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मंदिर सरकारीकरण के कारण संस्कृति और परंपरा को बडी हानि पहुंची ! – ज्येष्ठ पत्रकार श्री. बाळासाहेब बडवे

श्री विठ्ठल- रुक्मिणी मंदिर संरक्षण समिति की ओर से आयोजित ‘क्या है, मंदिर सरकारीकरण की फलानिश्पत्ति ?’ इस विषय पर परिसंवाद

श्रीक्षेत्र पंढरपुर, (महाराष्ट्र) : श्री विठ्ठल मंदिर के सरकारीकरण के समय बडवे, उत्पात और सेवाधारियों के विरोध में द्वेष फैला हुआ था। उसीके फलस्वरूप वर्ष १९७३ में इसके लिए एक कानून बनाया गया। उस समय की स्थिति का विचार कर सुधारों के लिए कुछ नियम बनाने आवश्यक थे; परंतु वैसे न कर सीधी व्यवस्था में ही परिवर्तन लाने का अयोग्य निर्णय लिया गया। उससे सरकारीकरण के पहले निहित दोष तो दूर नहीं हुए; किंतु इस सरकारीकरण के पश्‍चात स्थिति और बिगड गई ! आज भी कुछ भ्रष्ट सदस्य, राजस्व अधिकारियों का बढता हस्तक्षेप, नित्योपचार की बिगडी हुई स्थिति को देखते हुए सरकारीकरण के कारण संस्कृति और परंपरा को बडी हानि पहुंची है ! ‘पंढरी संचार’ इस नियतकालिक के वरिष्ठ पत्रकार श्री. बाळासाहेब बडवे ने ऐसा प्रतिपादित किया। यहां श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर संरक्षण कृति समिति की ओर से आयोजित ‘क्या है, मंदिर सरकारीकरण की फलानिश्पत्ति ?’ इस विषय पर आयोजित परिसंवाद में वे बोल रहे थे।

परिसंवाद में उपस्थित मान्यवर

इस परिसंवाद में विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति के सदस्य गहिनीनाथ महाराज औसेकर, वारकरी संप्रदाय पाईक संघ के ह.भ.प. देवव्रत राणा महाराज वासकर, भीमाचार्य वरखेडकर, विश्‍व हिन्दू परिषद के श्री. रवींद्र साळे, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता श्री. नीलेश सांगोलकर, पत्रकार श्री. महेश खिस्ते, मंदिर समिति की सदस्या श्रीमती शकुंतला नडगिरे एवं श्री. गणेश अंकुशराव ने सहभाग लिया। रामकृष्ण महाराज वीर ने दोनों पक्षों में समन्वयक की भूमिका अपनाते हुए सूत्रसंचालन किया।

मंदिर सरकारीकरण तो हिन्दुओं के चैतन्यस्रोतों को नष्ट करने का षडयंत्र ! – अधिवक्ता श्री. नीलेश सांगोलकर, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

आज भारत में केवल हिन्दुओं के मंदिरों का ही सरकारीकरण क्यों किया जाता है ? आज मुसलमानों के लिए वक्फ बोर्ड बना है और ईसाईयों के लिए डायसोसिएशन सोसाईटी है, तो बहुसंख्यक हिन्दुओं के लिए इस प्रकार की व्यवस्था अर्थात धर्मपीठ क्यों नहीं ? हिन्दुओं के मंदिरों के रूप में स्थित चैतन्यस्रोतों को नष्ट करने का सरकार का षडयंत्र है ! महत्त्वपूर्ण बात यह कि सरकारीकरण करने की स्थिति हिन्दुओं पर ही क्यों आई ?, हर हिन्दू को इसका विचार करने की आवश्यकता है !

आज महाराष्ट्र का विचार किया जाए, तो पंढरपुर का विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर, पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति, कोल्हापुर का श्री महालक्ष्मी मंदिर, मुंबई का श्री सिद्धिविनायक मंदिर, शिर्डी का साईबाबा मंदिर और तुळजापुर का श्री भवानीदेवी मंदिर सहित ३ सहस्र ६७ मंदिरों का सरकारीकरण हो चुका है। हिन्दू विधिज्ञ परिषदद्वारा सूचना के अधिकार के अंतर्गत सरकारीकरण किए गए मंदिरों की जानकारी ली गई। उसका गहन अध्ययन करने के पश्‍चात इसमें बहुत बडी मात्रा में भ्रष्टाचार होने की बात उजागर हुई। इस संदर्भ में मुंबई उच्च न्यायालय में याचिकाएं प्रविष्ट की गई हैं। शासन के पास श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर की १२२० एकड भूमि का विवरण न होने से उस संदर्भ में न्यायालय में प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत करने पर तत्कालिन शासन को मंदिर समिति की स्वामित्ववाली ३५० एकड भूमि को ढूंढ लेने में सफलता मिली। अब प्रश्‍न यह उपस्थित होता है कि यह भूमि कहां गायब हो गई थी अथवा उसका लाभ कौन ले रहे थे ? मंदिर सरकारीकरण के कारण मंदिरों की नहीं, हिन्दुओं को बडी हानि पहुंची है। मंदिर समिति ने पुजारियों की नियुक्ति करते समय उनको पूजाविधि आती है अथवा नहीं, इसका अध्ययन किए बिना ही उनसे साक्षात्कार कर उनकी नियुक्ति की गई। कुल मिलाकर पुरोगामियों की मांग के अनुसार पुजारियों को बदलना और मंदिर के धार्मिक कार्य में बाधा उत्पन्न करना अत्यंत अयोग्य है। आज हिन्दुओं को कोल्हापुर के श्री महालक्ष्मी मंदिर में भी पारंपरिक पुजारियों को हटाकर वहां सरकारी पुजारियों को नियुक्त करने के शासन के षडयंत्र को तोड डालना चाहिए।

इस अवसर पर श्री. रवींद्र साळे ने कहा कि, धर्म को न माननेवाले व्यक्तियों के हाथ में धर्म का व्यवस्थापन देनेवाले इस कानून का निषेध करना चाहिए। मंदिर व्यवस्थापन के लिए सरकारीकरण की आवश्यकता नहीं है। वैसा होता, तो पालकी समारोह जैसा व्यवस्थापन सरकार के नियंत्रण बिना सुचारू रूप से नहीं चलता !

राणा महाराज वासकर ने कहा, ‘‘देवताओं के नित्योपचार एवं देवस्थान के आर्थिक हित में संबंध नहीं होना चाहिए। विठ्ठल मंदिर के सरकारीकरण के कारण पंढरपुरवासियों के लिए देवता पराई बन गई। जिस उत्पीडन का कारण बताकर यह सरकारीकरण हुआ, वह उत्पीडन आज भी हो रहा है !’’

मंदिर समिति की सदस्या श्रीमती शकुंतला नडगिरे ने कहा कि, सरकारीकरण की ओर सकारात्मक दृष्टि से देखना आवश्यक है ! (मंदिर सरकारीकरण के कारण करोडों रुपए का भ्रष्टाचार हुआ है और आज तक इसके कारण घाटा ही घाटा सामने आया है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

सरकार संस्कृति और परंपरा के विरोध में नहीं है ! – गहिनीनाथ औसेकर महाराज

मंदिर समिति के सदस्य गहिनीनाथ औसेकर महाराज ने मंदिर सरकारीकरण का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘हिन्दुओंद्वारा की गई मांग के कारण ही सरकारीकरण हुआ है। सरकार किसी भी मंदिर के अधिग्रहण के लिए पहल नहीं करती। श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर के सरकारीकरण की मांग को लेकर आंदोलन चलाए गए, अनशन किए गए और फेरियां निकाली गई। सरकार ने इसका संज्ञान लेकर विशेष कानून बनाया। ऐसा होते हुए भी सरकार संस्कृति और परंपरा के विरोध में नहीं है ! (सरकार को यह बात ध्यान में लेनी चाहिए कि केवल भक्त ही मंदिर का व्यवस्थापन अच्छे प्रकार से कर सकते हैं ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) सरकार ने ही बडवे और उत्पात जैसे लोगों को समिति का काम करने का अवसर दिया। सरकारीकरण के कारण निश्‍चितरूप से हानि होती है; परंतु समन्वय रखकर उसमें निहित त्रुटियों को सामने लाकर उनमें सुधार करने चाहिएं। भीड का नियोजन करने के लिए सरकारीकरण आवश्यक है; परंतु धार्मिक व्यवस्थापन के लिए स्थानीय पुजारी, संस्कृतिरक्षक और वारकरी इनमें समन्वय रखकर ही कार्य करना आवश्यक है !

श्री विठ्ठल मंदिर की स्थिति पूर्णरूप से बिखर जाने के लिए सरकारीकरण ही उत्तरदायी ! – भीमाचार्य वरखेडकर

मंदिर सरकारीकरण तो असंवैधानिक ही है ! सरकार स्वयं को निधर्मी मानती है, तो धार्मिक क्षेत्र में उनका अधिकार कैसा चलता है ? पुजारियों के लिए मापदंड निर्धारित करते समय उनको वेदों का ज्ञान, पूजन और धार्मिक विधि का महत्त्व एवं उसकी पद्धतियां ज्ञात होनेवालों को ही गर्भगृह में निहित नित्योपचार करने की अनुमति हो, यह वारकरियों को भी स्वीकार है; परंतु आज श्री विठ्ठल मंदिर की स्थिति पूर्णरूप से बिखरने में सरकारीकरण ही उत्तरदायी है। यदि यह सरकार निधर्मी है, तो धर्म के कार्य में सरकार क्यों हस्तक्षेप करती है ?

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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