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सफल-असफलता का विचार न कर न्यायालयों में धर्मरक्षणार्थ याचिका प्रविष्ट करते रहना आवश्यक ! – अधिवक्ता श्री. विष्णु शंकर जैन

सप्तम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन ! ‘राष्ट्र एवं धर्म रक्षणार्थ अधिवक्ता संगठनों ने किया कार्य’ उद्बोधन सत्र में रखे विचार

‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’ के प्रवक्ता तथा सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री. विष्णु शंकर जैन ने हिन्दू धर्मरक्षणार्थ न्यायालयों में प्रविष्ट याचिकाओं की जानकारी दी । इस समय उन्होंने कहा कि, याचिका प्रविष्ट करते समय ‘उसमें सफलता मिलेगी अथवा नहीं ?’, इसका विचार न कर धर्मरक्षा के लिए याचिका प्रविष्ट करना आवश्यक है !

१. ६ दिसंबर १९९२ को बाबरी मस्जिद गिराई गई । उसके पश्‍चात रामजन्मभूमि में हिन्दुओं को प्रभु श्रीराम का दर्शन करने पर प्रतिबंध लगाया गया । तत्पश्‍चात न्यायालय में एक याचिका प्रविष्ट की गई । ‘प्रभु श्रीराम का दर्शन हिन्दुओं का जन्मसिद्ध अधिकार है ! संविधान के पृष्ठ पर भी श्रीराम का चित्र है ! उस समय ‘प्रभु श्रीराम ऐतिहासिक तथा संवैधानिक पुरुष हैं’, ऐसी भूमिका रखी गई । उसको स्वीकार करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने १ जनवरी १९९३ से श्रीराम का दर्शन सभी के लिए खुला किया !

२. जब सोनिया गांधी चुनाव लड रही थीं, तब न्यायालय में उनकी इटली की नागरिकता के सूत्र को लेकर याचिका प्रविष्ट की गई । हमारेद्वारा सूत्र रखा गया कि ‘भारतीय व्यक्ति के साथ विवाह के पश्‍चात भारत की नागरिकता मिलना, यह देश की अखंडता पर संकट है’ न्यायालय ने इसका संज्ञान लिया !

३. हज यात्रा के लिए दिया जानेवाला अनुदान, बकरी ईद के दिन की जानेवाली पशुओं की हत्याएं, बंग्लादेशी घुसपैठ, श्रीराम सेना के श्री. प्रमोद मुतालिक को गोवा राज्य प्रवेशबंदी, आग्रेश्‍वर महादेव मंदिर के स्थान पर निर्मित ताजमहल, लखनौ (लक्ष्मणपुरी) के तिलेश्‍वर मंदिर के स्थान पर निर्मित मस्जिद, वर्ष २०१३ में उत्तर प्रदेश में अशोक सिंघल, प्रवीण तोगाडिया आदि नेताओं को बंधक बनाया जाना, गोतस्करोंद्वारा पुलिस अधिकारी मनोज मिश्रा की की गई हत्या, हिन्दुओं की धार्मिक भावना आहत करनेवाले ‘पीके’, ‘हैदर’ जैसे चलचित्र, कब्रस्तान के नाम पर भूमि हडपने का षड्यंत्र, गंगा नदी का प्रदूषण, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा लिखित ‘द टर्ब्युलंट टीअर्स १९८०-१९९६’ नामक पुस्तक में हिन्दुत्वनिष्ठों का अनादरपूर्वक किया गया उल्लेख आदि घटनाओं के विरोध में न्यायालय में याचिकाएं प्रविष्ट की गईं !

४. समाजवादी दल के अखिलेश यादव सरकार ने चुनाव के समय पकडे गए आतंकियों को छोडने का आश्‍वासन दिया था । इस सरकार ने सत्ता में आने के पश्‍चात उस दृष्टि से आदेश भी दिया ! हमने न्यायालय में उसको चुनौती दी, यह विषय अब न्यायालय में प्रलंबित है !

५. ‘समाजवादी पेन्शन योजना’ के अंतर्गत मुसलमानों के लिए कुछ विशेष सुविधाएं दी गई थीं । न्यायालय में इस निर्णय को चुनौती दी गई !

६. भारत के विभाजन के लिए कार्य करनेवाले मोहम्मद अली जीना के नाम पर मोहम्मद अली जीना विश्‍वविद्यालय की स्थापना करने का प्रस्ताव था । ‘देश का विभाजन करनेवाले के नाम से विश्‍वविद्यालय नहीं बनाया जा सकता’, ऐसी भूमिका रखकर इस विश्‍वविद्यालय के निर्माण को न्यायालय में चुनौती दी गई !

७. संविधान में घुसेड दिए गए ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द के विरोध में भी याचिका प्रविष्ट की गई !

८. मुसलमानों ने लखनौ न्यायालय की नई इमारत के परिसर में नमाज पढने के लिए तथा मस्जिद के लिए भूमि उपलब्ध कराने की मांग की थी । इस मांग का सीधा विरोध नहीं कर सकते थे; इसलिए हिन्दू अधिवक्ताओं ने न्यायालय परिसर में पूजापाठ करने के लिए मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी ! तत्पश्‍चात ‘न्यायालय परिसर में न मस्जिद बनेगी और न मंदिर’, ऐसा निर्णय लिया गया !

९. लखनऊ में दुर्गापूजा की शोभायात्रा निकालने का पुलिस प्रशासनद्वारा विरोध किया गया था । उस पर ‘मनोवांच्छित मार्ग से दुर्गामाता की शोभायात्रा निकालना, हिन्दुओं का धार्मिक अधिकार है, पुलिस प्रशासन ने ऐसी शोभायात्रा को संरक्षण देना चाहिए !’, ऐसी मांग करते हुए इस बंदी का विरोध किया । तब वहां के जिलाधिकारी ने ‘संबंधित जिला मुसलमानबहुसंख्यक होने से यहां शोभायात्रा नहीं निकाली जा सकती’, ऐसा कहा । इस प्रकरण में हिन्दुओं को सफलता नहीं मिली; परंतु इस निर्णय के आधार पर हिन्दू, हिन्दूबहुसंख्यक जिलों में ताजीब की शोभायात्राओं पर प्रतिबंध लगाने की मांग तो कर सकते हैं !

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