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जगदलपुर (छतिसगढ) : केशरपाल की बाडी में मिली भगवान विष्णु की दुर्लभ प्रतिमा

जगदलपुर : पुरातात्विक महत्व की मूर्तियों का गढ कहे जानेवाले केशरपाल में दुर्लभ मूर्तियों के मिलने का क्रम जारी है । अब मनबोध यादव की बाडी में नाली खोदने के दौरान भगवान विष्णु सहित कंकालिन और दिगपाल की प्रतिमा और पुराने मंदिर के भग्नावशेष मिले है !

इधर खेत में मिली भगवान विष्णु की एक और दुर्लभ प्रतिमा को ग्रामीणों ने बस्ती के तिराहे में रख दिया है । केशरपाल में पुरातन महत्व की वस्तुओं की उपेक्षा की एक और बानगी यह है कि एक शिलालेख को ग्रामीण ने अपनी बाड में सामान्य पत्थर की तरह लगा रखा है ।

जिला मुख्यालय से लगभग ६० किमी दूर मारकंडी नदी के किनारे ग्राम केशरपाल बस्ती से करीब एक किमी दूर के पुरातन स्थल को पुरातत्व विभाग से संरक्षित कर रखा है परंतु बस्ती में बिखरी पडी मूर्तियों के प्रति पूरी तरह से उदासीन है, जबकि बस्ती में दुर्लभ मूर्तियों और शिलालेखों के अलावा मंदिरों के भग्नावशेषों का जखीरा है ! अंचल में अन्य जगहों पर रखी मूर्तियों के मामले में भी यही नजरिया दिखता है ।

१२वीं शताब्दी की हैं मूर्तियां

छग पुरातत्व विभाग के उप संचालक जे.आर. भगत ने बताया कि केशरपाल के गुढियारी तालाब प्रक्षेत्र और बस्ती में बिखरी पडी मूर्तियां १२वी शताब्दी के आसपास की हैं । बाडी में मिली विष्णु आदि प्रतिमाओं की जानकारी विभाग को नहीं हो पाई है । केशरपाल बस्ती में पडी मूर्तियों को संरक्षित स्थल तक विभाग लाना चाहता है परन्तु आस्था के चलते ग्रामीण इन्हें उठाने नहीं दे रहे हैं ।

अकेली दुर्लभ प्रतिमा

२० साल पहले खेत में भगवान विष्णु की शेषशैया स्थितिवाली दुर्लभ प्रतिमा मिली थी । विष्णु की नाभी से निकले कमल में ब्रम्हा विराजित है । ऐसी प्रतिमा बस्तर में कहीं और नहीं मिली है । इसे तथा खेत से ही प्राप्त योध्दाओं की प्रतिमा को बस्ती के तिराहे में लाकर रख दिया गया है । बस्ती के मनबोध यादव की बाडी में नाली बनाने गड्ढा खोदते समय भगवान विष्णु, कंकालिन और दिग्पाल की मूर्तियां मिली हैं ।

पुरातन वस्तुओं का दुरुपयोग

ग्रामीणों से सूचना मिलने के बाद केशरपाल पहुंचे जिला पुरातत्व समिति के सदस्य रूद्रनारायण पाणीग्राही, हेमंत कश्यप और रंगकर्मी विक्रम सोनी को ग्रामीणों ने बस्ती के कई ऐसे स्थान दिखाए, जहां की खुदाई करने पर शिवालय आदि मिल सकते है । इधर पुरातात्विक महत्व की शिलाओं का महत्व ग्रामीण समझ नही रहे हैं और मंदिरों के भग्नावशेषों को उठा कर अपने घर की चौखट और दीवारों में लगा रहे हैं ।

स्त्रोत : नई दुनिया

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