भारत की भूमि विद्वानों की भूमि है, जिसके पीछे भारत का गौरवशाली इतिहास गवाह रहा है । चिकित्सा से लेकर विज्ञान के क्षेत्र में आगे होने के बावजूद यह देश कई मायनों में बाकी देशों से अलग है जिसमें आस्था भी एक अहम भूमिका निभाती है, जो इस देश को इतनी विविधता होने के बावजूद एक धागे में बांधे रखता है ।
इस आस्था को बनाये रखने में यहां मौजूद मंदिरों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता । चलिए आज हम आपको भारत के ऐसे ही कुछ मंदिरों की सैर पर ले चलते हैं जो लोगों की आस्था का केंद्र तो है ही, इसी के साथ-साथ भारत के गौरवशाली इतिहास को भी समेटे हुए है ।
१. बद्रीनाथ मंदिर, उत्तराखंड
उत्तराखंड का चमोली जिला, अलकनंदा नदी का किनारा भगवान बद्रीनाथ के घर के नाम से भी जाता है । बद्रीनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के चार पवित्र धामों में से एक है । इसके अलावा बद्रीनाथ में भी एक छोटा चार धाम है जिसमे भगवन विष्णु के एक सौ आठ मंदिर हैं जो भगवन विष्णु को समर्पित हैं । भगवान विष्णु की यात्रा करने वाले लोगों का यहां तांता लगा रहता है । यहां पर की जाने वाली यात्रा केवल अप्रैल से ले कर सितम्बर तक ही रहती है । इस मंदिर से सम्बंधित दो खास त्यौहार हैं जो इसकी खासियत को और बढाते हैं ।
माता मूर्ति का मेला : भगवान बद्रीनाथ की पूजा शुरू हो कर यह मेला सितम्बर तक चलता है जब तक कि मंदिर के कपाट बंद नहीं हो जाते ।
बद्री-केदार त्यौहार : आठ दिनों तक चलने वाला यह मेला बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों जगहों पर जून के महीने में मनाया जाता है ।
२. सूर्य मंदिर, कोणार्क, आेडिशा
ओडिसा की पूरी जिला के पास है कोणार्क जो मंदिर के रूप में वास्तुकला का अद्भुत नमूना है । यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है । रथ के आकार में बने इस मंदिर में बारह पहिये हैं जिसे सात घोडे खींचते हुए महसूस होते है ।
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इस मंदिर की खूबसूरती के बारे में कहा था कि, ‘‘यहां पत्थरों की भाषा इंसानों की भाषा को मात देती नज़र आती है’’ ।
३. बृहदीस्वरा मंदिर, तमिलनाडू
बृहदीस्वरा मंदिर, को पेरुवुडइयर कोविल, राजराजेस्वरम भी कहा जाता है जिसे ग्याहरवीं सदी में चोल साम्राज्य के राजा चोल ने बनवाया था । भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के सबसे बडे मंदिरों में से एक है । यह मंदिर ग्रेनाइट की विशाल चट्टानों को काटकर वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाया गया है । इसमें एक खासियत यह है कि दोपहर बारह बजे इस मंदिर की परछाई जमीन पर नहीं पडती ।
४. सोमनाथ मंदिर, गुजरात
गीता, स्कंदपुराण और शिवपुराण जैसी प्राचीन किताबों में भी सोमनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है । सोम का अर्थ है चन्द्रमा और सोमनाथ का अर्थ, चन्द्रमा की रक्षा करने वाला । एक कहानी के अनुसार, सोम नाम का एक व्यक्ति अपने पिता के श्राप के कारण से काफी बीमार हो गया था । तब भगवान शिव ने उसे बीमारी से छुटकारा दिलाया था, जिसके बाद शिव के सम्मान में सोम ने यह मंदिर बनवाया । यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है जो सौराष्ट्र के प्रभास क्षेत्र में है । ऐसी मान्यता है कि, यह वही क्षेत्र है जहां भगवान श्रीकृष्ण अपना शरीर त्यागा था ।
यह मंदिर अरब सागर के किनारे बना हुआ है और दक्षिणी ध्रुव और इसके बीच कोई जमीन नहीं है ।
५. केदारनाथ मंदिर, उत्तराखंड
हिमालय की गोद, गढवाल क्षेत्र में भगवान शिव के अलोकिक मंदिरों में से एक केदारनाथ मंदिर स्थित है । एक कहानी के अनुसार इसका निर्माण पांडवों ने युद्ध में कौरवों की मृत्यु के प्रायश्चित के लिए बनवाया था । आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने इसका पुनरुत्थान करवाया । यह उत्तराखंड के छोटे चार धामों में से एक है जिसके लिए यहां आने वालों को १४ किलोमीटर के पहाडी रास्तों पर से गुजरना पडता है ।
यह मंदिर ठन्डे ग्लेशियर और ऊंची चोटियों से घिरा हुआ है जिनकी ऊंचाई लगभग 3,583 मीटर तक है । सर्दियों के दौरान यह मंदिर बंद कर दिया जाता है । सर्दी अधिक पडने की सूरत में भगवन शिव को उखीमठ ले जाया जाता है और पांच-छह महीने वहीं उनकी पूजा की जाती है ।
६. रामनाथस्वामी (रामेश्वरम) मंदिर, तमिलनाडू
ये मंदिर तमिलनाडु के पास एक छोटे से द्वीप के समीप है जिसे रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है । यह हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार उनके चार पवित्र धामों में से एक है । एक मान्यता के अनुसार जब भगवान राम, रावण को हराकर आये थे तो पश्चाताप के लिए उन्होंने शिव की पूजा करने की योजना बनाई क्योंकि उनके हाथों से एक ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी थी । शिव की पूजा के लिए उन्होंने हनुमान को कैलाश भेजा जिससे वह उनके लिंग रूप को वहां ला सकें । पर जब तक हनुमान वापिस लौटते तब तक सीता माता रेत का एक लिंग बना चुकी थी । हनुमान द्वारा लाए गए लिंग को विश्वलिंग कहा गया जबकि सीता द्वारा बनाये गए लिंग को रामलिंग कहा गया । भगवान राम के आदेश से आज भी रामलिंग से पहले विश्वलिंग की पूजा की जाती है ।
७. वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू-कश्मीर
जम्मू कश्मीर के कटरा से १२ किलोमीटर त्रिकुट की पहाडियों पर जमीन से ५२०० फीट की ऊंचाई पर स्थित है वह पवित्र गुफा जहां माता वैष्णो देवी के दर्शन होते है । आज वहां वैष्णो देवी तीन पत्थरों के रूप में रहती है जिसे पिंडी कहा जाता है । हर साल लाखों लोग माता से आशीर्वाद लेने यहां आते है ।
८. सिद्धिविनायक मंदिर, महाराष्ट्र
मुंबई के प्रभादेवी में स्थित है सिद्धिविनायक मंदिर जिसे अठारवीं सदी में बनाया गया था । ऐसा माना जाता है कि किसी भी काम को शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है । वैसे तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, पर मंगलवार के दिन खासतौर पर यहां भीड रहती है ।
९. गंगोत्री मंदिर, उत्तराखंड
उत्तराखंड के उत्तरकाशी के गंगोत्री को गंगा का उद्भव स्थल माना जाता है । जब भागीरथ गंगा को स्वर्ग से लेकर आये थे तो यहीं पर भगवान शिव ने उन्हें जटाओं में बांधकर जमीन पर उतारा था । अठांरवीं सदी में बना यह मंदिर सफेद ग्रेनाइट से बना हुआ है ।
१०. काशी विश्वनाथ मंदिर, उत्तर प्रदेश
काशी विश्वनाथ मंदिर, पवित्र एवं प्राचीन शहर बनारस में स्थित है । यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है । विश्वनाथ का अर्थ होता है विश्व का स्वामी । यह इस मंदिर की खासियत ही थी जो यहां गुरु नानक से लेकर तुलसीदास, विवेकानंद और आदि शंकराचार्य जैसे लोगों को खुद तक खींच लाई । ऐसा मानना है कि इस मंदिर को देखने मात्र से मोक्ष के सारे दरवाजे खुल जाते हैं ।
११. जगन्नाथ मंदिर, आेडिशा
बारवीं सदी में बना यह मंदिर उडीसा के पुरी में बना हुआ है जिस कारण इसे जगन्नाथ पुरी के नाम से भी जाना जाता है । यह मंदिर भगवान कृष्णा के साथ-साथ उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा को समर्पित है । इस मंदिर में गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है ।
१२. यमुनोत्री मंदिर, उत्तराखंड
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में उन्नीसवीं सदी का बना यह मंदिर कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो चुका है । गंगा के बाद यमुना को भी काफी पवित्रता कि दृष्टि से देखा जाता है ।
जमीन से ३२९१ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां यमुना देवी कि पूजा की जाती है । मंदिर के दरवाजे अक्षय त्रित्या से लेकर दिवाली तक श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते है
१३. मिनाक्षी मंदिर, तमिलनाडू
मदुरई का मीनाक्षी मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है बल्कि यह कला में रुची रखनेवालों के लिए भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है । यह मंदिर देवी पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है । मंदिर के बीचों बीच एक सुनहरा कमल रुपी तालाब है । मंदिर में लगभग ९८५ पिलर हैं, हर पिलर को अलग अलग कला कृतियों द्वारा उकेरा गया है । इस मंदिर का नाम विश्व के सात अजूबों के लिए भी भेजा जा चुका है ।
१४. अमरनाथ मंदिर, जम्मू-कश्मीर
जम्मू कश्मीर की बर्फीली पहाडियों में जमीन से ३८८८ मीटर ऊपर ५००० साल पुरानी गुफा है, जहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को ५ दिनों में ४० मील की चढाई करनी पडती है । यह क्षेत्र साल भर बर्फ से ढका रहता है, यहां कि यात्रा केवल गर्मियों के दौरान ही की जाती है । उस समय भी यह क्षेत्र काफी हद तक बर्फ से ढका हुआ रहता है ।
१५. लिंगराज मंदिर, आेडिशा
मंदिरों के शहर उडीसा में एक और मंदिर है जो बडा होने के साथ-साथ अपने साथ इतिहास को भी समेटे हुए है । यह मंदिर श्रद्धालुओं के साथ साथ इतिहासकारों को भी अपनी आेर आकर्षित करता है जिसकी वजह यहां कि एतिहासिक इमारते है । वैसे तो यह मंदिर शिव को समर्पित है पर यहां शिव के साथ साथ भगवान विष्णु कि भी पूजा कि जाती है, जिस कारण यह हरिहर के नाम से भी जाना जाता है ।
१६. तिरुपति बालाजी, आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश की तिरुमाला पहाडियों में बसा है तिरुमाला वेंकटेश्वारा मंदिर जिसे तिरुपति बालाजी के नाम से जाना जाता है, यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है । यह मंदिर भारत में मौजूद सबसे अमीर मंदिरों में से एक है । यहां पर प्रसाद के रूप में मिलने वाला लड्डू अपने स्वाद के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है । यहां पर मन्नत पूरी हो जाने पर लोग अपने बालों का चढावा चढाते हैं ।
१७. कांचीपुरम मंदिर, तमिलनाडू
कांचीपुरम के मुख्य आकर्षण हैं यहां के बेहतरीन मंदिर । पहले यहां हजारों मंदिर हुआ करते थे । वहीं आज केवल १२४ मंदिर ही शेष बचे हैं । उनमें से मुख्य मंदिर हैं, कामाक्षी अम्मा मंदिर, वरदराज मंदिर, कैलाशनाथ मंदिर, एकमबारेश्वर मंदिर, पेरूमल मंदिर । ये मंदिर अपनी बेहतरीन शिल्पकला और बनावट के लिए पूरी दुनिया में प्रसिध्द हैं।
१८. विरूपक्षा मंदिर, कर्नाटक
७ वीं सदी में हम्पी में बना यह मंदिर आज भी अपने पूजा पाठ के लिए जाना जाता है । इसे unesco द्वारा राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जा चुका है । यह मंदिर धार्मिक दृष्टि के अलावा पर्यटन कि दृष्टि से भी काफी महत्व रखता है ।
१९. अक्षरधाम मंदिर, देहली
यमुना का किनारा जहां एक ओर देहली को दो भागों में बांटता है, वहीं अक्षरधाम मंदिर आस्था के जरिए देहली के दोनों किनारों को आपस में जोडता है । अक्षरधाम मंदिर, वास्तुशास्त्र और पंचशास्त्र के नियमों को ध्यान में रख कर बनाया गया है । इसका मुख्य गुम्बद मंदिर से लगभग ११ फीट ऊंचा है । इस मंदिर को बनाने में राजस्थानी गुलाबी पत्थरों का उपयोग किया गया है ।
स्त्रोत : Tourmadly