माघ अमावस्या , कलियुग वर्ष ५११४
विश्व हिंदू परिषदकी धर्मसंसदमें शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वतीकी दृढ भूमिका !
विश्व हिंदू परिषदके समक्ष निणार्यक स्थिति !
विशेष प्रतिनिधिकी ओरसे
प्रयागराज – ७ फरवरीको कुंभनगरीमें संपन्न धर्म संसदमें यद्यपि विश्व हिंदू परिषदद्वारा संतमंडलीको राम मंदिरका विषयको लेकर ही विचार प्रस्तुत करनेका आग्रह किया था, फिर तब हिंदुओंपर होनेवाले अनेक प्रकारके आक्रमणोंका उल्लेख संतोंद्वारा इस व्यासपीठसे किया गया । धर्मसंसदमें प्रमुख वक्ताके रूपमें शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वतीने धार, मध्यप्रदेशकी भोजशालाके श्री सरस्वती मंदिरका विषय प्रस्तुत किया एवं इस मंदिरको मुसलमानोंसे मुक्त कर उसे स्थायी रूपसे हिंदुओंको सौंपने हेतु आग्रह किया । इससे पूर्व श्रीकाशीसुमेरू पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वतीने भी यह विषय प्रस्तुत किया । इसलिए अब इस प्रकरणमें हिंदूहितके लिए निश्चित भूमिका लेनेकी निर्णायक स्थिति विश्व हिंदू परिषदके सामने उत्पन्न हुई है ।
शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वतीने कहा कि मध्यप्रदेशमें स्थित भोजशालाके श्री सरस्वती मंदिरमें पूजन-अर्चन करने हेतु हिंदुओंको कितना संघर्ष करना पडता है यह बताते हुए वहांके कार्यकर्ताओंकी आंखोंमें आंसू आते हैं । हिंदुओको वर्षमें एक दिन वसंत पंचमीको इस स्थानपर पूजा करनेकी अनुमति दी जाती है । वर्ष २००६ में वसंत पंचमी शुक्रवारको थी । उस समय राज्य सरकारने हिंदुओंको मारपीट कर भगा दिया एवं मुसलमानोंको नमाज पठन करनेकी अनुमति दी । इस वर्ष भी पंचमी तिथि शुक्रवारको ही है । वर्ष २००६ में हुई घटनाओंकी पुनरावृत्ति न हो, मंदिरमें पूजन-अर्चनका समय निश्चित किया जाए तथा मंदिर प्रतिदिन हिंदुओंको पूजन-अर्चन हेतु उपलब्ध करवाया जाए । यदि सरकारने ऐसा नहीं किया, तो मैं क्या करूंगा यह बताऊंगा नहीं, सीधे कर दिखाऊंगा ।
स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात