कांची शंकर मठ के प्रमुख जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वतीजी ने दिल का दौरा पडने के बाद बुधवार को देह त्यागा । अस्पताल के सूत्रों ने बताया कि, ८२ वर्ष के शंकराचार्य ने बेचैनी की शिकायत की थी जिसके बाद उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया । सूत्रों ने इस संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं दी । हालांकि, वह लंबे समय से बीमार थे और उन्हें पिछले महीने भी सांस की बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती करवाया गया ।
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वतीजी देश के सबसे पुराने मठों में से एक के प्रमुख थे और वह काफी लंबे समय से इस पद पर आसीन थे । १९९४ में वह जगद्गुरु शंकराचार्य श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वतीजी स्वामीगल के बाद इस शैव मठ के ६९ वें प्रमुख बने थे । वे १९५४ में शंकराचार्य बने थे । इससे पहले २२ मार्च १९५४ को जगद्गुरु शंकराचार्य चंद्रशेखरेंद्र सरस्वतीजी स्वामीगल ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था । उस समय वे केवल १९ साल के थे ।
उनका जन्म १८ जुलाई १९३५ में तमिलनाडु में हुआ था । कांची कामकोटि पीठ के ६९ वें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वतीजी का इस पद पर आसीन होने से पहले का नाम सुब्रमण्यम था ।
अयोध्या में राम मंदिर चाहते थे शंकराचार्य
हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम भुमिका निभानेवाले जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वतीजी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए विभिन्न पक्षों के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू किया था । जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वतीजी की पहल से मुफ्त अस्पताल, शिक्षण संस्थान और बेहद सस्ती कीमत पर उच्च शिक्षा देने के लिए विश्वविद्यालय तक संचालित हैं ।
दक्षिण भारत का प्रमुख धार्मिक स्थल है कांची मठ
कांची मठ कांचीपुरम में स्थापित एक हिन्दू मठ है । यह पांच पंचभूतस्थलों में से एक है । यहां के मठाधीश्वर को शंकराचार्य कहते हैं । यह दक्षिण भारत के महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है । कांची मठ के द्वारा कई सारे स्कूल, आंखों के अस्पताल चलाए जाते हैं । उन्होंने समाज के लिए काफी काम किए थे ।
स्त्रोत : लाइव हिन्दुस्थान एवं आज तक