हिन्दू राष्ट्र स्थापना के सन्दर्भ में साधना का महत्त्व ध्यान में रखें !
‘सातवें ‘अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन’में भारतभूमि के सुपुत्र एकत्र हो रहे हैं । यह सभी के लिए आनंददायी घटना है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य करने हेतु शारीरिक एवं वैचारिक क्षमता के साथ-साथ आध्यात्मिक बल होना भी आवश्यक है । स्वयं में आध्यात्मिक बल की वृद्धि केवल साधना करने से ही हो सकती है ।
१. हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना के कार्य में साधनाके रूप में सम्मिलित हों !
‘रात में जब अन्धकार होता है, तब हम चाहे कितना भी प्रयत्न करें कि सूर्योदय शीघ्र हो; तब भी वह शीघ्र नहीं होता । अपने निर्धारित समयपर ही होता है । इसे ही ‘कालमहिमा’ कहते हैं । इस कालमहिमा के अनुसार हम यदि कुछ भी न करें, तब भी वर्ष २०२३ में हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना अवश्य होगी ।
‘यदि ऐसा है, तो हमें उसके लिए प्रयत्न क्यों करना चाहिए ?’, ऐसा प्रश्न किसीके भी मनमें उठ सकता है । उसका उत्तर यह है कि ‘क्योंकि इससे हमारी साधना होगी और हम जन्म-मृत्युके चक्रसे मुक्त हो सकते हैं। श्रीकृष्णने एक उंगलीपर गोवर्धन पर्वत उठाया था । उस समय गोप-गोपियोंने पर्वतके नीचे अपनी-अपनी लाठियां लगाईं । हमारा कार्य उतना ही है, यह सभीको ध्यान में रखना चाहिए !
२. साधना करने के उपरान्त ही ईश्वर हमसे हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य करवा लेंगे !
‘हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाके लिए मैं कुछ करूंगा’, ऐसा विचार अनुचित है; क्योंकि उसमें स्वेच्छा है । इस स्वेच्छामें अहंभाव होता है । जहां हम अपने प्रारब्धमें परिवर्तन नहीं कर सकते, जहां हमारी इच्छासे वृक्षका एक पत्ता भी नहीं हिलता, वहां हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाका कार्य हम कैसे कर सकते हैं ? वह कार्य केवल ईश्वर ही कर सकते हैं । यदि हमने कार्यके साथ साधना की, भगवानके प्रति भाव निर्माण किया, तो पग-पगपर ईश्वर हमारा मार्गदर्शन करते हैं और आवश्यकतानुसार शक्ति देकर, हमसे कार्य करवा लेते हैं ।
धर्मबन्धुओ, हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनामें साधनाका महत्त्व ध्यानमें रख, स्वयं साधना कर भगवानकी कृपा प्राप्त करें !
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले