भारत की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना की गणना गंगा नदी के साथ की जाती है । ब्रजमंडल की तो यमुना एक मात्र महत्त्वपूर्ण नदी है । जहाँ तक ब्रज संस्कृति का संबंध है, यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है । वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्घ कालीन परम्परा की प्रेरक और यहाँ की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है । यमुना नदी को गंगा की ही तरह पवित्र माना जाता है । यमुना को श्रीकृष्ण की परम भक्त माना जाता है ।
यमुना नदी के उद्गम
यमुना नदी का उद्गम यमुनोत्री से हुआ है । यमुनोत्री उत्तरांचल में स्थित है । गंगा के समानांतर बहते हुए यह नदी प्रयाग में गंगा में मिल जाती है । भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत है । इसकी एक चोटी का नाम बन्दरपुच्छ है । यह चोटी उत्तरप्रदेश के टिहरी-गढ़वाल ज़िले में है । बड़ी ऊंची है, २०,७३१ फुट । इसे सुमेरु भी कहते हैं । इसके एक भाग का नाम ‘कलिंद’ है । यहीं से यमुना निकलती है ।
इसी से यमुना का नाम ‘कलिंदजा’ और कालिंदी भी है । दोनों का अर्थ ‘कलिंद की बेटी’ होता है । यह जगह बहुत सुन्दर है, पर यहाँ पहुंचना बहुत कठिन है । अपने उद्गम से आगे कई मील तक विशाल हिमगारों और हिंम मंडित कंदराओं में अप्रकट रूप से बहती हुई तथा पहाड़ी ढलानों पर से अत्यन्त तीव्रतापूर्वक उतरती हुई इसकी धारा यमुनोत्तरी पर्वत २०,७३१ फीट ऊँचाई से प्रकट होती है ।
वहां इसके दर्शनार्थ हज़ारों श्रद्धालु यात्री प्रतिवर्ष भारतवर्ष के कोने-कोने से पहुँचते हैं । ब्रजभाषा के भक्त कवियों और विशेषतया वल्लभ सम्प्रदायी कवियों ने गिरिराज गोवर्धन की भाँति यमुना के प्रति भी अतिशय श्रद्धा व्यक्त की है ।
शास्त्रों में यमुना नदी
शास्त्रों के अनुसार, यमुना नदी को यमराज की बहन माना गया है । यमराज और यमुना दोनों का ही स्वरूप काला बताया जाता है जबकि यह दोनों ही परम तेजस्वी सूर्य की संतान है । फिर भी इनका स्वरूप काला है । ऐसा माना जाता है कि, सूर्य की एक पत्नी छाया थी, छाया दिखने में भयंकर काली थी इसी वजह से उनकी संतान यमराज और यमुना भी श्याम वर्ण पैदा हुए । यमुना से यमराज से वरदान ले रखा है कि, जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करेगा उसे यमलोक नहीं जाना पड़ेगा । दीपावली के दूसरे दिन यम द्वितीया को यमुना और यमराज के मिलन बताया गया है । इसी वजह से इस दिन भाई-बहन के लिए ‘भाई दूज’ के रूप में मनाया जाता है ।
यमुना नदी की कथा
सूर्य भगवान की पत्नी का नाम ‘संज्ञा देवी’ था । इनकी दो संतानें, पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना थी । संज्ञा देवी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बन कर रहने लगीं । उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनीचर का जन्म हुआ । इधर छाया का ‘यम’ तथा ‘यमुना’ से विमाता सा व्यवहार होने लगा । इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का कार्य सम्पादित करते भाई को देखकर यमुनाजी गो लोक चली आईं जो कि कृष्णावतार के समय भी थी ।
यमुना नदी का इतिहास
लगभग सात करोड वर्ष पहले सुपर महाद्वीप गोंडवाना यानी इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट उत्तर की ओर बढी और यूरेशियन प्लेट से टकराई । इससे जमीन का काफी हिस्सा उठ गया । यही उभरी हुई जमीन हिमालय है । इस टकराव को पूरा होने में लगभग दो करोड वर्ष लगे । जिस इलाके में कभी समुद्र था वहाँ दुनिया के सबसे ऊँचे पहाड बन गए । यह बात अब से लगभग पाँच करोड वर्ष पहले की है । इसके दो करोड वर्ष बाद पहला हिमयुग आया ।
हिमयुगों अंतिम दौर लगभग २० हजार वर्ष पहले तक चला । ग्लेशियरों के पिघलने के साथ ही नदियों का जन्म भी हुआ । यमुना नदी यमुनोत्री से निकलती है, पर उसके काफी पहले ग्लेशियरों की पिघली बर्फ का पानी सतह पर या जमीन के नीचे से होता हुआ यमुनोत्री तक आता है । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यमुना सूर्य की पुत्री और यमराज की बहन हैं । जिस पहाड से निकलतीं हैं उसका एक नाम कालिंद है इसलिए यमुना को कालिंदी भी कहते हैं ।
स्त्रोत : इंडिया दर्शन