धधगते कश्मीर का वास्तव !
कश्मीर की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगडती जा रही है। विगत ढाई दशकों से इस्लामी आतंकवाद ने यहां के हिन्दुओं को यहां से पलायन करने के लिए बाध्य किया। आज के दिन सैन्यबलों पर स्थानीय विभाजनकारियोंद्वारा किया जानेवाला पथराव, आतंकियों को दी जानेवाली सहायता, पाकिस्तान, साथ ही इसिस के ध्वज फहराना, इस कारण भारत के राष्ट्रीयत्व को ही चुनौती दी जा रही है ! विगत कुछ वर्षों में कश्मीर अधिक ही दहक रहा है। मूलतः विभाजन के समय ही राज्यकर्ताओंद्वारा की गई बडी गलतियों के परिणाम अब भुगतने पड रहे हैं ! इस लेखमाला के माध्यम से निरंतर धधगते कश्मीर का वास्तव यहां प्रस्तुत कर रहें हैं . . .
रामनाथी, गोवा में १४ से १७ जून की अवधि में हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से रामनाथी देवस्थान, रामनाथी, फोंडा, गोवा में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन संपन्न हुआ। इस अधिवेशन में युथ फॉर पनून कश्मीर संघटन के श्री. राहुल राजदान ने कश्मीर की वर्तमान स्थिति के संदर्भ में अपना जो मनोगत व्यक्त किया था, उसे यहां प्रस्तुत कर रहें हैं –
क्या है ‘एक भारत अभियान . . . कश्मीर की ओर’ ?
वर्ष १९९० में कश्मीर से ४.५ लाख हिन्दुओं को विस्थापित होना पडा था। उन हिन्दुओं के साथ अभीतक न्याय नहीं हुआ है। इस अन्याय के विरोध में समाज मे व्यापक जनजागृति करने हेतु पूरे देश में ‘एक भारत अभियान . . . ’ नामक एक राष्ट्रव्यापी अभियान का आरंभ किया गया। इस अभियान के अंतर्गत देश के अनेक राज्यों में अबतक जनसभाओंसहित विविध उपक्रम चलाए जा रहे हैं।
कश्मीरी हिन्दुओं का निश्चय
‘पर्यटक के रूप में नहीं, अपितु वहां शाश्वतरुप से रहने के लिए ही जाएंगे !
‘वर्ष १९९० में हम जब वहां से इधर आए, तब हमारे मन में यह विचार था कि अब हमें पर्यटक के रूप में भी वहां लौटना नहीं है। मुझे वहां जाने का कई बार अवसर मिला; परंतु मैने उसका विरोध कर कहा कि मैं वहां नहीं जाऊंगा और यदि कभी गया, तो किसी पर्यटक के रूप में नहीं, अपितु वहां शाश्वतरूप से रहने के लिए ही जाऊंगा !’ – श्री. राहुल राजदान
१. केंद्रशासन से सहायता मांगने पर पूरे देश में दंगे होंगे, इसलिए कश्मीरी पंडितोंद्वारा सहायता न मांगी जाना
‘वर्ष १९८६ में अनंतनाग में मुसलमानों ने कश्मीरी हिन्दुओं के विरोध में दंगे करवाए थे। उस समय मुफ्ती महम्मद सईद उनके नेता थे। तब कश्मीरी पंडित संघटित हुए। वहां ‘अनंतनाग में इतने लोग मारे जा रहे हैं और हिन्दुओं के घर जलाए जा रहे हैं। उसके लिए क्या करना चाहिए ?’, इसपर चर्चा की गई। उसमें देहली में जाकर केंद्र शासन से सहायता मांगने पर विचार हुआ; परंतु सभी नेताओं ने यह विचार किया कि ‘भारत एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है। हमने यदि वहां जाकर ‘कश्मीर के मुसलमान वहां के हिन्दुओंपर टूट पडे हैं’, ऐसा बताया तो देश का वातावरण दूषित होकर हाहाकार मच जाएगा और उससे पूरे देश में हिन्दू-मुसलमान दंगे भडकेंगे !’’ इस आशंका के कारण यह विचार पीछे छूट गया।
२. मध्यम प्रकार की हिंसा करने की कश्मीरी मुसलमानों की योजना विफल होना
१९ जनवरी १९९० को कश्मीर के अधिकांश हिन्दुओं ने वहां से पलायन किया, तब एक आशा यह थी कि, हम यदि जम्मू गए, तो हमें पूरे देश से समर्थन मिलेगा। उस समय कश्मीरी मुसलमानों के मन में भी यह भय था कि, यदि हमने कश्मीरी हिन्दुओं को कुछ किया, तो पूरा देश हमारे विरोध में जाएगा। तो उन्होंने यह निर्धारित किया कि, हम पूरी सिद्धता के साथ ही लडेंगे। वास्तव में पूरे देश से व्यक्त प्रतिक्रिया को देखते हुए उनकी योजना एक मध्यम प्रकार की हिंसा करने की ही थी, जिसे हमने ‘आतंकवाद’ नाम दिया !
३. विभाजनकारियों को किसी भी प्रकार का दंड दिया जाना तो दूर; परंतु उसके विपरीत उनकी सुरक्षा ही बढाई जाना
उस समय जो हुआ, उसमें सम्मिलित एक भी आतंकी २७ वर्ष के पश्चात भी नहीं मिला, साथ ही कोई दंडित हुआ हो, ऐसा एक भी प्रकरण नहीं है। ऐसे विभाजनकारियों के जीवन में एक तो उनकी सुरक्षा और पैसा बढा है अथवा उनका मूल्य बढा है। आज हर व्यक्ति उनके आगे-पीछे भाग रहा है। सईद अली शहा गिलानी का दरवाजा खटखटानेवालों में से कोई हमें मिलता है; परंतु वे कभी मिलते ही नहीं, ऐसी स्थिति है !
४. आज की पीढीद्वारा लोकतंत्रकारी भूमिका का दमन किए जाने के कारण बताकर अग्नेयास्र (बंदूकें) उठाया जाना
विभाजनकारियों के मन में आतंकियों का भय भी नहीं रहा है। वास्तविकता में यदि उनके मन में ऐसा भय नहीं होगा, तो इसे एक परिवर्तन कहा जा सकता है। जो भय वर्ष १९९० में था, वह आज नहीं है। २७ वर्षों में एक नई पीढी सामने आयी है जिसने कट्टर इस्लाम के अतिरिक्त और भी कुछ अलग देखा है। उनके मन में वर्ष १९८९-१९९० में जो विचार थे, उससे कहीं परिपक्व विचार अब हैं। उस समय उन्होंने इस्लाम के विषय में बात की; परंतु अब वो ‘चुनाव में जो अनियमितताएं हुईं, उससे हममें जो लोकतंत्र की भूमिका थी, उसका दमन हुआ है’, ऐसा कह रहे हैं। यासीन मलिक जैसे कहते थें, ‘‘हमें एक राजनीतिक आंदोलन खडा कर चुनाव लडने थे; किंतु सरकार को स्वच्छ वातावरण में चुनाव करवाने ही नहीं थे। उन्होंने हमारे अधिकार छीन लिए; इसलिए हमें अग्नेयास्र उठाने पडे !’’ अभी के जो लडके हैं, वो केवल इस्लाम को कश्मीर में प्रस्थापित करने हेतु हाथ में अग्नेयास्र उठा रहे हैं !
५. विभाजनकारियों की कश्मीर का इस्लामीकरण कर ‘शरियत’ लागू करने की योजना
आज के दिन विभाजनकारियों में इतनी क्षमता है कि, वो ‘हम ये सब इस्लाम की अस्मिता हेतु कर रहे हैं’, ऐसा खुलेआम बोलते हैं। इससे अधिक खुलापन और क्या हो सकता है ? हुरियत का नेता जाकिर मुसा कहता है, ‘‘जो लोग कश्मीर की समस्या एक राजनीतिक समस्या है, ऐसा कहते हैं, हम उन्हें भी नहीं छोडेंगे; क्योंकि वह कश्मीर की समस्या है और हमें वहां इस्लामीकरण कर ‘शरियत’ लागू करनी है !’’ आज के ऐसे नेताओं में पैसों का लालच बढ गया है।
६. हिन्दूबहुसंख्यक क्षेत्रों में सेना का बंकर बना होना तथा उस क्षेत्र में गोलाबारी के चिन्ह दिखाई देना
मुझे कश्मीर जाकर मेरे पिता तथा दादाजी का श्राद्ध करना था। उसके लिए मैं एक सप्ताह वहां रहा। हब्बा गजल क्षेत्र में ‘गणपति यार्ड’ नामक श्री गणेश का मंदिर है। उस क्षेत्र में हिन्दुओं की संख्या कुछ अधिक थी, इसका अर्थ वहां मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दू चाहे अल्पसंख्यक हों, अपितु वह अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक थी। मंदिर की ओर जाते समय चालक उस परिसर को पहचान नहीं पा रहा था; क्योंकि उस क्षेत्र में एक बंकर बना था और वहां नीले टिन लगाए गए थे, साथ ही आगे-पीछे रेत की बोरियां थीं। वहां के सैनिकों ने मुझे उसीमें से मार्ग निकालकर मंदिर की ओर जाने को कहा। वहां पर गोलाबारी किए जाने के अनेक चिन्ह थे।
