मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को इंदौर में हजारों स्कूली बच्चों के एक साथ राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ गाने के कार्यक्रम में कहा, “आजकल माता-पिता की जगह मम्मी-पापा का चलन कुछ ज्यादा हो गया है । अंग्रेजी के मोह में हम कई बार पिता को डैड भी कह देते हैं !” उन्होंने अपने बचपन का किस्सा सुनाते हुए कहा, “मेरे एक मित्र के पिताजी का स्वर्गवास हो गया था । मित्र अंग्रेजी प्रेमी थे । मित्र ने मुझसे कहा कि उनके पिता डेड हो गए !”
मुख्यमंत्री ने पिता को ‘डैड’ कहे जाने के चलन के संदर्भ में कहा, “यह अजीब-सी विकृति हमारी सोच में आ गई है । परंतु हमारे लिए माता-पिता पूजनीय हैं !” वंदे मातरम के सामूहिक गान के कार्यक्रम का आयोजन स्थानीय संगठन सांस्कृतिक एवं नैतिक प्रशिक्षण संस्थान ने किया था । कार्यक्रम के बाद मीडिया से बातचीत में शिवराज ने चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी को एक बार फिर ‘राष्ट्रमाता’ के रूप में संबोधित किया और कहा कि, देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपना जीवन अर्पित करनेवाले महापुरुषों का हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए ।
यहां हम ध्यान में ले सकते कि, ‘१५ अगस्त १९४७ इस दिन हम (भारत देश) स्वतंत्र हुआ; परंतु ‘क्या हम सच में स्वतंत्र हैं’, यह प्रश्न निर्माण होता है । इसका कारण है, आज हमारी प्रत्येक कृती अंग्रेजों की तरह है । अंग्रजों ने हमपर अनेक अत्याचार किए । स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अनेकों ने अपनी गृहस्थी को दांव पर लगा दिया । अनेक लोग फांसीपर चढे । ऐसा होते हुए भी हमें उसकी चीढ न आकर हम उनके मानसिक गुलाम बने हैं । प्रगती तथा विज्ञान के नाम पर हमारी संस्कृती, देव, देश तथा राष्ट्रप्रेम को हम भूल रहें हैं, इसी तरह का व्यवहार हो रहा है । सच तो यह है कि, हम हमारी कृतीसे ‘हम अंग्रेजों के ही वंशज हैं’, ऐसा दिखाते हैं । यह स्थिती बदलने हेतु हमें निश्चय करना चाहिए कि, मैं स्वतंत्र भारत में रहता हूं तो मेरा व्यवहार, बातचीत, पेहराव भारतीय रहे, तभी ‘मैं स्वतंत्र भारत में रहता हुं’, ऐसा हम कह सकते हैं ।