इस माह देशकी स्वतंत्रताकी ६५वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी । वैसे तो विश्वके कितने ही देश विविध वर्षोंमें उपनिवेशवादकी दासतासे मुक्त हुए, खरे अर्थोंमें स्वतंत्र हुए और अपनी प्रगति साध्य की । ऐसे देशोंकी तुलनामें अपने देशकी प्रगति कैसी है, यह देखना महत्वपूर्ण है ।
इस्राईल देशका निर्माण और अपनी स्वतंत्रताको देखें, तो दोनोंको समान वर्ष हुए हैं । इन दो देशोंकी तुलना करते समय आकाश- पातालका अंतर ध्यानमें आता है । इतना-सा इस्राईल देश आज विश्वमें यशके शिखरपर है । उसकी ओर वक्रदृष्टिसे देखनेका दुःसाहस किसीमें नहीं । उसमें जो विशेषता है – वह केवल आदर और आदर्श राज्यकारभार करनेकी भावना ! शत्रु देशने एक सैनिकको मारा डाला इसलिए विदेशदौरा अधूरा छोडकर स्वदेश लौटनेवाला प्रधानमंत्री इसी देशने दिया है । अपने बलबूतेपर और सर्व साधन-सामग्री हाथमें होते हुए भी अपने स्वतंत्र देशके आजतकके शासकोंने क्या प्रगति की है, यह प्रश्न आज भी सामान्य नागरिक पूछते हैं ।
पडोसी चीन भारतीय प्रदेशपर अपना अधिकार जतानेका दुःसाहस करता है, पाकिस्तान भारतका ध्वज उलटा लगाकर फहराता है, बलवान अमेरिका भारतीय शासकोंपर पाकके संदर्भमें दबावतंत्रका उपयोग करता है, कुछ इस प्रकारका अंतर्राष्ट्रीय दृश्य दिखाई देता है । दूसरी ओर आतंकवाद और नक्सलवादसे भडका हुआ हिंसाचार, राजनीतिक स्वार्थकी राजनीति करनेवाले राजनेता, अनियंत्रित भ्रष्टाचार, आर्थिक विषमता, भूखमरीrr, कृषकोंकी आत्महत्या, इस प्रकारकी देशांतर्गत समस्याएं आज भी विद्यमान हैं । स्वतंत्राके ६४ वर्षोंके पश्चात भी देशके २६ प्रतिशत नागरिक दरिद्रता रेखाके नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, यह एकमेव दृश्य ही संपूर्ण देशकी वास्तविक स्थितिका चित्र खडा कर देता है । देशकी अधोगतिके लिए अनेक घटक उत्तरदायी हैं ।
उन प्रत्येक घटकोंका विश्लेषण करना अर्थात विस्तारभयकी सावधानी न बरतने समान होगा । अतः संक्षेपमें कहना हो तो कहा जा सकता है कि देशमें लोकतांत्रिक प्रणाली विफल सिद्ध हुई है । लोगोंद्वारा लोगोंके हितमें चलाया गया राज्य, अर्थात ‘लोकतंत्र’, इस सूत्रका अनुभव कितने भारतीयोंने लिया होगा, इसका पता करना शोध विषय होगा । देशमें हिंदुओंका बाहुल्य है, तब भी उनकी संख्याको कोई महत्व नहीं दिया जाता । जैसे देशका भविष्य हिंदुओंके हाथोंमें सुरक्षित ही नहीं, इस प्रकारकी दृष्टिसे उन्हें देखा जाता है । देशके तारनहार अल्पसंख्य मुसलमान ही हैं, इस भावनासे उनकी मांगें पूरी कर उन्हें संतुष्ट करनेका काम केंद्रमें विद्यमान कांग्रेसी शासन कर रहा है । देशके विभाजनके समय कांग्रेसके नेताओंकी जो मानसिकता थी, अपितु मुसलमानोंके लिए पूरक जो कांग्रेस दलका दृष्टिकोण था, उसमें आज सूतभर भी अंतर नहीं आया है । परिणामस्वरुप हिंदुओंके लिए स्वतंत्रताका फल चखना संभव नहीं । सच्चर आयोगने तो ‘इस देशमें हिंदु होना अपराध है’, यह धारणा हिंदुओंकी बने, इसकी व्यवस्था ही कर दी है ।
हिंदुओंका अस्तित्व मिटनेका समय !
‘लव जिहाद’ नामका राक्षस देशमें भयानक वेगसे बढ रहा है । प्रसारमाध्यम इस विषयमें जागरूक हैं, ऐसा चित्र अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है । हिंदुओंके मूलपर ही आघात करनेवाला यह राक्षस, अर्थात वैश्विक स्तरका षड्यंत्र । देशकी हिंदु जनताका रक्षण करनेमें केंद्रका शासन असमर्थ है । संक्षेपमें, यह शासन हिंदुओंका रक्षण करनेकी नीति नहीं बना सकता । हिंदु लडकियोंका अपहरण, उनसे विवाह करना, उनपर बलात्कार करना, उनकी हत्या करना, इस प्रकारकी घटनाएं दिन-पर-दिन बढ रही हैं । केरलमें प्रतिदिन आठ हिंदु लडकियां भगाई जाती हैं, तो दिल्ली और हैदराबादसे प्रतिवर्ष पंद्रह सहस्र हिंदु लडकियां मुसलमानोंद्वारा भगाई जाती हैं । मुसलमान तरुणोंद्वारा निर्माण किया गया भयका वातावरण और उसकी बलि चढा शासन तथा आरक्षी (पुलिस) हिंदुओंका रक्षण नहीं कर सकते । मुसलमानोंद्वारा किए जानेवाले अत्याचारोंको शासनकी मूकसहमति है, ऐसी हिंदुओंकी समझ हो गई हो तो उसमें कुछ अनुचित नहीं ।
देशके हिंदु आज असुरक्षित हैं, यही दृश्य सर्वत्र दिखाई दे रहा है । उसपर भी देशके प्रधानमंत्री कहते हैं, ‘‘देशकी संपत्तिपर प्रथम अधिकार मुसलमानोंका है !’’ ऐसा समय आ गया है की अब हिंदुओंको इस देशमें जीवित रहना कठिन हो गया है । देशकी स्वतंत्रताका इससे पृथक वर्णन करनेके लिए अन्य विषयकी आवश्यकता नहीं । इस देशका वास्तविक समाज हिंदु होनेके कारण उसका जीवनस्तर जबतक वैभवसंपन्न नहीं होता, तबतक देशकी स्वतंत्रता सार्र्थक नहीं होगी । हिंदुओंका वैभव, उनकी संस्कृतिको संजोनेमें है, उनके धर्माचरणमें है और उनकी श्रद्धामें है । हिंदुओंको निःशेष करनेकी योजना बनानेवाले, हिंदुओंकी संस्कृतिपर आघात कर उनके धर्माचरणमें बाधा डालते हैं और उनकी आस्थाओंका जानबूझकर भंजन करते हैं । देशमें बहुसंख्य हिंदुओंके विरुद्ध चलाया जा रहा यह दुष्चक्र रोकनेकी धमक जिस राजनीतिक दलमें हो, ऐसे दलके नेतृत्वकी आज देशको आवश्यकता है ।
कृतघ्नताकी पराकाष्टा !
जिन्होंने स्वधर्माभिमान सिखाया वे ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ नहीं चाहिए, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राममें अपने प्राणोंकी आहुति दे दी उन क्रांतिकारियोंका स्मरण नहीं, जिन्होंने देशाभिमान जागृत किया उन युगपुरुषोंका अभिवादन नहीं । कृतघ्नताकी चौखटमें रहकर राज्यकारभार करनेवाले देशको वैभवका दिन वैâसे दिखा सकेंगे ? इस कारण कर्मकांडकी भांति प्रत्येक वर्ष मनाया जानेवाला स्वातंत्र्यदिन मनानेके लिए प्रत्येक हिंदुद्वारा प्रसन्नचित्तसे दी गई शुभकामनाओंकी आज आवश्यकता है । उसके लिए देशके प्रत्येक हिंदुको संतुष्ट करना ही, देशकी स्वतंत्रता सफल होनेका मूलमंत्र है । – श्री. पृथ्वीराज हजारे, संपादक, सनातन प्रभात