ट्रक में सामान लादकर गांव छोड़ने की तैयारी में दीनारा गांव के हिन्दू
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केंद्र तथा गुजरात में भाजपा की सत्ता होते हुए भी हिन्दुआें को उनके ही देश में विस्थापित होने के लिए मजबूर होना, यह सरकार के लिए लज्जास्पद ही है ।
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यदि हिन्दु एेसे ही सोता रहेगा, तो आगे भविष्य में ‘हिन्दू’ शब्द केवल इतिहास के पन्नो में ही रहेगा ! यह स्थिती बदलने हेतु हिन्दू संगठन तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना अनिवार्य है !- सम्पादक, हिन्दूजागृति
“क्याें गांव छोड़कर जा रहे हो?’ इतना पूछते ही 65 वर्षीय गंगाराम छोटे बच्चे की तरह फफककर रो पड़े। आंखों से आंसू…मन की व्यथा उनके शब्दों में उतर आती है, “क्या करें भाई, इस धरती से हमारा अन्न-जल का सम्बंध पूरा हो गया। जिस धरती पर हमारी 17-18 पीढ़ियां पली थीं, उसको छोड़ना पड़ रहा है। अनेक प्राकृतिक आपदाओं का हमने डटकर मुकाबला किया मगर अब उनका (कट्टरपंथी मुसलमानों) शारीरिक-मानसिक अत्याचार सहन नहीं होता। गांव छोड़ने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचा।’
यह व्यथा-कथा पाकिस्तानी नहीं तो, पश्चिमी भारत के सुदूर गुजरात के कच्छ सीमा से सटे भुज से 50 किलोमीटर दूर बसे दीनारा गांव की है । ऐसी व्यथा-कथा सीमा के पास बसे हर गांव की है। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत सीमा के निकटवर्ती गांवों को शत-प्रतिशत मुस्लिमबहुल बनाया जा रहा है। यह योजना सफल भी हो रही है। कुछ गांव १०० प्रतिशत मुस्लिमबहुल हो गए हैं, तो कुछ गांव ८० प्रतिशत।
जब यह संवाददाता दीनारा गांव में पहुंचा, सब हिन्दू लोग गांव छोड कर जाने की तैयारी में थे। ट्रक में सामान लादा जा रहा था। ३०० घरों के इस गांव में १०० घर हिन्दुओं के थे। भूकम्प के कारण सभी घर ध्वस्त हो गए हैं। रहने को घर नहीं, ऊपर से कट्टर तबलीगी मुस्लिमों द्वारा किया जा रहा शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न। हिन्दू बेटियों के साथ दुव्र्यवहार रोज की बात है। इन सभी बातों से तंग आकर हिन्दुओं ने गांव ही छोड़ देने का निर्णय किया और भुज के निकट खुली जमीन पर एक नया गांव बसाया जिसको नाम दिया गया “मेघ मारू वास’। गांव छोड़कर जाने वाले लोग हिन्दू समाज की दलित जाति के थे, क्योंकि सवर्ण हिन्दू तो पहले से ही गांव खाली कर चुके थे।
दीनारा गांव में एक रामदेव जी का मंदिर है। मंदिर में बहुत सुंदर प्रतिमाएं हैं। इसके आगे खड़े गंगाराम गांव की व्यथा कहते हैं, “आज हम इस मंदिर की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। कश्मीर के हिन्दुआें पर जिस तरह अत्याचार कर उन्हें भगा दिया गया, उसी तरह हमें गांव छोड़ने पर मजबूर किया गया है। यहां के ये कट्टरपंथी मुसलमान, अफगान तालिबानों की तरह ही हैं। हमें इस्लाम स्वीकार करने की धमकी दी जाती थी। हमारी स्त्रियों का शारीरिक उत्पीड़न होता है। आखिर हम कब तक यह सब सहन करते?’
गंगाराम भाई सुबकते हुए आगे कहते हैं, “हमें पुलिस सुरक्षा मिलेगी तो भी अब हम यहां नहीं रहेंगे।’ धर्मांधों का आतंक इतना अधिक है कि कोई कुछ बताने को तैयार नहीं है। दीनारा गांव की तरह अनेक गांव खाली हो रहे हैं। सिर्फ एक ही महीने में घ्रोषणा, कुरन, कुजरियां जैसे अनेक गांवों से हिन्दुओं का पलायन शुरू हुआ है। हर गांव में पलायन का कारण एक ही है, धर्मांध कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं का उत्पीड़न। सीमा पर बसे गांवों को हिन्दूविहीन बनाया जा रहा है।
गुप्तचर तंत्र की रिपोर्ट के अनुसार अल हदीस और तबलीगी जमात नामक कट्टरपंथी मुसलमान संस्थाएं कच्छ में सबसे अधिक सक्रिय हैं। सीमा पर बसे ९५ गांवों में यह संस्था सक्रिय है। जिन गांवों में हिन्दू कम संख्या में हैं, वहां जबरन उनकाे पलायन करने पर मजबुर किया जा रहा है। इसके पीछे मुख्य दो आशय हैं – एक तो मुस्लिमों से कट्टरतापूर्वक इस्लामी रीति-रिवाजों का पालन कराना, दूसरा, हिन्दू परम्परा को नष्ट करना, कुछ गांवों में आज भी हिन्दू दिवाली-होली या नवरात्र जैसे उत्सव नहीं मना सकते। भुज शहर के निकट दयापर नामक गांव में नवरात्र के दिनों में कुछ हिन्दू बहनें सर पर कलश लेकर जा रही थीं, तब गांव के कट्टरपंथी मुसलमानों ने जबरदस्ती उनसे कलश छीनकर तोड़ दिए। ऐसी घटनाएं सिर्फ दयापर गांव में नहीं, अनेक गांवों में आयेदिन घटती रहती हैं।
गुप्तचर तंत्र के एक अवकाशप्राप्त अधिकारी के अनुसार, कच्छ की सीमा से सटे गांवों में हिन्दुओं की जनसंख्या तेजी से घटती जा रही है। हिन्दुओं को धमकाकर गांव छोड़ने पर मजबूर किया जाता है। जो हिन्दू उनकी दादागीरी सहन नहीं करते, उनके विरुद्ध आर्थिक बहिष्कार का शस्त्र इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि गांवों में 90-95 प्रतिशत जनसंख्या मुसलमानों की है, इसलिए कुछ गांवों में अवैध हथियार, तस्करी का सामान हिन्दुओं के घरों में छुपाकर रखा जाता है, ताकि वे सुरक्षाकर्मी या पुलिस की गिरफ्त में आ जाएं। हिन्दुओं को इतना आतंकित किया जाता है कि वे पुलिस या सुरक्षाबलों के जवानों को सही बात नहीं बता पाते। यहां मुस्लिम कट्टरपंथियों का इतना अधिक आतंक है कि हिन्दू गांव छोड़ रहे हैं। सेना के एक अधिकारी ने बातचीत में बताया कि हम जानते हैं इस क्षेत्र में हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहे हैं, मगर हम जब उनसे पूछते हैं तो वे कुछ भी बताने को तैयार नहीं होते। इस क्षेत्र में राष्ट्रविरोधी प्रवृत्ति बंद हो, इसके लिए हरसंभव प्रयत्न किए जा रहे हैं।
सीमा से सटे गांवों की स्थिति कितनी गंभीर है इसके लिए एक घटना का उल्लेख करना काफी होगा। हाजीपीर के आसपास के देसरपर, गोतली जैसे गांवों से हिन्दू पलायन कर चुके हैं। ऐसे क्षेत्र के गांवों के लोग युद्ध या अन्य संकट के समय सेना के जवानों की किस प्रकार सहायता करते हैं, यह जानने के लिए सेना ने कुछ समय पूर्व अबडासा तालुका में एक अभ्यास किया था। एक गांव, जो मुस्लिमबहुल है, उसने तो सहायता करने से बिल्कुल मना कर दिया। कच्छ सीमा के निकट कुछ गांवों में तो गांववासी सेना और सीमा सुरक्षा बल के जवानों को पीने का पानी तक नहीं देते। सभी जवान अपने साथ पानी का प्रबंध करके जाते हैं। कुछ गांवों ने तो सरकारी तंत्र का पूर्ण बहिष्कार कर दिया है।
इन क्षेत्रों पर आई.एस.आई. का पूरा नियंत्रण है। मदरसों ने कच्छ सीमा के निकटवर्ती गांवों के लोगों के मानस पर भारत विरोध का कैसा विष घोल दिया है, इसका एक उदाहरण उल्लेखनीय है। कुछ महीने पहले सीमा सुरक्षा बल के एक अधिकारी और कुछ जवान गांवों में स्लेट-पेन का वितरण करने गए थे। उस समय वहां पर उपस्थित एक विद्यार्थी से तब गीत गाने को कहा गया तब उसने कोई देशभक्ति गीत गाने के बजाय पाकिस्तानी गीत गाया। १४ अगस्त, को भुज से ५० किलोमीटर दूर खावड़ा गांव के निकट एक गांव में विद्यालय के कुछ शिक्षकों ने ही विद्यार्थियों से पाकिस्तान समर्थक नारे लगवाए थे, “असांझो कच्छडो असांझो पाकिस्तान’ (हमारा कच्छ-हमारा पाकिस्तान)। ये सभी बातें गुप्तचर तंत्र ने अपनी रिपोर्ट में दर्ज की हैं।
गुप्तचर तंत्र के एक अधिकारी ने एक बातचीत में कहा, “पाकिस्तान ने पहले “के टू’ आपरेशन (कश्मीर-खालिस्तान) प्रारम्भ किया था। भौगोलिक दृष्टि से कच्छ को गुजरात से अलग करना बहुत कठिन नहीं है। इसे ध्यान में रखकर अब उसने कच्छ का समावेश करके आपरेशन “के-थ्री’ प्रारम्भ किया है।
स्त्रोत : रिव्होल्टप्रेस