीस’ प्रणालपर लोग सार्वजनिक रूपसे स्वयंके मुसलमान होनेपर अभिमान व्यक्त करते हैं । इसके विरुद्ध हिंदुओंकी स्थिति है । देशी-विदेशी प्रतिष्ठान विज्ञापनोंद्वारा हिंदू देवी-देवताओंका अश्लील रूपमें अनादर करते हैं । इसका हमें तीव्र विरोध करना चाहिए ।
प्रथम स्वयंको हिंदू समझें ! – महामंडलेश्वर स्वामी प्रखरजी महाराज, हरिद्वार
शुद्ध आचरण किस प्रकार होना चाहिए, इस बातका ज्ञान हिंदू धर्मने अखिल मानवजातिको दिया है । अतः हिंदू आतंकवादी हो ही नहीं सकते । हिंदुओंकी सुरक्षा हेतु हम सबको संगठितरूपसे मनन-चिंतन कर परिणामकारक कृत्य करना चाहिए । अतः हिंदू प्रथम स्वयंको हिंदू समझें तथा स्वयंको पहचानें ।
स्वधर्मकी एवं संस्कृतिकी रक्षा करें ! – निर्मल अखाडा महामंडलेश्वर माता वेद भारती
हिंदू धर्मीय पश्चिमी संस्कृतिके अधीन होनेके कारण स्वधर्म एवं संस्कृति भूल गए हैं । नौकरीके लिए हिंदू विदेश जाते हैं तथा हिंदू संस्कृतिका हनन करते हैं; इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि हिंदुओंको स्वधर्म एवं संस्कृतिकी रक्षा करनी चाहिए ।
क्षणिकाएं
१. इस अवसरपर सनातन संस्थाके साधकोंने संतोंमें हिंदी मासिक ‘सनातन प्रभात’का वितरण किया । कुंभमेलेमें स्वामी चिदानंदद्वारा आयोजित सर्वधर्म संसदका विरोध करने हेतु मासिकके साथ आवाहन पत्रकका भी वितरण किया गया ।
२. स्वामी नरेंद्रगिरी महाराज व्यासपीठपर ही ‘सनातन प्रभात’ पढ रहे थे ।
स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात