कठुआ की ८ साल की जिस बच्ची के साथ गैंगरेप हुआ और हत्या हुई, उसे न्याय तभी मिलेगा, जब इस मामले का पूरा सच बाहर आएगा ! परंतु दुख की बात ये है कि, सच की चिंता किसी को नहीं है । जम्मू के इस बहुचर्चित कठुआ कांड ने हाल के दिनों में घाटी को राजनीतिक ऊष्णता प्रदान कर रखी है । जंगल में घोडों की तलाश में निकली आठ साल की एक बच्ची को क्रूरतम तरीके से मौत के घाट उतार दिया गया । बलात्कार के बाद हत्या की बात सामने आई । १० जनवरी को हुई इस घटना में तीन महीने बाद हालिया पेश हुई क्राइम ब्रांच की चार्जशीट ने लोगों को झकझोर कर रख दिया ।
शुरू में बच्ची के न्याय के लिए जाति-धर्म, उम्र की सीमा टूट गई । सोशल मीडिया से लेकर सडक पर हर कोई बच्ची को न्याय दिलाने की मुहिम में शामिल हुआ । परंतु इस बीच खतरनाक खेल हुआ, जब बच्ची की लाश पर सांप्रदायिकता का कफन चढाने का प्रयास हुआ । हमेशा मौके की ताक में रहनेवाले ‘राजनीतिक गिरोह’ को दरिंदगी की शिकार बच्ची में बच्ची नहीं, मुसलमान दिखा और आरोपियों में हिन्दू ।
बच्ची की लाश ‘उनके’ लिए सियासी ‘आस’ में बदल गई । न्याय की लडाई की आड में राजनीतिक हित साधे जाने लगे । न्यायालय में केस जाने से पहले ही सडक पर अदालतें सज गईं । हर पक्ष के ठेकेदार जज बनकर फैसला सुनाने लगे । इन सब के बीच बच्ची के साथ दरिंदगी की घटना गौण हो गई और बहस केंद्रित हो गई तो केवल हिन्दू और मुस्लिम पहचान पर । पीडित और आरोपियों से कहीं ज्यादा मायने अब उनकी मुस्लिम और हिन्दू पहचान रही । अब बलात्कार से ज्यादा चर्चा कथित घटनास्थल मंदिर और हिन्दू आरोपियों की होने लगी । देखते ही देखते हत्या और बलात्कार की एक घटना को हिन्दू बनाम मुस्लिम की सांप्रदायिक रंजिश का रूप दे दिया गया ।
सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ लोग अब घटना के बहाने हिन्दू धर्म पर आरोप लगाने लगे । सोशल मीडिया पर धार्मिक भावनाएं भडकाने वालीं तस्वीरें वायरल होने लगीं । कहीं त्रिशूल पर कंडोम चढाने की तस्वीरें तो कहीं माथे पर तिलक लगाए शख्स के लडकी से बलात्कार की कोशिश, कहीं योनि में त्रिशूल घुसने की तस्वीर, कहीं कंडोम पर भगवा ध्वज फरहने की तस्वीर वायरल की जाने लगीं । सुनियोजित तरीके से बलात्कार की घटना का ठीकरा समूचे हिन्दू समुदाय पर फोड दिया गया और आठ आरोपियों की धार्मिक पहचान के जरिए पूरे हिन्दू कौम को बलात्कारी साबित करने की मंशा सोशल मीडिया पर साफ दिखने लगी । इस धार्मिक निशानेबाजी की घटना ने कठुआ की घटना को ध्रुवीकृत कर दिया ।
पहले जहां हर धर्म के लोग बच्ची को न्याय दिलाने के प्रयास में खडे नजर आ रहे थे, अब हिन्दू-मुस्लिम की लकीर खिंचती दिखी । जबकि सच यह रहा कि सोशल मीडिया से लेकर सडक पर बच्ची को न्याय दिलाने की जद्दोजहद में हिन्दू कहीं पीछे नहीं रहे । यहां तक कि केस को मुकाम दिलाने के प्रयास में भी उसी धर्म के लोग आगे आए, जिस धर्म पर घटना की आड में निशाना साधने का प्रयास हुआ । चाहे पीडित परिवार की वकील दीपिका हों या फिर चार्जशीट पेश करने वाले क्राइम ब्रांच के अफसर रमेश जल्ला । हर कोई हिन्दू । सवाल फिर उठ खडा हुआ कि, आखिर बलात्कार की घटना के बहाने हिन्दू धर्म के प्रतीकों पर हमला करने से हासिल क्या होने वाला है ?
स्त्रोत : जनसत्ता