मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११६
सांगली, महाराष्ट्रमें होनेवाले द्वितीय पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलनके निमित्त…
गव्यसिद्धाचार्य निरंजनभाई वर्माका परिचय
गव्यसिद्धाचार्य निरंजनभाई वर्मा तामिलनाडू कांचीपुरम् जनपदमें कट्टावाक्कम् गांवके महर्षि वाग्भट्ट गोशालाके संस्थापक हैं । वे प्रखर हिन्दूनिष्ठ हैं तथा पिछले १५ वर्षोंसे पंचगव्य विषयपर संशोधन कर रहे हैं । देशी गायोंसे मिलनेवाला दूध, दही, घी, गोमूत्र एवं गोमय(गोबर) इत्यादि सभीको मिलाकर ‘पंचगव्य’की संज्ञा प्राप्त है । निरंजनभाई वर्मा भारतके विविध क्षेत्रोंमें जाकर गोविज्ञानके सन्दर्भमें जनजागृति करते हैं । उनकी प्रेरणासे आज पूरे भारतमें १०० से अधिक गव्यसिद्ध (पंचगव्यद्वारा उपचार करनेवाले वैद्य) असाध्य रोगोंकी सफलतापूर्वक चिकित्सा कर रहे हैं । अनेक गोशालाएं आर्थिक दृष्टिसे स्वावलम्बी हो रही हैं तथा अनेक किसान सेंद्रिय खेतीकी ओर मुड रहे हैं । जून २०१४ में हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा रामनाथी, गोवामें आयोजित तृतीय अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशनमें हिन्दू गव्यसिद्धाचार्य निरंजनभाई वर्मा सम्मिलित हुए थे । वे सनातन संस्थाके कार्यकी सहायता करते हैं ।
तामिलनाडू राज्यके कांचीपुरम् जनपदमें महर्षि वाग्भट्ट गोशालाद्वारा १४ से १६.११.२०१४ की कालावधिमें महाराष्ट्रके सांगलीमें द्वितीय अखिल भारतीय पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलनका आयोजन किया गया है । इस महासम्मेलनकी पार्श्वभूमि, उद्देश्य एवं विशेषताओंके विषयमें इस लेखसे जानकारी प्राप्त करें ।
१. प्राचीन समयमें देशकी सम्पन्नताका मूल भारतीय गाय आज नष्ट होनेके मार्गपर
‘यदि भारतकी गायें आज नष्ट हो गर्इं, तो ही भारतपर अधिराज्य करना सम्भव होगा’ अंग्रेजोंने यह पहचान लिया एवं सुनियोजित रूपसे गायोंको समाप्त करनेका षडयन्त्र रचा । धूर्त अंग्रेजोंने विविध कानून बनाकर भारतीय गायें कैसे नष्ट हों, इसपर ही ध्यान दिया । दुर्भाग्यवश स्वतन्त्रताप्राप्तिके के पश्चात राजनेताओंने भी अंग्रेजोंकी ही नीति आगे चालू रखी । शासनकी सहायतासे देशभरमें सहस्रावधि वैधानिक एवं अवैधानिक पशुवधगृहोंसे निस्संकोच रूपसे गोहत्याएं हो रही हैं । भारत स्वतंत्र हुआ, तब लगभग ३४ करोड रहनेवाला गोधन आज केवल ३ से ३.५ करोड ही शेष रह गया है । ऐसी ही स्थिति बनी रही, तो भविष्यमें भारतीय गाय केवल चित्रतक सीमित होकर रह जाएगी ।
२. भारतको पुनः समृद्ध बनाने हेतु गोमातापर आधारित व्यवस्था स्थापित करना आवश्यक
स्व. राजीव दीक्षितने ‘भारतकी अवनति होनेके कारण एवं भारतको पुनः जगद्गुरु होने हेतु क्या करना सम्भव है ?’, इस विषयमें चिन्तन किया । ‘यद्यपि भौगोलिक दृष्टिसे हम स्वतन्त्र हो गए हैं, परन्तु अभी भी मानसिक दृष्टिसे पाश्चात्त्योंके दास हैं एवं जबतक हम दासताकी इस बेडीको नहीं झटकते, तबतक भारत कभी समृद्ध नहीं हो सकता,’ राजीव भाईने इसे जान लिया था । यदि भारतको पुनः समृद्ध बनाना है, तो पूरे भारतमें प्राचीन भारतीय गोविज्ञानका प्रसार करना चाहिए तथा गोमातापर आधारित व्यवस्थाको स्थापित करना चाहिए । राजीव भाईने ये विचार व्यक्त किए ।
३. गायकी उपयोगिताको जान लेना गोहत्या एवं किसानोंकी आत्महत्या रोकने हेतु सर्वोत्तम मार्ग
गोमाता केवल खेती एवं दूधतक सीमित नहीं है, अपितु उसमें विश्वकी सभी व्याधियां दूर करनेका सामर्थ्य है । भारतीय गायने दूध नहीं दिया, तो उसके मूत्र एवं गोमयसे बहुमूल्य औषधियां बनाना सम्भव है । प्रतिदिन २ लिटर दूध, ३ लिटर गोमूत्र एवं १० किलो गोबर देनेवाली केवल एक भारतीय गायमें वार्षिक न्यूनतम ३ लाख रुपयोंका उत्पाद देनेका सामर्थ्य है । यह आर्थिक गणित समझमें आनेपर गोहत्या एवं किसानोंकी आत्महत्या त्वरित रुककर देश व्याधि मुक्त एवं समृद्ध हो पाएगा । इस आर्थिक गणित तथा गोविज्ञानका प्रसार करने हेतु स्व. राजीव भाईकी प्रेरणासे वर्ष १९९९ में महर्षि वाग्भट्ट गोशालाकी स्थापना हुई । तबसे महर्षि वाग्भट्ट गोशाला पूरे भारतमें गोविज्ञानके प्रसारके लिए प्रयासरत है ।
