इस समाचार से ध्यान में आता है कि, मज़हबी कट्टर धर्मांध संक्रीर्ण सोच की हद पार कर चुके है । रेडियो शो में भी यह लोग कट्टरता निकालने से नहीं मानते और डॉक्टर जैसे पेशे में भी अपना दोहरा चरित्र दिखाते है ! – सम्पादक ,हिन्दूजागृति
ईस्ट मिडलैंड्स में एक रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम में लोगों से कहा गया कि, वे गैर-मुस्लिम डॉक्टरों से सलाह न लें। उनकी बात में वजन नहीं होता है। ऐसे में नियामक संस्था ऑफकॉम ने इसकी कड़ी आलोचना की है। यह मामला सामने तब आया, जब ऑफकॉम को १०७.६ एफएम से जुड़ी शिकायत मिली थी। श्रोताओं को उसमें इस्लाम से जुड़े मसलों पर सलाह लेने के लिए प्रोत्साहित किए जाने की बात थी। शो के दौरान मधुमेह को लेकर एक स्कॉलर ने फोन करनेवाले (कॉलर) से कहा था, “सलाह देनेवाला अगर मुस्लिम नहीं है तो उसकी सलाह में वजन नहीं होगा। चाहे कुछ भी हो, उसका कोई महत्व नहीं होगा !” मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सलाह देनेवाला शख्स मुफ्ती है। दरअसल, कॉलर ने उससे पूछा था कि रमजान के दिनों में क्या मधुमेह के मरीज रोजा रखें ? उत्तर में उस स्कॉलर ने कहा था कि गैर मुस्लिम डॉक्टरों की सलाह पर मधुमेह के मरीज रमजान में रोजा रखना न छोड़ें। स्कॉलर ने आगे कहा था, “देखो, अगर डॉक्टर मुस्लिम है और धार्मिक है, तभी उसकी सलाह में वजन होगा !”
१०७.६ एफएम करीमिया इंस्टीट्यूट का सामुदायिक रेडियो स्टेशन है और इसे कुछ वॉलंटियर्स मिलकर चलाते हैं। स्टेशन पर यह कार्यक्रम पंजाबी भाषा में प्रसारित किया जाता है। बाद में इसे अनूदित भी किया गया था। ऑफकॉम ने इसे नुकसानदेह, भेदभावपूर्व और अपमानजनक बताया है। जबकि, सामुदायिक रेडियो स्टेशन की ओर से भी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है।
ऑफकॉम के अनुसार, स्टेशन ने ऐसा कर प्रसारण के दो नियमों का उल्लंघन किया है। जबकि, नॉटिंघम अहमदिया मुस्लिम समुदाय के सदस्य डॉक्टर इरफान मलिक बोले, “मेडिकल सलाह केवल योग्य मेडिकल प्रैक्टिशनर्स से ली जानी चाहिए। आपको इस तरह से भेदभाव नहीं करना चाहिए। डॉक्टरी में धार्मिक विश्वास नहीं आना चाहिए। चूंकि अंत में मेडिकल सलाह मेडिकल ही होती है !”
स्त्रोत : जनसत्ता