७. कश्मीर में एक भी मंदिर सैनिकों की तैनाती के बिना न होना
वहां अनेक मंदिर थे। मैने मेरे इस भ्रमण के समय ही उन सभी मंदिरों को देखने का प्रयास किया था। वहां एक भी मंदिर सैनिकों की तैनाती के बिना नहीं था। चाहे वह शंकराचार्य मंदिर हो अथवा गणेश का मंदिर हो। वहां ‘ख्रु’ नामक श्री ज्वालामाता का एक मंदिर है। चंडीगढ के निकट भी श्री ज्वालामाता का एक मंदिर है। वहां की भूमि में अपनेआप ही ज्योतियां प्रज्वलित रहती हैं। उन ज्योतियों को प्रज्वलित करने हेतु किसी भी प्रकार के इंधन का उपयोग करना नहीं पडता। कश्मीर के उस मंदिर में भी तोडफोड की गई थी। वहां आग भी लगाई गई थी; किंतु वह कैसे लगी, इसकी जानकारी नहीं मिली। वहां सैनिकों की तैनाती के कारण ही वह मंदिर बच गया था।
८. कश्मीर में दीवारोंपर उर्दू भाषा में ‘सेव गाजा’ और ‘आयएएस’ रंग दिया जाना
वहां की दीवारोंपर बहुत कुछ लिखा हुआ था। उसमें उर्दू भाषा में ‘सेव गाजा’ और ‘आयएएस’ शब्द रंगाए हुए दिखाई दिए, उसके साथ ऐसा लिखे हुए कपडे से बने फलक भी लगाए गए थे। वर्ष १९९० में मैने ऐसा कुछ नहीं देखा था। वहां मुझे बडी संख्या में बुर्का पहनी हुए महिलाएं दिखाई दीं। अब उनकी जीवनशैली में बदलाव आया है।
९. इस्लामीकरण करने हेतु स्थानीय कश्मीर भाषा को नष्ट कर मूल संस्कृति पर ही आघात किया जाना
कुछ वर्ष पूर्व एक कश्मीरी पंडित मिले थे। वे भाग्यनगर (हैदराबाद) में रहकर पुनः श्रीनगर में निवास हेतु लौट रहे थे। उस समय उन्होंने बताया कि मेरे बच्चे कश्मीरी नहीं बोल सकते; क्योंकि मेरा अधिकांश समय कार्यालय में जाता है। मेरे बच्चों को हिन्दी एवं अंग्रजी भाषाएं अच्छे प्रकार से बोलने आती हैं; किंतु कश्मीरी भाषा बोलना उनके लिए कठिन होता है और उन्हें कश्मीरी भाषा बोलने का अवसर ही नहीं मिलता। अब कश्मीर के लोग भी उर्दू भाषा ही बोलते हैं। हमारा कश्मीरी मुसलमानों के साथ जो कुछ थोडासा संबंध था, वही लोग अब कश्मीरी भाषा में बोलना छोड़ रहे हैं !
एक व्यक्ति ने अपना एक निरीक्षण बताया कि इस्लामीकरण करने हेतु मुसलमान पहला काम यही करते है कि वो वहां की भाषा को नष्ट कर लोगों को उर्दू अथवा पर्शियन भाषा की ओर ले जाते हैं और उसके द्वारा वो वहां की मूल संस्कृति पर ही आघात करते हैं। हमने यदि ऐसा कहा कि वहां के लोगों का धर्मपरिवर्तन हो चुका है, तो वे इससे पहले कहीं न कहीं कश्मीरी पंडित के रूप में खडे हुए हैं। कश्मीरी भाषा के कारण ही हमारा उनके साथ जो संबंध था, वह धीरे-धीरे टूटता गया। जब भाषा टूट गई, तो उनकी जीवनशैली भी बदल गई। कश्मीर में अब जो बच्चे हैं, उनको ‘कश्मीरी हिन्दू‘ कौन हैं, यह भी ज्ञात नहीं है !
१०. पहले के घायल आतंकीद्वारा अब धर्मांधों में भारतविरोधी संकल्पना का प्रसार किया जाना
मैने संकेतस्थल ‘यु-ट्युब’ पर कुछ ध्वनिचित्रचक्रिकाएं अपलोड की हैं। उनमें से एक में एक आतंकी ने आतंकवाद के विषय में स्वयं के अनुभव बताए हैं। उसके साथ साक्षात्कार करनेवाला भारतीय हिन्दू है और वह वामपंथी विचारधारावाला है। इस आतंकी ने अपने साक्षात्कार में बताया, ‘‘हमारा आंदोलन अब तो केवल कश्मीर तक सीमित है !’’ उसके पश्चात वह हंसते हुए कहता है, ‘‘यह आंदोलन पूरे भारत में इस्लाम को फैलाने हेतु है। मैने इस अभियान में क्रियाशील आतंकी के रूप में काम किया; परंतु उसके पश्चात मुझे गोली लगने से मेरा पैर नाकाम हुआ। अतः अब मैं क्रियाशील रूप से आतंकी कृत्य नहीं कर सकता। आज के दिन मैं अन्य लडकों को इस संकल्पना से अवगत कर रहा हूं !’’ इसका अर्थ अब वो उस संकल्पना का प्रसार कर रहा है !
११. कश्मीर के संदर्भ में अयोग्य जानकारी दी जाना तथा वास्तविक रूप से वहां आंतरराष्ट्रीय जिहाद का बढ जाना
कश्मीर की वर्तमान स्थिति अथवा पहले की स्थिति के संदर्भ में हम समाधान निकाल सकते हैं। आज के दिन कश्मीर के संदर्भ में बताते समय सभी बातों को गोल-गोल घूमाया जा रहा है , उदा. वहां के लोगों को स्वतंत्रता नहीं है। वहां खुले वातावरण में चुनाव नहीं कराए जाते। वहां के लोगों को लोकतांत्रिक अधिकार नहीं है। वहां के छात्र पथराव करते हैं और उनके विरोध में आंसूगैस तथा पैलेट गन का प्रयोग किया जाता है आदि वास्तविकता में कश्मीर ही एक समस्या है और इसी एक सूत्र को भारत का अभियान बनाया जाना चाहिए। वहां इस्लामीकरण होने से अब वह मूल कश्मीर नहीं रहा। कश्मीर में पहले सक्रिय जिहाद को आंतरराष्ट्रीय जिहादियोंद्वारा सहायता की जाने से अब वहां जिहाद बढ रहा है !
१२. भाजपाद्वारा ‘पीडीपी’ के साथ गठबंधन बनाया जाना घातक !
विगत अनेक वर्षों से शासन का दृष्टिकोण और उसकी कार्यपद्धति बदल गई है। तो चाहे वह वर्ष १९९० का कांग्रेस का शासन हो, उसके पश्चात सत्ता में रहे गठबंधनवाले ३-४ शासन हों अथवा अभी का भाजपा एवं पीडीपी के गठबंधनवाला शासन हो। जब भाजपा ने ‘पीडीपी’ के साथ गठबंधन किया, तब हमारा भ्रम टुट गया। हमें ऐसा लगा कि, भाजपा विपक्ष में होने से शासन किसी भी प्रकार का अयोग्य काम नहीं कर सकता; क्योंकि भाजपा विपक्ष में बैठकर शासन को वैसा काम करने नहीं देगा। भाजपा के सत्ता में सम्मिलित होने से अब वहां विपक्ष बचा ही नहीं। उससे अब कोई यदि अयोग्य हुआ, तो भाजपा उसका विरोध करेगा, ऐसी स्थिति नहीं है। कश्मीर में अब इस प्रकार की दुखदायी स्थिति बन गई है !
१३. कश्मीर के इस्लामीकरण को रोकने हेतु ‘एक भारत अभियान . . . कश्मीर की ओर’ का घर-घर पहुंचना महत्त्वपूर्ण !
कश्मीर का तीव्र गति से इस्लामीकरण हो रहा है। कश्मीर का पाकिस्तान हो रहा है। उसे तुरंत रोकना चाहिए। कश्मीर का यदि पूरा इस्लामीकरण हुआ, तो उसके पश्चात उसे रोकना कठिन होगा। उसके लिए ही ‘एक भारत अभियान . . . कश्मीर की ओर’ का घर-घर पहुंचना महत्त्वपूर्ण है ! इस माध्यम से हमें देश के हिन्दुओं को जागृत करना है। यह अभियान केवल हिन्दुओं के लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, अपितु भविष्य में किसी भी नागरिक को यदि सुखशांति के साथ रहना हो, तो उसको इस अभियान में सम्मिलित होना होगा और वहां हो रहे इस्लामीकरण को रोकना होगा, अन्यथा चाहे वह हिन्दू हो, मुसलमान अथवा ईसाई, उसे उसका सामना करना ही पडेगा !
सभी को यदि इससे बचना है, तो यह अभियान सफल बनना ही चाहिए !
– श्री. राहुल राजदान, सचिव, ‘युथ फॉर पनून कश्मीर’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात