मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष सप्तमी, कलियुग वर्ष ५११६
पाकिस्तान में एक कट्टरपंथी धर्मगुरु कुछ मजहबी स्कूलों में ५००० बच्चों को ‘ओसामा बिन लादेन के विचारों को’ पढ़ा रहा है।
पाकिस्तानी सेना देश की पश्चिमोत्तर सीमा पर तालिबान के साथ लड़ रही है। लेकिन नई पीढ़ी को शिक्षा दे रहे इन स्कूलों को बंद करने की सरकार की कोई योजना नहीं है। इन मदरसों में 3000 लड़कियां और 2000 लड़के पढ़ रहे हैं। क्या ये स्कूल तालिबान समर्थकों की नई पीढ़ी तैयार कर रहे हैं ?
इस्लामाबाद की विवादित लाल मस्जिद के इमाम अब्दुल अजीज गाजी कहते हैं, “हमारे लक्ष्य भी वही हैं जो तालिबान के हैं, लेकिन हम सैन्य प्रशिक्षण नहीं देते। हम मस्तिष्क पर काम करते हैं। तालिबान शारीरिक क्रिया पर जोर देते हैं।”
वह कहते हैं, “हम जिहाद के सिद्धांत के बारे में बताते हैं। ये छात्रों पर है कि यहां से शिक्षा खत्म करने के बाद वे सैन्य प्रशिक्षण लेते हैं या नहीं। हम उन्हें हतोत्साहित नहीं करते।”
‘लादेन है हीरो’
गाजी आठ मदरसे चलाते हैं। उनके पिता के अफगानिस्तान में अल क़ायदा नेता ओसामा बिन लादेन से मिलने के बाद पहला मदरसा खुला था।
गाजी कहते हैं, “ओसामा बिन लादेन हम सभी के लिए हीरो हैं। वह अमरीका के सामने डटे रहे और जीते। उन्होंने स्कूल के मिशन को प्रेरित किया।”
एक मदरसे में पुस्तकालय का नाम बिन लादेन के नाम पर रखा गया है। लादेन 2011 में पाकिस्तान में अमरीकी नेवी सील्स के हाथों मारे गए थे। गाजी, उनकी मस्जिद और उनके मदरसों ने 2007 में लाल मस्जिद पर कब्जे के लिए सेना भेजे जाने के बाद लंबा सफर तय किया है। इस सैन्य कार्रवाई में कई चरमपंथियों समेत 100 से अधिक लोग मारे गए थे। इनमें गाजी के छोटे भाई, मां और पुत्र भी शामिल थे।
इस घटना के बाद गाजी ने लाल मस्जिद से बुर्का पहनकर भागने की कोशिश की थी, लेकिन पकड़े गए थे। यही वजह है कि उन्हें ‘बुर्का मुल्ला’ के रूप में भी जाना जाता है।
विज्ञान-गणित की शिक्षा नहीं
मदरसों के पाठ्यक्रम में कुरान का पाठ, अरबी और अध्यात्म के बारे में पढ़ाया जाता है। विज्ञान, गणित और कला को ‘दुनियादारी’ माना जाता है और शायद ही कभी इनका जिक्र होता है।
मदरसों में पढ़ाई जाने वाली ज़्यादातर किताबें गाजी ने खुद लिखी हैं और इनकी छपाई भी मदरसे के प्रिटिंग रूम में ही हुई है। सबसे छोटा पाठ्यक्रम 12 महीने का है, लेकिन छात्र आठ साल के पाठ्यक्रम में भी दाखिला ले सकते हैं, जिसमें स्नातक होने के बाद इमाम का दर्जा मिलता है।
अगले साल स्कूल से स्नातक होने वाले 24 वर्षीय अब्दुल्लाह कहते हैं, “तालिबान अफ़ग़ानिस्तान को बहुत अच्छी तरह चलाते थे। उन्होंने एक न्यायसंगत समाज बनाया जिससे दुनिया ईर्ष्या करने लगी।”
वह भी ओसामा को प्रेरणास्रोत के रूप में देखते हैं। इस्लाम की उनकी समझ के अनुसार इस्लाम पत्थर मारने (संगसारी), सार्वजनिक रूप से फांसी देने और महिलाओं को सीमित शिक्षा देने की तरफदारी करता है।
वह कहते हैं, “हम सभी का एक मकसद है- एक ऐसा समाज जिसमें भ्रष्टाचार नहीं हो। हम हर किसी के लिए इंसाफ चाहते हैं। इसे हासिल करने का एक ही तरीका है और वह है शरीयत कानून और इस्लामिक देश।”
अब्दुल्लाह उन 18 लोगों में शामिल हैं जो स्कूल से 2015 में स्नातक होंगे, और उनका काम इन विचारों को पाकिस्तान में लोगों के बीच पहुंचाना होगा।
यहां रहना, खाना-पीना सब मुफ्त है
मदरसे में छात्रों के लिए रहना, खाना-पीना और स्वास्थ्य सुविधाएं मुफ्त हैं। यही वजह है कि इनमें पढ़ने के लिए आने वाले ज़्यादातर छात्र गरीब परिवारों और पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर कबीलाई इलाके के होते हैं। कुछ माता-पिता अपने बच्चों की पूरे समय देखभाल के लिए मदरसों पर निर्भर हैं।
लड़कियों को पुरुष कर्मचारी दीवार के पीछे से लाउड स्पीकर का सहारा लेकर पढ़ाते हैं। कभी-कभी तो पूरे पांच साल तक लड़कियों से मिले या उन्हें देखे बिना उन्हें पढ़ाते हैं। ग़ाज़ी कहते हैं कि मदरसे को बड़े अनुदान नहीं मिलते और सिर्फ़ छोटे-छोटे दान मिलते हैं।
वह कहते हैं, “पूरे पाकिस्तान से लोग दान देने के लिए मुझसे संपर्क करते हैं। हाल ही में किसी ने एक मकान दान किया। कुछ और लोग कुछ हज़ार रुपये या कार दान करते हैं। वे इसलिए दान करते हैं क्योंकि वो हमारी कोशिशों का समर्थन करते हैं।”
सैद्धांतिक तौर पर पाकिस्तान सरकार को सभी स्कूल जाने वाले बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देनी चाहिए। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान में लगभग 51 लाख बच्चे स्कूलों से बाहर हैं। इसका मतलब है कि पाकिस्तान में चल रहे 14,000 मदरसे और विकसित हो रहे हैं।
पाकिस्तान के शिक्षा मंत्री बालिग़ रहमान का कहना है कि मदरसे स्कूली शिक्षा का अहम विकल्प हैं। वह कहते हैं, “सिर्फ इसलिए कि कुछ बच्चे ये कहते हैं कि वो ओसामा बिन लादेन का समर्थन करते हैं, ये चरमपंथी शिक्षा का प्रमाण नहीं हो सकता।
स्त्रोता : अमर उजाला