सप्तम ‘अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन’ अंतर्गत हिन्दू विधिज्ञ परिषद आयोजित राष्ट्रीय ‘अधिवक्ता अधिवेशन’ : उद्बोधन सत्र
रामनाथी (गोवा) : अधिवक्ताआें का इतिहास, प्राचीन और आध्यात्मिक है । लोकमान्य टिळक, पंडित मदनमोहन मालवीय, वीर सावरकर जैसे अनेक अधिवक्ताआें ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय सहभाग लेकर, एक आदर्श निर्माण किया । वही आदर्श लेकर, धर्मप्रेमी अधिवक्ता हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में सक्रीय सहभाग लेंगे, तो इतिहास में उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा । यहां एकत्रित अधिवक्ताआें से केवल प्रवाह के विरुद्ध तैरना अपेक्षित नहीं है, अपितु प्रवाह की दिशा परिवर्तित कर, धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की व्यवस्था निर्माण करना अपेक्षित है, ऐसा मार्गदर्शन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने किया । वे यहां श्री रामनाथ देवस्थान के श्री विद्याधिराज सभागृह में आयोजित दो दिवसीय ‘राष्ट्रीय अधिवक्ता अधिवेशन’ के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे । इस अवसर पर ८० से भी अधिक धर्मप्रेमी अधिवक्ता उपस्थित थे ।
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ सुभाषचंद्र बोस के इस नारे के अनुसार आज शरीर, मन, बुद्धि के साथ ही सर्वस्व का त्याग कर प्रत्येक धर्मप्रेमी राष्ट्र के लिए समर्पित हो । आज आवश्यकता है कि, धर्मप्रेमी अधिवक्ता हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के यज्ञ में समिधा बनकर समर्पित हों ।
अधिवक्ताआें के पास पक्षकार दु:ख और समस्या लेकर आते हैं । उनसे धर्माचरण करवाकर उन्हें आनंदमय जीवन का मार्ग दिखाना होगा । पापरूपी मार्ग से पैसा कमाने से जीवन में अशांति अनुभव होती है । अपने ज्ञान, अध्ययन और अनुभव का एकत्रीकरण कर जिनके नाम पर झूठे अपराध प्रविष्ट हुए हैं, ऐसे हिन्दुत्वनिष्ठों को वैधानिक सहायता कर ज्वलंत विचारों की मशाल बनकर इस क्षेत्र में कार्य करें । धर्म का कार्य करते समय मनुष्यजन्म का ध्येय है ‘व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक उन्नति करना ।’ अतः उस ओर भी ध्यान देना आवश्यक है ।