मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११६
जम्मू – 15 अगस्त 1947 को देश का विभाजन हो गया। पाकिस्तानी आतंकवाद जो आज भी कश्मीर को चैन नहीं लेने दे रहा है, यह पाकिस्तान की पैदाइश के साथ ही शुरू हो गया था। सीमा पार से कबाइलियों को कश्मीर पर आक्रमण के लिए उकसाया जाने लगा। पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें हथियार दिए और घुसपैठ की गुंजाइश बनायी। जम्मू कश्मीर राज्य भौगोलिक हिसाब से पाकिस्तान की अपेक्षा भारत से ज्यादा अलग और कटा हुआ था महाराजा तथा उनकी फौज बेहद कमजोर। जिन्ना ने संभवत यह मान लिया था कि कश्मीर की सत्ता को बिना किसी कठिनाई के उखाड़ कर फेंक दिया जाएगा और राज्य पके सेब की तरह उनके हाथ में आ जाएगा।
इस समय शेख अब्दुल्ला ने समझदारी का परिचय दिया। उन्होंने 26 सितंबर 1947 को महाराजा को जेल से एक पत्र भेजा और अडिग वफादारी का वचन दिया। महाराजा ने उत्तर अनुकूल दिया। बदले में सभी राजनीतिक कैदियों के लिए क्षमादान की घोषणा कर दी। 2 अक्टूबर 1947 को सरदार पटेल द्वारा महाराजा को लिख गए पत्र से भनक मिलती है कि तारीख के एक दिन पहले ही शेख अब्दुल्ला और उनके साथियों को जेल से रिहा कर दिया गया।
असहाय हो गई महाराजा की फोज
पाकिस्तान से किए गए कबायली आक्रमण का वेग अक्टूबर 1947 में बढ़ने लगा। महाराजा की फौज शायद अनिवार्य रूप से इस ज्वार को रोकने में असमर्थ थी, क्योंकि फौज से भारी संख्या में मुसलमान सैनिक भाग गए थे और वह कमजोर हो गई थी। राज्य का काफी बड़ा भाग, जिससे पहले गिलगिट एजेंसी नाम से पुकारा जाने वाला सीमा स्थित भू-भाग भी था,शत्रु के हाथ में चला गया था और राजधानी तथा कश्मीर घाटी के लिए गंभीर संकट की आशंका खड़ी हो गई थी। महाराजा ने इस संकटपूर्ण स्थिति में भारत उपनिवेश से जुड़ने का प्रस्ताव रखा और तुरंत सैनिक मदद की मांग की। भारत सरकार ने राज्य के सम्मिलन को स्वीकार किया और इस तरह बाद में कश्मीर भारत सरकार का अभिन्न अंग हो गया। लेकिन यह सब नियम-कायदे में बांधने के लिए तब वक्त नहीं था।
स्त्रोत : दैनिक भास्कर