वीरुपाक्ष मंदिर भारत के प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है तथा इस मन्दिर का संबंध इतिहास प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य से है । यह मंदिर बंगलौर से ३५० किलोमीटर की दूरी पर भारत के कर्नाटक राज्य, हम्पी में स्थित है । यह मंदिर हम्पी के ऐतिहासिक स्मारकों के समूह का एक मुख्य हिस्सा है, विशेषकर पट्टडकल में स्थित स्मारकों के समूह में है । इस मंदिर का नाम यूनेस्को, विश्व धरोहर स्थल में शामिल है । यह मंदिर भगवान विरुपक्ष और उनकी पत्नी देवी पंपा को समर्पित है विरुपक्ष, भगवान विरुपक्ष भगवान शिव का ही एक रूप है । इस मंदिर के पास छोटे-छोटे और मंदिर है जो कि अन्य देवी देवताओं को समर्पित है । आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिला, तिरुपति से लगभग १०० किलोमीटर दूर नलगानापल्ली नामक एक गांव में वीरूक्षिनी अम्मा मंदिर (मां की देवी) भी है ।
यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी, तुंगभद्रा नदी के किनारे पर स्थित है । विम्पाक्ष मंदिर, हम्पी में तीर्थ यात्रा का मुख्य केंद्र है, और सदियों से सबसे पवित्र अभयारण्य माना जाता है । आसपास के खंडहरों में यह मंदिर अब भी बरकरार है और अभी भी मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है ।
वीरुपाक्ष मंदिर विक्रमादित्य द्वितीय की रानी लोकमाहदेवी, द्वारा बनाया गया था । यह मंदिर रानी लोकमादेवी ने राजा विक्रमादित्य को कांचीपुरम के पल्लव के राजा पर विजय पाने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया था । यह मंदिर नौ स्तरों और ५० मीटर ऊंचा गोपुरमवाला यह मंदिर तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर हेमकूट पहाड़ी की तलहटी पर स्थित है । यह मंदिर दक्षिण भारतीय द्रविड़ स्थापत्य शैली को दर्शाता है और ईंट तथा चूने से बनाया गया है । मंदिर में वास्तुकला का एक द्रवियन शैली है और कांचीपुरम में कैलासनाथ के प्रसिद्ध पल्लव मंदिर की शैली से मिलता जुलता है ।
विरुपाक्ष मंदिर के प्रवेश द्वार का गोपुरम हेमकुटा पहाड़ियों व आसपास की अन्य पहाड़ियों पर रखी विशाल चट्टानों से घिरा है और चट्टानों का संतुलन हैरान कर देने वाला है । १५०९ में अपने अभिषेक के समय कृष्णदेव राय ने यहाँ के गोपुड़ा का निर्माण करवाया था ।
विरुपाक्ष मन्दिर का शिखर जमीन से ५० मीटर ऊंचा है । इस विशाल मन्दिर के अंदर अनेक छोटे-छोटे मन्दिर हैं, जो विरुपाक्ष मन्दिर से भी प्राचीन हैं । मन्दिर को ‘‘पंपापटी मन्दिर’’ भी कहा जाता है, यह हेमकुटा पहाड़ियों के निचले हिस्से में स्थित है ।
ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने इस जगह को अपने रहने के लिए कुछ अधिक ही बड़ा समझा और अपने घर वापस लौट गए । विरुपाक्ष मन्दिर में भूमिगत शिव मन्दिर भी है । मन्दिर का बड़ा हिस्सा पानी के अन्दर समाहित है, इसलिए वहाँ कोई नहीं जा सकता । बाहर के हिस्से के मुकाबले मन्दिर के इस हिस्से का तापमान बहुत कम रहता है ।
स्त्रोत : दि डिव्हाइन इंडिया