मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष अष्टमी, कलियुग वर्ष ५११६
१. केवल धर्मपरिवर्तनके एकमात्र उद्देश्यसे ईसाई समाजद्वारा भद्रतापूर्ण व्यवहार करनेका दिखावा करना
कोई यदि अति सभ्यतापूर्ण अथवा बहुत मीठा बोलकर व्यवहार करता है, तो उससे सतर्क रहना अच्छा । क्योंकि ऐसा व्यक्ति निश्चित रूपसे गला काटता है, ऐसा अनुभव है । ईसाई समाज इसी दृष्टिसे व्यवहार करता है । ये लोग ऐसा आचरण करते हैं, मानो विश्वकी पूरी सभ्यता इनके ही पास है; परंतु इसके पीछे उनका उद्देश्य होता है धर्मपरिवर्तन । ये बात बहुत देरके पश्चात ध्यानमें आती है । आजतक उन्होंने अत्यधिक भारी मात्रामें धर्मपरिवर्तन किए हैं तथा अंग्रेजी भाषाके प्रभावका संपूर्ण रुपसे लाभ उठाकर मिशनरी एवं विद्यालयोंको स्थापित किया है । सीधे धर्मके नामपर जिहाद करनेवाले धर्मांध उनकी आक्रामकताके कारण तत्काल दिखाई देते हैं; परंतु ईसाईयोंका वैसा नहीं है । वे ऐसे होते हैं, जैसे घोंघेके पेटमें पांव होते हैं ।
२. भारतीय राजा-महाराजाओंकी सभ्यताका अपलाभ उठाकर भारतको परतंत्रतामें धकेलनेवाले ईसाई !
आज हिन्दुओंके अनेक त्यौहार तथा परंपराओंपर ईसाईयोंने सुनियोजित रुपसे कुल्हाडी चलाई है । व्यापार तथा व्यवसायके उद्देश्यसे अंग्रेज एवं पोर्तुगाल भारतमें आए । उन्होंने यहांके राजा महाराजाओंको अपनी सभ्यतासे व्यवस्थित रूपसे गुंडेला । उनकी रक्षा हेतु तैनाती फौज दी गई एवं इन फौजोंने भारतको कब निगल डाला, यह किसीके भी समझमें नहीं आया ।
३. सोनेका धुंआ निकलनेवाले भारतकी संपत्ति लूटनेके साथ पाश्चात्त्य विकृतिको ठसानेवाले एवं सभीको कलंकित कर भारतीय संस्कृतिको खराब करनेवाले धूर्त अंग्रेज !
अंग्रेजोंने डेढ सौ वर्षोंतक राज्य किया । इस कालावधिमें उन्होंने भारतकी आर्थिक लूटमार तो की ही, परंतु पाश्चात्त्य संस्कृतिको भी भारतियोंके मनमें बिठाया ।
अ. वस्त्रोंसे लेकर तो पेय तथा खाद्यपदार्थमें उन्होंने अपनी संस्कृतिको मिला दिया ।
आ. उपवासमें भी चाय पी सकते हैं, उन्होंने धूर्ततासे ऐसी आस्था भारतियोंमें उत्पन्न की ।
इ. काटे-चमचोंसे खानेकी आदत लगाई ।
ई. शर्ट, पैंट यह पोशाक पुरुष एवं महिलाओंको भी बताया
उन्होंने अत्यंत सुनियोजित रूपसे सभीको कलंकित किया । कुएंमें पाव डालकर जिन्हें कलंकित किया, उन्होंने वैधानिक रूपसे स्वीकार किया यह अलग बात है; परंतु जाने अनजानेमें उनके इस गारुडने भारतीय संस्कृतिको ही खराब कर डाला, यह भी उतना ही सच है ।
४. मनुष्यताके नामपर हिन्दू धर्ममें हस्तक्षेप कर स्वैराचारका बीज बोनेवाले ईसाई !
यह सच है कि ब्रिटिशोंने सती जानेकी परंपरा तथा बालविवाह आदि परंपराओंको नष्ट किया । ये परंपराएं मनुष्यताके अनुसार नहीं थी ’’ (हिन्दू धर्ममें ये परंपराएं क्यों थीं, यह बात धर्मके अभ्यासकको ही समझमें आएगी । मानसिक स्तरपर विचार करनेवाली व्यक्तिको कभी समझमें नहीं आएगी । संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) परंतु इस निमित्तसे उन्होंने हिन्दू धर्मकार्यमें व्यवस्थित रूपसे हस्तक्षेप किया । स्त्री-स्वतंत्रता एवं योनिशुचिताके विषयमें उनके नियम एवं बंधन नरम रहनेसे भारतीय उनकी लालचमें गिरे ।
४ अ. स्त्री-स्वतंत्रताकी संकल्पनाको ठसानेका अर्थ अगली पीढीकी नीतिमत्ताको बिगाडना ! : स्त्री-स्वतंत्रताकी संकल्पना मोहक है; परंतु उतनी ही भयंकर है । कोई भी यह कहेगा कि स्त्रीपर अत्याचार न हो ; उसके साथ समान आचरण भी किया जाए, यह भी उचित है, परंतु उसकी स्वतंत्रताका रूपांतर स्वैराचारमें न होनेका ध्यान भारतीय स्त्रियोंको रखना आवश्यक है ।
आज निस्संन्कोच रूपसे अराजकतासे विवाहबाह्य संबंध एवं समलिंगी संम्बधोंको स्वीकारा जा रहा है । यह देखते हुए अगला समाज निरोगी एवं बलवान तथा नीतिमान होनेकी संम्भावना न्यून होती जा रही है ।
४ आ. स्त्रियोंका घरके बाहर निकलनेका अर्थ है, घरके घरपनपर संकट आमन्त्रित करना : स्त्रियोंने नोकरी तथा व्यवसायके निमित्त घरके बाहर निकलना चा किया एवं घरके घरपनपर संकट छा गया । इससे प्रथम आक्रमण एकत्रित परिवार पद्धतिपर हुआ तथा चारोंका घर यह संकल्पना दृढ होती गई । इसलिए पाश्चात्त्य संस्कृति सुविधाजनक प्रतीत होकर अधिक प्रभावित होने लगी । यह वास्तविकता है ।
४ इ. भारतीय स्त्रियोंने अपना देवधर्म त्याग देना; परंतु ईसाईयोंने अपने आचार-विचारका त्याग न करना : त्यौहारके अवसरपर मीठे पदार्थ घरमें बनानेकी अपेक्षा उन्हें बाजारसे क्रय करनेकी ाqस्त्रयोंकी मानसिकता है । कुछ स्त्रियां तो त्यौहार ही नहीं मनाती । मुख्य देवादिक एवं पुराणोंपर आक्रमण होनेके कारण आस्थाके लिए स्थान ही नहीं बचा । इसके विपरीत ईसाईयोंने अपने आचार-विचारका कोई त्याग नहीं किया । उन्होंने प्रत्येक रविवारको चर्चमें जानेका बंधन स्थायी रखा । उन्होंने अपनी भाषा एवं बाइबलको वलयांकित कर उनका प्रसार किया ।
५. सर्वत्र इंग्रजी माध्यमके विद्यालयोंका प्रभाव बढकर मराठी (भारतीय भाषी) विद्यालयोंका नष्ट होना
पूरे विश्वमें अंग्रेजी भाषा फैलनेके कारण ईसाईयोंने ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर रखी है कि बिना अंग्रेजीके कोई उपाय नहीं है । वर्तमान समयमें प्रति वर्ष पांच सहस्र मराठी विद्यालय बंद पडते समय अंग्रेजी माध्यमके विद्यालय एवं टयूशनको बरकत आई है । मुंबईकी परिस्थिति देखनेपर पता चलता है कि मराठी ही नहीं, अपितु एक हिन्दी भाषाके अतिरिक्त अन्य भाषी विद्यालयोंकी भी गतप्राण अवस्था हो गई है । यह चित्र बोलता है । सुनियोजित रूपसे संस्कृतिपर ईसाईद्वारा दूसरी बार किया गया आक्रमण है ।
६. हिन्दुओंके आस्था-अंधश्रद्धाओंकी मजाक करनेवाले ईसाई स्वयं अंधश्रद्धाके ही घेरेमें हैं !
हिन्दुओंके आस्था-अंधश्रद्धाओंकी मजाक अथवा उसकी आलोचना करते हुए अपने धर्मको बढावा देनेवाले ईसाई स्वयं अत्यधिक अंधश्रद्धालु हैं । रविवारको होनेवाली प्रार्थनाओंके लिए वे नींद आनेपर अथवा रात्रिमें लिए मद्यकी नशा न उतरनेपर भी जाते हैं । वहां पादरी जो बोलते हैं, वे शांतिसे सुनते हैं । पादरीद्वारा कोई संदेश दिया गया, तो ये लोग उसका पूरी तरह पालन करते हैं । चुनावमें किसे मतदान करना है अथवा कौनसे अधिकोषमें (बैंकमें) खाता खोलना है, चाहे कोई भी विषयमें आदेश हो, ईसाई पादरीके वचनके बाहर कभी नहीं जाते । क्या यह अंधश्रद्धा नहीं है ?
६ अ. तथाकथित हिन्दू विद्वानोंने हिन्दुओंकी श्रद्धाका मजाक कर ईसाईयोंकी चालबाजीको प्रोत्साहित करना : इनमें प्रत्येक ईसाई चर्चके समक्ष आते ही हातसे क्रॉसका संकेत कर अपने हातको चुमकर नमस्कार करता ही है; परंतु हिन्दुओंद्वारा मंदिरका कलश दिखते ही नमस्ते करनेपर उसका मजाक उडाया जाता है । उनके किसी चर्चमे येशुके पांवसे खून बहने लगता है एवं यह चमत्कार देखनेके लिए बहुत भीड होती है । ऐसा चमत्कार यदि हिन्दू देवी-देवताओंके विषयमें हुआ, तो उसे पाखंड कहकर हिन्दू विद्वान ही कोलाहल मचाते हैं एवं सब ईसाई मनही मन हंसते हैं ।
७. अनैतिकताकी चरमसीमातक पहुंचे घृणास्पद पादरी
७ अ. अपने घोटाले लोगोंतक न पहुंच पानेका ध्यान रखनेवाले अनैतिक एवं ढोंगी पादरी ! : हिन्दुओंमें कोई एक तथाकथित बाबा अथवा स्वामी उनकी भक्ति करनेवाली भक्तीनके साथ भोग करता है, अथवा भक्तोंकी माया लुटता है, तो ईसाई तत्काल कोलाहल मचाते हुए कहते हैं कि हिन्दुओंका ढोंग देखें; परंतु चर्चकी दीवारकी आडमें पादरी एवं ननके जो लफडे चलते हैं, इसके विषयमें वे बिल्कुल मौन रहते हैं । आज उनकी ही कुछ दम घुटनेवाली नन्सद्वारा किताबें लिखकर ऐसे लफडे सार्वजनिक किए गए हैं, यह अच्छी बात है; परंतु ऐसा साहित्य अधिक लोगोंतक न पहुंच पानेका ध्यान वे रखते हैं ।
७ आ. अनैतिकताके सामने गर्दन झुकानेवाले एवं अपने शिष्योंको एकपत्नीव्रतका पालन करनेका महत्त्वपूर्ण संस्कार सिखानेमें असमर्थ ईसाई धर्मप्रमुख : जिन पोपको ईसाई धर्मप्रमुखके रुपमें मानते हैं, उन्हें भी समाजमें निरोध (कंडोम) प्रयुक्त करनेकी अनुमति देना पडी । इन्हीं पोपद्वारा पिछले वर्ष कंडोमके उपयोगका विरोेध किया गया; परंतु स्वैराचारकी लालचमें पडे उनके ही शिष्योंको पोपका कहना पसंद नहीं आया । अंतमें उन्होंने पोपके गले उतारा कि कंडोम प्रयुक्त करना कल्याणकारी है तथा यदि इसे प्रयुक्त नहीं किया गया, तो एड्सका फैलाव अधिक तीव्रतासे होगा । यह भय पोपके समझमें आया; परंतु वे उनके शिष्योंपर एकपत्नीव्रतका पालन करनेका साधा संस्कार भी नहीं कर पाए ।
८. योगकी बढती लोकप्रियता देखकर उसपर प्रतिबंध लगाकर हिन्दूद्वेषका प्रचार करनेवाले एवं इस द्वेषसे अपनी ही जनताको दुराचारी बनानेवाले इंग्लैंड तथा अमेरिकाके चर्च
हिन्दुओंको जो कुछ अच्छा है, उसे नाम रखना एवं अपने धर्मकी डफली बजाना ऐसा ईसाईयोंका कार्यक्रम है । ऋषि-मुनियोंद्वारा स्थापित योगधारणासे कुछ ईसाई प्रभावित हुए एवं अनेक देशोंमें योगप्रकार लोकप्रिय हुआ । दीर्घायु एव निरोगी रहने हेतु योगसमान अन्य उपचार नहीं है, इसकी निश्चिति होनेसे खिलाडीसे लेकर गृहिणी, नौकर, दुकानदार सभी जहां-वहां योग करने लगे । योगकी एकाएक बढती लोकप्रियता ईसाईयोंके ढुढ्ढाचारियोंको पसंद नहीं आई । उन्हेें लगा कि यह धर्मपर संकट है । योगके प्रकार एवं प्रार्थना इत्यादि सभी कुछ हिन्दू धर्मसे संबंधित है, यह बात उन्हें खटकी । उन्होंने तत्काल इंग्लैंड तथा अमेरिकाके कुछ चर्चद्वारा सार्वजनिक रूपसे योग करनेपर प्रतिबंध लगाया । यह हिन्दू द्वेषका प्रचार नहीं, तो और क्या है ? हिन्दू मात्र अन्य धर्मसे अच्छा लेनेके नामपर अपने धर्मकी अच्छी बातोंका त्याग कर रहे हैं । अन्यधर्मीय अपने चौखटको दृढ भावनासे चिपके हैं ।
९. समानता एवं मानवताका दांभिकतासे प्रसार करनेवाले ईसाईयोंका स्वयं वर्णद्वेष एवं धर्मद्वेषसे पछाडे रहना
अपने धर्ममें दांभिकता नहीं, अपितु खुलापन है । हमने छुआछूत नहीं रखी है । हमारे बाईबलकी प्रति कोई भी हातमें धारण कर सकता है, ऐसा मनोभावसे कहते हुए हिन्दुओंमें ब्राह्मण-ब्राह्मणेतर भेदाभेदपर उंगली रखनेवाले ईसाई वैâथालिक एवं प्रोटेस्टंट ऐसा भेदाभेद आज भी मानते हैं । आज भी अनेक देशोंमें अनेक स्थानपर वर्र्णद्वेष है । आज फ्रान्स निस्संन्कोच रुपसे बुुरखोंपर प्रतिबंध लगा रहा है एवं सिक्खोंको पेâटा बांधनेको मना कर रहा है । यह उनका धर्मद्वेष ही है ।
१०. ईसाईयोंने अत्यंत व्यवस्थित रूपसे हिन्दुओंकी मजबूतीको ही मंद करनेके उदाहरण
१० अ. विदेशी राजनेताओंका ढोंगीपन : फ्रान्सके राष्ट्राध्यक्ष सार्काेजीकी मॉडेल पत्नी कार्ला ब्रूनी आग्राकी दर्गाके सामने पुत्रप्राप्तिके लिए मन्नत मांगती है; परंतु फ्रान्समें बुरखेपर लगाया प्रतिबंध हटानेकी उसकी प्रज्ञा नहीं होती । इससे अनुमान होता है कि ये लोग कितने ढोंगी हैं । ये लोग अपना धर्म बहुत बारिकीसे संजोते हैं ।
१० आ. चलचित्रमें विडंबना : अधिकतम हिन्दी चलचित्रमें मंदिरका पुजारी अथवा पूजन-अर्चन करनेवाला पंण्डित विनोदके लिए प्रयुक्त किया जाता है; परंतु इसका किसी हिन्दूको बूरा नहीं लगा; परंतु यश चोप्रासमान दिग्दर्शकद्वारा किसी एक स्थानपर विनोदी प्रसंग चित्रित किया गया, तो ईसाई तत्काल न्यायालयमें पहुंच गए । वह चलचित्र (दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे) ऐतिहासिक सिद्ध हुआ, यह अलग भाग है; परंतु यह प्रसंग यशजीको निकालना पडा ।
१० इ. स्त्रीके संदर्भमें सम्मान नष्ट होना : अधिकतम चलचित्रोंमें ईसाई सेक्रेटरी तंग वस्त्रोंमें दर्शाते हैं । इससे ईसाईयोंके आपत्ति उठानेपर तथा अपनी मुन्नी अपकीर्त होनेपर भी हिन्दू उसकी ओर आंखें फाडकर देखनेसे बाज नहीं आते । यह इस बातका उदाहरण है कि ईसाईयोंने कितने सुनियोजित रूपसे हिन्दूओंकी मजबूतीको ही मंद किया है ।
११. प्रत्येक रविवारको अपने पापको स्वीकार कर पुनः नए पाप करनेके लिए छूट लेनेवाले ईसाई
धर्मपरिवर्तित करनेके लिए पर्याप्त सहायता कर पश्चात आदिवासी, निर्धन तथा अशिक्षित वर्गको अपने हालपर छोड देनेवाले ईसाईयोंके पापोंकी गिनती जितनी की जाए, न्यून ही है । हिन्दुओंको ध्यानमें रखना चाहिए कि रविवारको अपने पापोंकी सम्मति देकर पुनः नए पाप करनेकी छूट लेनेकी ईसाईयोंकी आदत कभी नहीं छूटेगी ।
– श्री. संजीव नरेंद्र पाध्ये (श्रीगजानन आशिष, जनवरी २०११)