धर्मरक्षक संघटन का तिसरा प्रांतीय हिन्दू अधिवेशन
भोपाल : हिन्दूहित के लिए कुछ करने की इच्छा रखनेवालों ने अब हिन्दू राष्ट्र हेतु संघटक की भूमिका का निर्वहन करना चाहिए ! हम जहां रहते हैं, उस क्षेत्र की निहित समस्याओं में हमें हिन्दुओं की सहायता कर उनमें विश्वास की भावना जगानी चाहिए। समविचारी संघटनों के साथ हमारे संबंध मित्रतापूर्ण होने चाहिए। हमें बिना किसी अपेक्षा से हमारे धर्मबंधुओं की सहायता करनी चाहिए। इससे ही हिन्दू राष्ट्र की नींव डाली जाएगी !
हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा मार्गदर्शन किया। वे, यहां के धर्मरक्षक संघटन की ओर से आसुदानी चैरिटेबल ट्रस्ट की धर्मशाला में आयोजित तिसरे प्रांतीय हिन्दू अधिवेशन के दूसरे दिन के सत्र में बोल रहे थे। इस अधिवेशन के पहले सत्र में सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने ‘धर्मरक्षण के कार्य में साधना का महत्त्व’ इस विषय पर सभी का मार्गदर्शन किया।
राष्ट्रकार्य की अपेक्षा धर्मकार्य श्रेष्ठ ! – श्री. विनोद यादव, संस्थापक-अध्यक्ष, धर्मरक्षक संघटन
इस समय धर्मरक्षक संघटन के संस्थापक-अध्यक्ष श्री. विनोद यादव ने कहा, ‘‘ईसाई व्यक्ति को ऐसा लगता है कि पूरा विश्व ईसाई बने। हर मुसलमान व्यक्ति को लगता है कि पूरा विश्व इस्लामी बने; परंतु हिन्दू कभी हिन्दू राष्ट्र की मांग नहीं करते ! हिन्दू केवल मानवता, गोरक्षा, धर्मांतर, राष्ट्ररक्षा जैसे छोटे-छोटे सूत्रों पर चर्चा करते रहते हैं; परंतु जिस धर्म ने उनको यह शिक्षा दी, उस धर्म की रक्षा के लिए प्रयास नहीं करते ! अतः सबसे पहले हमें अपने धर्म की रक्षा के लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु प्रयास करने पडेंगे !
इस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के मध्य प्रदेश एवं राजस्थान समन्यवक श्री. आनंद जाखोटिया ने उपस्थित जिज्ञासुओं के सामने ‘हमारे नित्य जीवन में धर्माचरण का महत्त्व’ इस विषय को प्रोजेक्टर के माध्यम से रखा। समिति के मध्य प्रदेश समन्वयक श्री. योगेश व्हनमारे ने समापन सत्र में मार्गदर्शन करते हुए कहा, ‘‘इस अधिवेशन के कारण सभी में पारिवारीक भावना जागृत हुई। आगे आनेवाले संकटकाल में हम एक-दूसरे की सहायता कर अपने धर्म की रक्षा करेंगे ! ईश्वरद्वारा धर्म के पक्ष में संघर्ष करने हेतु हमें चुना गया है। इसमें हमें विजयी होकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी है। इसके लिए हमें ईश्वर के भक्त बनकर उनकी कृपा संपादन करनी होगी !’’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात