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निषेध – जयपुर में सफाई का संदेश देने के लिए टॉयलेट पॉट पर गणपति का रूप दिखाया

मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष सप्तमी, कलियुग वर्ष ५११६

क्या अन्य धर्मियोंके श्रद्धास्थानोंका उपयोग करनेका साहस इस चित्रकारने किया होता ? आज हिन्दुआेंमे धर्मशिक्षाका अभाव है , इसके कारण कोर्इ भी हमारे श्रद्धास्थानोंका उपयोग अनादरात्मक तरीकेसे करते है । – सम्पादक

हिन्दुनिष्ठ संघटनाआेंने विरोध में प्रदर्शन का दिया इशारा !

जयपुर – राजस्‍थान की राजधानी जयपुर स्थित जवाहर कला केंद्र में शुक्रवार से शुरू होने वाला पांच दिवसीय वर्ल्ड आर्ट समिट विवादों में पड़ गया है। समिट की पूर्व संध्या पर गुरुवार को केंद्र की दीर्घाओं में आयोजित अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी में टॉयलेट के पॉट में गणपति का रूप भी नजर आया। इसे लेकर कलाकारों समेत विभिन्‍न तबके के लोगों ने तीखी प्रतीक्रिया दी है। जयपुर के कलाकार चंद्रप्रकाश गुप्‍ता ने कहा कि वे अपने साथी कलाकारों के साथ इसके खिलाफ शुक्रवार को जवाहर कला केंद्र में विरोध-प्रदर्शन करेंगे। उन्‍होंने इसे प्रचार पाने का हथकंडा बताया। कलाकारों ने कहा कि गणेश प्रथम पूज्‍य हैं और उन्‍हें ऐसे रूप में दिखाना बेहद शर्मनाक है। जनसमस्‍या निवारण मंच के प्रमुख सूरज सोनी ने भी धमकी दी कि किसी भी हाल में प्रदर्शनी चलने नहीं दी जाएगी।

इस टॉयलेट डिजाइन को तैयार करने वाले उदयपुर के वरिष्ठ चित्रकार भूपेश कावड़िया ने गुरुवार रात से ही अपना सेल फोन बंद कर दिया। इससे पहले, उन्होंने बताया था कि सफाई की महत्ता को समझाने के लिए उन्होंने टॉयलेट के पॉट्स का इन्स्टालेशन यहां प्रदर्शित किया है। इन पॉट्स में धार्मिक आस्था के प्रतीक मोली के गट्टे रखे गए हैं और एक डब्लूसी को उल्टा रखकर उस पर तीन कौड़ियों से त्रिनेत्र की आकृति बनाई है। इसके इर्द-गिर्द सोने का वर्क सजाया है। इस इन्स्टालेशन के इर्द-गिर्द ‘सफाई भगवान तुल्य’, ‘टॉयलेट के बिना घर में वधू नहीं’ के स्लोगन भी लिखे हैं। भूपेश कावड़िया ने कहा कि यह इन्स्टालेशन देश में प्रचारित किए जा रहे शौचालय के संदेश से प्रेरित होकर बनाया है।

प्रदर्शनी के संयोजक और राजस्थान ललित कला अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. भवानी शंकर शर्मा का कहना है कि मोली तो धागे का रूप है। इसमें दिखाई देने वाले चिह्न सिर्फ कलात्मक आकृतियां हैं, जिनका आध्यात्मिकता से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि कलाकार का यह प्रयास ठीक उसी तरह से है, जैसे प्राण प्रतिष्ठा के बिना पत्थर में दिखाई देने वाला कोई भी रूप मान्य नहीं होता है।

स्त्रोत : दैनिक भास्कर

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