पौष अमावास्या , कलियुग वर्ष ५११४
प्रयागराज – जिस दिनसे कुंभमेला आरंभ हुआ है, उस दिनसे गंगा नदीके प्रदूषित जलके सूत्रपर चर्चा हो रही है । कुंभमेला आधा संपन्न होनेके उपरांत भी संतगण गंगा नदीके प्रदूषित जलके लिए आक्रोश कर रहे हैं । । कुंभमेलेमें दो पवित्र स्नान हो चुके हैं । प्रत्येक स्नानके समय संत-महंत गंगा नदीकी शुद्धिके लिए सडकपर उतरे हैं । अब १० फरवरीको सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मौनी अमावस्याका पवित्र स्नान है । दो दिनके उपरांत ही वह स्नान है, तब भी जल प्रदूषित होनेके कारण संतगण पुनः सडकपर उतरे हैं । (हिंदुओंके अत्यंत महत्त्वपूर्र्ण उत्सवकी ऐसी लज्जाजनक अवस्था करनेवाले समाजवादी दलके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कुंभमेलेके आस-पास आते ही नहीं हैं । इससे स्पष्ट होता है कि, समाजवादी दल हिंदू धर्माचार्य एवं करोडों श्रद्धालुओंकी ओर अनदेखी कर गंगा नदीके प्रदूषणके सूत्रपर दूर रहनेकी नीति अपना रहा है ! -संपादक)
गंगा नदीका जल अधिक लाल हो गया है तथा जलमें दुर्गंध भी आ रही है । इसलिए श्रीकाशीसुमेरू पीठाधीश्वर जगत्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वतीके नेतृत्वमें संत-महंत सडकपर उतरे हैं । मौनी अमावस्याके पवित्र स्नान हेतु केवल दो दिन शेष हैं, तब भी सरकारद्वारा गंगा नदीका जल शुद्ध करनेके प्रयास नहीं किए गए हैं । इसलिए संतोंने मार्ग बंद आंदोलन किया । दो दिनोंमें गंगा नदीका जल शुद्ध होनेके संदर्भमें प्रशासन आश्वासन दे रहा है; परंतु आज कुंभनगरीमें डेढ करोडसे अधिक श्रद्धालु गंगा स्नान कर रहे हैं, उन्हें शुद्ध जल मिले ऐसा प्रशासनको क्यों नहीं लगता, यह प्रश्न संतगण प्रशासनसे कर रहे हैं ।
स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात