मोरया गोसावी संजीवन समाधी समारोह में ‘नाते संबंधों का पालन करेंगें . . .’ इस विषय पर मार्गदर्शन
चिंचवड : श्री मोरया गोसावी संजीवन समाधी महोत्सव में ‘नाते संबंधों का पालन करेंगें . . .’ इस विषय पर अधिवक्ता श्रीमती अपर्णा रामतीर्थकर संबोधित कर रही थी। उस समय उन्होंने स्पष्ट रूप से ऐसा कहा कि, ‘अपने धर्म का कठोरता से पालन करना अत्यावश्यक है। तत्पश्चात अन्य धर्मों का आदर करना यही वास्तविक रूप से ‘सर्वधर्मसमभाव’ है ! शहर में नौकरी करनेवाले लडकों को अपने वृद्ध माता-पिता की ओर ध्यान देने के लिए समय ही नहीं है। उन्हें शहरों के शान-शौक का अधिक आकर्षण रहता है। आपसी आत्मीयता न्यून हुई है। अधिकांश लोग वृद्धाश्रम का पर्याय चुनते हैं। वृद्धाश्रम में अनेक वृद्ध होते हुए भी वहां का हरएक वृद्ध अकेलापन का सामुहिक जीवन व्यतीत कर रहा है !’ इस समय चिंचवड देवस्थान ट्रस्ट के मुख्य न्यासी मंदार देव महाराज, ट्रस्ट के अन्य न्यासी तथा स्थानिक उपस्थित थे।
इस समारोह की सांगता ८ दिसम्बर को हुई। उस दिन प्रातः श्री मोरया गोसावी समाधी की महापूजा मंदार देव महाराज के हाथों हुई। तत्पश्चात श्री मोरया गोसावी की दिंडी का आयोजन कर मंदिर पर पुष्पवृष्टि की गई। समारोप के पश्चात महाप्रसाद हुआ। २७ नवम्बर से ८ दिसम्बर की कालावधी में इस समारोह में विविध विषयों पर मार्गदर्शन, कीर्तन, भजन तथा भाक्ति संगीत के कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। भक्त तथा स्थानिकों ने अधिक संख्या में इस समारोह का लाभ ऊठाया।
श्रीमती अपर्णा रामतीर्थकर ने आगे ऐसा कहा कि,
१. नाते संबंधों में विश्वास का निर्माण होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात है। आज-कल सास-बहु में अधिक मात्रा में विवाद होते हैं। अत्यंत साधारण कारण से विवाद होकर संसार उद्धवस्त होने की घटनाएं निरंतर सामने आती हैं। अतः प्रथम घर की महिलाओं ने ही आपस में समझ दर्शाकर आदर करना चाहिए। उसके पश्चात, दूसरों से आदर प्राप्त करने के संदर्भ में विचार कर सकते हैं !
२. स्त्री-पुरुषों ने आधे-आधे काम बांटकर लेना, यह स्त्री-पुरुष समानता नहीं है ! एकदूसरे के प्रति आदर निर्माण करना तथा वह निरंतर के लिए मन में जतन करना, यही वास्तव में स्त्री-पुरुष समानता है। यदि संसार सुख-शांति से करना है, तो दायित्व की ओर ध्यान देना ही चाहिए। घर के लोगों समझ कर साथ ले जाते हुए अपना आस्तित्व निर्माण करना यही करिअर है !’
उस समय समारोह में जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज उपस्थित थे। उन्होंने यह बताया कि, ‘हमें जीवित रहना है, तो धर्म का आचरण करना ही होगा। यदि हम धर्म का आचरण करेंगे, तो ही विनाश टाल सकेंगे !’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात