नाशिकके कुम्भमेलेके सन्दर्भमें अपना पक्ष प्रस्तुत करें – केन्द्रशासन, राज्यशासन एवं नाशिक महानगरपालिकाको उच्च न्यायालयद्वारा हेतु आदेश !

मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष तृतीया, कलियुग वर्ष ५११६

हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा याचिका

  • विश्वमें प्रत्येक घटनाके सन्दर्भमें न्यायालयद्वारा आदेश देनेके लिए विवश एकमात्र देश भारत !
  • हिन्दुओ, यह ध्यानमें रखें कि आपके सभी प्रश्नोंके विषयमें केवल हिन्दू जनजागृति समिति वैधानिक मार्गसे प्रयास करती है !

judgementमुंबई – जुलाई २०१५ से नाशिकमें सिंहस्थ पर्व अर्थात कुम्भमेला चालू हो रहा है । इस सन्दर्भमें केन्द्रशासन एवं राज्यशासन दोनोंकी ओरसे आवश्यक प्रयास नहीं किए जाते । इस प्रकरणमें विविध आन्दोलन कर एवं सरकारको पत्र लिखकर भी कोई लाभ नहीं हुआ । इसलिए हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा मुंबई उच्च न्यायालयमें याचिका प्रविष्ट की गई । इस याचिकापर ७ नवम्बरको मुंबई उच्च न्यायालयके न्यायमूर्ति मोहित शहा एवं बर्जीस कुलाबावालाने सुनवाई कर न्यायालयद्वारा ऐसा आदेश दिया है कि हिन्दू जनजागृति समितिकी याचिका केवल नाशिकतक ही नहीं है, अपितु इस कुम्भमेलेके लिए पूरे देशसे श्रद्धालु आते हैं, इस बातकी गम्भीरताको ध्यानमें लेकर केन्द्रशासन, राज्यशासन एवं नाशिक महानगरपालिकाको चाहिए कि वे अपना पक्ष प्रस्तुत करें । याचिकाकी सुनवाई ४ सप्ताहके पश्चात होगी ।

याचिकामें कहा गया है कि…

१. नाशिकका कुम्भमेला प्रत्येक १२ वर्षोंके उपरान्त होता है । परन्तु अपूर्ण पूर्वसिद्धता एवं पूर्वनियोजनके अभावसे इस कुम्भमेलेकी भगदडमें २९ श्रद्धालुओंकी मौत एवं १८ घायल हुए थे । यह सरकारी अंकवारी है । प्रत्यक्ष रूपसे अंकवारी अधिक होनेकी भी सम्भावना है । उसीप्रकार वर्षाके कारण होनेवाली असुविधाएं, गोदावरीका पानी बढनेसे उत्पन्न अडचनें, अपर्याप्त पुलिस एवं प्रशासन ऐसे अनेक अडचनोंका सामना करना पडा था ।

२. वर्ष २००३ के कुम्भमेलेमें ५० से ६० लाख श्रद्धालु उपस्थित थे । इस अवसरपर यह संख्या एक करोडसे अधिक होनेकी सम्भावना है ।

३. वर्ष २००३ के कुम्भमेलेकी पूर्वसिद्धताके भागके रूपमें सरकारद्वारा लगभग ३०० एकड भूमिपर आनेवाले साधु, सन्त, अखाडे एवं श्रद्धालुके निवास हेतु अधिग्रहित करनेका नियोजन था, जिसके लिए नाशिक क्षेत्रकी भूमिका आरक्षण करनेकी प्रक्रिया चालू हो गई थी; परंतु वर्ष २००३ में केवल ५८ एकड भूमि अधिग्रहित की गई । वर्ष २००३ के पश्चात अबतक यह भूमि अधिग्रहित होकर वर्ष २०१५ कुम्भमेलेके लिए पूरी सिद्धता होनी अपेक्षित थी; परन्तु २०१३ की प्रशासकीय जानकारीके अनुसार केवल ५४ एकड भूमि ही सरकारके नियन्त्रणमें थी । अर्थात इस प्रकरणमें सरकारद्वारा बडी मात्रामें कार्यवाही नहीं की गई अथवा आवश्यक भूमिको नियन्त्रणमें लेनेकी प्रक्रिया भी नहीं की गई ।

४. पिछले वर्ष प्रयागमें सम्पन्न कुम्भमेलेमें भगदड मचकरं ३६ श्रद्धालुओंकी मौत हुई थी । इससे पूर्व भी ऐसी घटनाएं हुई हैं । इसके अतिरिक्त हिन्दुओंके मन्दिर एवं समारोहपर सदैव आतंकवादी आक्रमणोंका बडा संकट रहता है । यह परिस्थिति अत्यन्त गम्भीर है ।

५. वर्ष २००३ के कुम्भमेलेके लिए केन्द्रशासनद्वारा १०० करोड रुपयोंकी निधि दी गई थी । कुम्भमेलेके लिए ४ सहस्र  १०५ करोड रुपयोंकी प्रशासकीय निधिका प्रावधान होते हुए भी केन्द्रशासनने एक रुपया भी निधिमें नहीं दिया है, जबकि राज्य शासनने निधि देना स्वीकार करनेपर भी पर्याप्त निधि नहीं दी है ।

६. ऐसी स्थितिमें नाशिकका कुम्भमेला यथायोग्य सपन्न होने एवं उसमें केन्द्र एवं राज्य शासनद्वारा आवश्यक सभी दायित्वको पूरा करने हेतु निरुपाय होकर हिन्दू जनजागृति समितिको यह याचिका न्यायालयमें प्रविष्ट करनेपर विवश होना पडा ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​