कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) : राजतंत्र में बैठे लोग आज भारतीय संविधान में निहित ‘सेक्युलर’ शब्द के द्वारा हिन्दुआें का दमन करते हैं अथवा प्रसारमाध्यमों में निहित स्वघोषित बुद्धिजीवी हिन्दुआें के साथ वैचारिक अन्याय करते हैं; परंतु वास्तव में भारतीय संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द की किसी भी प्रकार की व्याख्या अथवा अर्थ नहीं दिया गया है । अतः आज अनेक लोगों ने सेक्युलर शब्द के ‘धर्मनिरपेक्षता’, ‘सर्वधर्मसमभाव’, ’लौकिकवाद’ इस प्रकार से कई अर्थ लगाए हैं । हिन्दुआें को यह मांग करनी चाहिए कि भारतीय संविधान से ‘सेक्युलर’ नामक अर्थहीन शब्द को हटाकर उसके स्थानपर ‘सनातन धर्माधिष्ठित’ शब्द प्रविष्ट किया जाए । ऐसा कहा जाता है कि आज की केंद्र सरकार पूर्ण बहुमतवाली सरकार है, तो इस सरकार को संविधान की धारा ३६८ का उपयोग कर यह साहस दिखाना चाहिए, जिससे के भारत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का संवैधानिक मार्ग प्रशस्त हो सकेगा । सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने ऐसा प्रतिपादित किया । कुशीनगर में ‘सेक्युलरवाद तथा उससे पहुंची हानि’ इस विषयपर आयोजित मार्गदर्शन में वे बोल रहे थे ।
सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश डी. एन्. श्रीवास्तव ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की । समिति के उत्तर प्रदेश-बिहार राज्य समन्वयक श्री. विश्वनाथ कुलकर्णी भी कार्यक्रम में उपस्थित थे । कुशीनगर के सेवानिवृत्त प्रपाठक डॉ. रामजीलाल मिश्र ने कार्यक्रम का आयोजन तथा संचलन किया । उन्होंने आगे कहा, ‘‘सेक्युलर एक ईसाई संकल्पना है । युरोप के ईसाई कैथॉलिक, प्रोटेस्टंट, प्रिस्बेरियन, आर्थोडॉक्स आदि विविध उपपंथों में बंट गए हैं । उनमें चल रहे धार्मिक तथा नागरी संघर्ष को समाप्त करने के लिए युरोपीय देशों ने लौकिक अर्थात नागरी विधियां यदि सेक्युलर हो, तो पारलौकिक अर्थात धार्मिक कानून देश के द्वारा राजमान्य विशिष्ट उपपंथ के होंगे, इस प्रकार की व्यवस्था बनाई । यह युरोपीय संकल्पना का भारत के लिए अनुपयुक्त होते हुए भी भारत के अनपढ राज्यकर्ताआें ने वर्ष १९७६ में आपातकाल के समय में जब विपक्षी नेता कारागृह में थे, तब पशुवत बहुमत के बलपर संविधान में ४२ वां संशोधन कर भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘सेक्युलर’ शब्द प्रविष्ट किया । तो यदि हमें संसदीय अधिकारों का उपयोग कर इस शब्द को प्रविष्ट करना संभव होता है, तो हम इस शब्द को हटा भी सकते हैं । आज भारत के तथाकथित सेक्युलरवादियों को यह वास्तव बताने की आवश्यकता है ।’’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात