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दोषरहित व्यक्ति ही किसी अन्य व्यक्ति का दोष दूर कर सकता है ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे

विश्व महिला दिवस के उपलक्ष्य मे लाल बहाद्दूर शास्त्री महिला आयुर्वेदिक वैद्यकीय महाविद्यालय, विलासपुर, हरियाणा के छात्राओं को मार्गदर्शन

सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे

विलासपुर (यमुनानगर, हरियाणा) : महर्षि वाग्भटद्वारा लिखित ‘अष्टांगहृदयम्’ ग्रंथ में ‘अच्छा वैद्य कैसे बने एवं समाज, राष्ट्र एवं धर्म की अच्छी सेवा कैसे करें ?’ इन सूत्रों पर प्रकाश डाला है ! पंचमहाभूतों के आधार पर त्रिदोष सिद्धांत का वर्णन किया गया है । यह आयुर्वेदिय चिकित्सा की प्रमुख नीव है । दोषरहित व्यक्ति ही किसी अन्य व्यक्ति का दोष दूर कर सकता है । हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने यहां ऐसे प्रतिपादित किया । वे विश्व महिला दिवस के उपलक्ष्य मे यहां के लाल बहाद्दूर शास्त्री महिला आयुर्वेदिक वैद्यकीय महाविद्यालय में छात्राओं को मार्गदर्शन करते हुए बोल रहे थे । इस अवसर पर महाविद्यालय के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. महेंद्र कुमार अग्रवाल, प्राचार्य, प्राध्यापक एवं छात्राएं उपस्थित थीं ।

इस अवसर पर सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने आगे कहा कि ऋषि-मुनियोंद्वारा की जानेवाली चिकित्सा में आध्यात्मिक स्तर को अधिक महत्त्व दिया जाता था । अतः रुग्ण भली-भांति अच्छे होते थे । रुग्ण की जांच करते हुए अपना मन स्थिर एवं प्रसन्न रखना आवश्यक है । यह स्थिरता साधना करने से ही प्राप्त होती है !

साधना से अपना आभामंडल सात्विक एवं चैतन्यदायी बनता है, और वो कार्य करने लगता है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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