४. गोविज्ञानके प्रसारके लिए प्रतिवर्र्ष पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलनका आयोजन
महर्षि वाग्भट्ट गोशाला एवं पंचगव्य अनुसन्धान केन्द्रद्वारा प्रतिवर्ष स्व. राजीवभाई दीक्षितकी जन्मतिथि, कालभैरव अष्टमीपर पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलनका आयोजन किया जाता है । प्रत्येक वर्ष यह महासम्मेलन भारतके अलग अलग प्रान्तोंमें आयोजित किया जाता है । अगले वर्ष झारखण्ड, हरियाणा एवं नेपालमें महासम्मेलन आयोजित करनेकी योजना है । यह ग्रामस्वराज्यके समर्थक गीताचार्य तुकारामदादाका सौवां जयन्ती वर्ष है । इस अवसरपर इस वर्षका महासम्मेलन औदुंबर तथा सांगलीके गोपालनंदन गोशालाके सहयोगसे औदुंबर एवं सांगलीमें होगा ।
५. पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलनका उद्देश्य
अ. भारतीय गोमाताकी सर्व प्रजातियोंकी सुरक्षा एवं संवर्धन करना
आ. गोपालकोंको गोमाताके गव्योंका (दूध, गोमूत्र एवं गोमय (गोबर) का सदुपयोग करनेकी शिक्षा देना
इ. आज भारतमें सहस्रावधि लोग पंचगव्यके आधारपर रुग्णोंपर उपचार कर रहे हैं । ऐसे लोगोंका संगठन कर उनके लिए स्वतन्त्र व्यासपीठ उपलब्ध कराना
ई. गोविज्ञानके सन्दर्भमें किए जानेवाले प्रयासोंको व्यापक प्रसिद्ध देना
उ. भारतीय किसानोंके घरमें स्वावलम्बी गोशालाओंका निर्माणकार्य कर रसायनमुक्त कृषि व्यवस्थाकी पुनःस्थापना करना
६. महासम्मेलनकी विशेषताएं
अ. इस महासम्मेलनमें पूरे भारतसे बडी संख्यामें पंचगव्यपर संशोधन करनेवाले शास्त्रज्ञ, पंचगव्यद्वारा असाध्य रोगोंकी सफलतापूर्वक चिकित्सा करनेवाले चिकित्सक, गोरक्षाके कार्यमें सक्रिय सहभाग लेनेवाले अधिवक्ता, गोरक्षक एवं गोप्रेमी एकत्रित आएंगे ।
आ. ३ दिनतक चलनेवाले इस महासम्मेलनमे विविध शोधनिबन्ध पढे जाएंगे ।
इ. पंचगव्यके उपयोगसे असाध्य व्याधियोंसे पूरी तरह अच्छे हुए अनेक रुग्ण अपने अनुभव कथन करेंगे ।
ई. भारतीय गाय बन पडनेवाली नहीं, यह मतप्रवाह खण्डित कर गाय साक्षात लक्ष्मी है, इस महासम्मेलनमें यह दर्शानेवाले अनेक प्रमाण देखनेको मिलेंगे ।
उ. पंचगव्यसे मानवके लिए उपकारी औषधियां तथा कृषिसे सम्बन्धित जैविक उर्वरक(खाद) एवं कीटकनाशक बनानेके विषयमें जानकारी दी जाएगी । पंचगव्यसे सम्बन्धित नए नए उपकरणोंकी भी जानकारी यहां मिलेगी ।
ऊ. इस सम्मेलनमें, ‘गोशालाएं स्वावलबी कैसे हों, ?’ इस सन्दर्भमें मार्गदर्शन भी होगा ।
ए. इस महासम्मेलनमें ‘पंचगव्य गुरुकुलम्’ का ‘गव्यसिद्ध’ अभ्यासक्रम सफलतापूर्वक उत्तीर्ण विद्यार्थियोंका दीक्षादान समारोह भी होगा ।
ऐ. इस अवसरपर सर्वगव्यसिद्ध (पंचगव्यद्वारा रुग्णोंपर उपचार करनेवाले चिकित्सक) व्याधिमुक्त भारतके निर्माणकी शपथ लेंगे । गोसंवर्धनके क्षेत्रमें उल्लेखनीय कार्य करनेवाले व्यक्तियोंको पुरस्कारसे सम्मानित किया जाएगा ।
ओ. इस महासम्मेलनमें भोजन पूर्णतः सोन्द्रिय खेतीसे उत्पन्न अन्नसे बनाया हुआ रहेगा । आयोजकोंने इसके लिए १ वर्ष पूर्वसे विशेष सोन्द्रिय खेती कर इसका नियोजन किया । इसके पीछेका उद्देश्य है, ‘खेतीका प्रसार हो ।’
औ. इस महासम्मेलनमे अखिल भारतीय पंचगव्य चिकित्सक संघकी स्थापना होनेकी अधिकृत घोषणा होगी । पंचगव्य चिकित्सक संघ (पंचिस) भारतभरके गव्यसिद्धोंका (पंचगव्यद्वारा रुग्णोंपर उपचार करनेवाले चिकित्सकोंका) संगठन होगा ।
अं. इस सम्मेलनमें १४.११.२०१४ को अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा गोमातासे सम्बन्धित आध्यात्मिक संशोधन विषय प्रस्तुत किया जाएगा ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात