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कितनी घातक सिद्ध हुई है धर्मनिरपेक्षता !

‘१९४७ में अंग्रेजों और अन्य देशोंकी निगाहमें पाकिस्तान ‘मुसलमान नेशन’ और भारत ‘हिंदु नेशन’ ही माना जाता था । चूँकी हिंदु जाती संस्कारों से उदार और सहिष्णु रही हैं उसका लाभ उठाकर दुनिया की झुठी वाहवाही लूटने की हवस में हमारे तत्कालीन  नेताओं ने इसे धर्मनिरपेक्ष का जामा पहना दिया । वह धर्मनिरपेक्षता कितनी सार्थक सिद्ध हुई, यह हम आज देख रहे हैं । मजहब जाति, भाषा, प्रांत और वर्ग से खंडित और आहत देश के रूप में । वोट की राजनितीक ने उसे ऐसी हवा दी है कि वह ‘मानसिकता’ जानलेवा आतंकवाद, अलगावाद, तोडफोड व मारकाट तक पहुँच चुकी है । विभाजन के बाद जिस अल्पसंख्यांक समुदाय को दूध में शक्कर की तरह धुल मिल जाना था, वह मुल्ला-मौलवियों वे स्वार्थी नेताओं की मेहरबानी से दुध में नमक बनकर रह गया ।’ – सत्य नारायण मिश्रा (मासिक ठेंगे पर सब मार दिया, जून २००९, पृष्ठ ३)

(वर्ष १९१२ में जार्ज पंचमके भारत आनेपर कांग्रेसकी कार्यकारी समितिने रविंद्रनाथ ठाकुरसे उनके स्वागतके लिए गीत लिखनेको कहा ! जिसमें जॉर्ज पंचम को भारतका ‘अधिनायक’ संबोधित करके उनका गुणगान किया गया था । इसका राष्ट्रसे कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए ये राष्ट्रीगत हो ही नहीं सकता । – संकलनकर्ता)

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